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विकसित देश वादा पूरा करें, फिर दें उपदेश

दुनिया के धनी और गरीब देशों के बीच असहमतियों के स्वर रविवार को उस समय उभर कर सामने आ गये जब ग्रीन हाउस गैसों का सबसे यादा उत्सर्जन करने वाले भारत समेत जी 20 के देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल से आगे का...

 विकसित देश वादा पूरा करें, फिर दें उपदेश
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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दुनिया के धनी और गरीब देशों के बीच असहमतियों के स्वर रविवार को उस समय उभर कर सामने आ गये जब ग्रीन हाउस गैसों का सबसे यादा उत्सर्जन करने वाले भारत समेत जी 20 के देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल से आगे का समझौता वार्ता शुरू करने से पहले जमीनी काम करने पर बल दिया। विकसित और विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के वास्ते क्योटो प्रोटोकोल के स्थान पर नए अंतरराष्ट्रीय समझौते को अंतिम रूप देने के संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों से तो सहमति जताई है लेकिन वे सिर्फ उद्योगों से उत्सर्जन पर नियंत्रण की बजाय इसे अधिक व्यापक स्वरूप देने के हक में है। सबसे यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले अमेरिका और चीन जैसे विकसित देशों से लेकर ब्राजील, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरती अर्थव्यवस्थाआें वाले देशों ने जापान की राजधानी टोक्यो के समीप तेजी से बढ़ते उत्सर्जन पर तीन दिवसीय सम्मलेन में विचार-विमर्श किया। लेकिन विकासशील देशों ने इस बैठक के प्रति ही अविश्वास प्रकट कर दिया। उनका कहना था कि जब औद्योगिक रूप से विकसित देश ग्लोबल वार्मिग के नाम पर गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए कोई नीति बना रहे हों तो उन्हीं मापदंडों पर विकासशील देशों को भी नहीं तोलना चाहिए। उदाहरण के लिए भारत एक टन प्रति व्यक्ित गैस उत्सर्जित करता है और अमेरिका 20 टन। भारत के जलवायु अधिकारी अजय माथुर ने शनिवार को सवालिया लहजे में पूछा कि ऐसे में भारत को क्यों सबसे बड़े उत्सर्जकों की श्रेणी में गिना जाना चाहिए। जी 20 के कुछ सदस्यों और प्रतिनिधियों ने जापान के इस प्रस्ताव पर चिंता जताई, जिसमें कहा गया है कि सबसे यादा ग्रीन हाउस उत्सर्जित करने वाले देश अपने औद्योगिक क्षेत्र में गैसों के उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित करें और उसके बाद पूरे देश के लिए यही लक्ष्य निर्धारित करें। लेकिन प्रस्ताव में यह साफ नहीं किया गया था कि यह लक्ष्य स्वैच्छिक होगा या अनिवार्य। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने शनिवार को इस आह्वान के साथ इस बैठक का उद्घाटन किया कि विकासशील देश गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए विकसित देशों के प्रयास में सहयोग को आगे आएं। ‘फ्रंेड्स ऑफ द अर्थ जापान’ से जुड़े पर्यावरण कार्यकर्ता यूरी आेनोडेरा ने कहा ‘मैं बैठक में होने वाले विचार के बिंदुआें के प्रति काफी चिंतित हूं।’ रविवार को विशेष बैठक के पहले उन्होंने कहा ‘विकासशील देशों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पर नये आगे के समझौते में उन्हें शामिल करने की बात करने से पहले विकसित देश पहले अपने किए वायदे पर अमल करें।’ अमेरिका एकमात्र ऐसा विकसित औद्योगिक देश है जो क्योटो प्रोटोकॉल को नकारता है।ड्ढr संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सचिवालय के अधिकारी हेल्डोर थोर्गेरिस्सन ने बताया कि इन दोनों गुटों के बीच टकराव ही नहीं देखने को मिला बल्कि वे इसे मिटाने के लिए एक-दूसरे से मिला-जुला प्रयास करने के भी हक में है।ड्ढr उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि 30 अप्रैल से 4 मार्च तक बैंकाक में होने वाले सम्मेलन में भी सदस्य देश इसी भावना से विचार-विमर्श का दौर आगे बढ़ाएंगे।ड्ढr दक्षिण अफ्रीका के पर्यावरण मंत्री मार्तिनुस वेन सशेलक्िवक ने बताया कि यह तो स्पष्ट है कि विकसित और विकासशील देशों में काफी मतभेद हैं। यूरोपीय संघ के वर्तमान अध्यक्ष स्लोवानिया के पर्यावरण मंत्री एंड्रेज क्रान्जक ने कहा ‘वर्गीय (सेक्टर) के बारे में हम सभी एकमत हैं लेकिन जापान का प्रस्ताव अन्य देशों के मुकाबले कुछ अलग है।’ इंडोनेशिया ने इसके लिए यादा धन आवंटन और स्वच्छ तकनीकी के हस्तांतरण की जरूरत बताई।ड्ढr गत दिसंबर में इंडोनेशिया के बाली द्वीप में करीब 10 देश क्योटो प्रोटोकॉल को वर्ष 200तक बदलने के लिए राजी थे। इसके तहत सभी देशों को 2013 तक क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लेने वाले समझौते के मुताबिक उत्सर्जन में कटौती करनी होगी। ड्ढr ं

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