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आतंकवाद पर सफाई जरूरी

सुहेल वहीद का लेख ‘रिश्ता नहीं आतंक से, तो सफाई क्यों?’ (11 मार्च) पढ़ा। इसमें कई सवाल उठाए गए हैं। उनके सवालों के बारे में बताना चाहता हूं कि जब बार-बार आरोप लगाए जाएंगे तो उनका जवाब भी बार-बार देना...

 आतंकवाद पर सफाई जरूरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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सुहेल वहीद का लेख ‘रिश्ता नहीं आतंक से, तो सफाई क्यों?’ (11 मार्च) पढ़ा। इसमें कई सवाल उठाए गए हैं। उनके सवालों के बारे में बताना चाहता हूं कि जब बार-बार आरोप लगाए जाएंगे तो उनका जवाब भी बार-बार देना जरूरी है। वरना संदेश जाएगा कि आरोप सही है और गलतफहमियां फैलेंगी। आज इस्लाम को आतंकवाद के समानार्थक सिद्ध करने के असफल प्रयास किए जा रहे हैं। कोई भी धर्म आतंकवाद का उपदेश नहीं देता फिर उसे किसी धर्म से जोड़ना अन्याय है। आतंकवाद अपने हर रूप में निदंनीय और अक्षम्य अपराध है, चाहे इसके करने वाले व्यक्ित हों या गिरोह अथवा हुकूमतें। पकड़ा जाने वाला हर आतंकवादी मुसलमान कैसे बनता है, इसका खुलासा ब्रिटेन में विफल आतंकी हमले की साजिश में गिरफ्तार भारतीय डॉक्टर मोहम्मद हनीफ के मामले में आस्ट्रेलिया के आतंकवाद निरोधक बल के अधिकारियों क्वीसलैंड के जासूसी सार्जेट एडम सिक्स और संघीय एजेंन्ट नील थंपसन ने भलीभांति कर दिया है।ड्ढr आसिफ खान, बाबरपुर, शाहदरा, दिल्ली लो फ्लोर क्या हाई कैपेसिटी है? लो फ्लोर बसें चलीं तो खूब, पर ये बसें भी डीटीसी बसों का मुकाबला नहीं कर सकती। लो फ्लोर बसें देखने में तो चकाचक हैं, लेकिन इनके अंदर जगह डीटीसी से भी कम है। इन बसों में खड़े होने के लिए भी स्पेस बहुत कम है। डीटीसी बसों में जहां 40-50 लोग आसानी से खड़े हो जाते हैं, वहीं लो फ्लोर बस में 20-25 लोग भी आसानी से नहीं आ पाते हैं। इलेक्ट्रानिक डोर सिस्टम देखने में तो अच्छा लगता है, लेकिन ड्राइवर कई बार इसका नाजायज फायदा उठाते हैं, वे स्टैंड पर बस नहीं रोकते, जिससे आने-जाने वाले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।ड्ढr ऋचा जैन, सादतपुर एक्सटेंशन, दिल्ली कलम की कीमत हिन्दी फिल्मों के शो मैन साहब ने ऐलान किया है कि ‘मनमाफिक स्क्रिप्ट लेकर आआे और एक करोड़ रुपए ले जाआे’ फिर भी उनके पास अभी तक कोई राइटर नहीं आया। भला आएगा भी तो कैसे? हिन्दी सिनेमा में एक बार किसी का चमड़े का सिक्का चल गया तो मानो उसी का लेखन पर अधिकार हो गया चाहे उसने विदेशी साहित्य से कहानी उठाई हो अथवा हिन्दी के कई उपन्यासों की खिचड़ी पका कर कहानी परोसी हो। असली लेखक को पैसे की भूख कम बल्कि सम्मानजनक पुरस्कार की चाह अधिक होती है। यदि आदरणीय शो मैन साहब को भला ही करना है तो बेबस, लाचार लेखकों का करना चाहिए जो मायानगरी में किस्मत चमकाने के चक्कर में फटे हाल बन गए और चंद प्रसिद्ध लेखकों के एकाधिकार को भेदने में असफल रह गए।ड्ढr राजेन्द्र कुमार सिंह, सेक्टर-15, रोहिणी, दिल्ली खौफ खाते हैं मुसलमान भी सुहेल वहीद ने पूछा है कि इस्लाम का आतंकवादसे रिश्ता नहीं है, तो सफाई क्यों देते फिरते हैं। वास्तविकता यह है कि मुख्यधारा के माध्यमों में न इस्लाम पर, न मुसलमानों पर कोई आक्षेप लगाया जाता है। मुख्यधारा में तो सुहेल वहीद जैसे लेखकों के लेख छपते हैं। इस्लाम के विरुद्ध भावना इसलिए होती है कि आतंकवादी खुद को इस्लाम का सैनिक बताते हैं। आतंकवादियों के खौफ से उनके खिलाफ मुसलमान बोल नहीं सकते, यही पेंच है। आतंकवादियों से सुरक्षा का कोई साधन मुसलमानों के पास भी नहीं है।ड्ढr श. द. लघाटे, रामकृष्ण पुरम-6, नई दिल्ली आज भी हैं अच्छाइयां लोगों में शिक्षा की कमी हो सकती है, उनमें सामान्य ज्ञान कम हो सकता है, परंतु भारतीय परिवारों में आज भी माता-पिता की सेवा की जाती है। सभी सरकारी कार्यालयों में आराम नहीं होता, बल्कि अधिकारियों तथा कर्मचारियों को लक्ष्य पूरे करने पड़ते हैं। मियां-बीवी का रिश्ता झूठ पर नहीं चल सकता, यह रिश्ता सत्य पर ही टिका हुआ है।ड्ढr सभी नेता भ्रष्ट नहीं हैं। यदि पाठय़पुस्तकों में ईमानदारी, वीरता, सत्य और अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाया जाएगा तो क्या अनैतिकता का पाठ पढ़ाया जाएगा? यह बात सही है कि आज की व्यस्त दिनचर्या में लोगों के पास समय की कमी है, जिसके कारण वे कई अच्छी बातों को भी भूलते जा रहे हैं। इससे अच्छी बातों का महत्व कम नहीं होता।ड्ढr युघिष्ठिर लाल कक्कड़, गुड़गांव, हरियाणां

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