मुशर्रफ के हाथों गिलानी को ताज
पाकिस्तान के हालात तेजी से बदल रहे हैं। मुल्तान के सैयद यूसुफ रजा अली गिलानी ने 25 मार्च को प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण की। विडम्बना यह है कि उसे शपथ दिलवाने वाला कोई और नहीं उसका दुश्मन राष्ट्रपति...
पाकिस्तान के हालात तेजी से बदल रहे हैं। मुल्तान के सैयद यूसुफ रजा अली गिलानी ने 25 मार्च को प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण की। विडम्बना यह है कि उसे शपथ दिलवाने वाला कोई और नहीं उसका दुश्मन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ही थे। इससे पहले 24 मार्च को नेशनल असेम्बली ने उन्हें 264-42 मतों से अपना नेता चुन लिया। उनके खिलाफ खड़े हुए पाकिस्तान मुस्लिम लीग (कायद)के मशहूर और पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी परवेज इलाही को मात्र 42 मत पड़े। अब गिलानी को इस सदन में दो तिहाई मतों का समर्थन है। इस अवसर पर बोलते हुए मुशर्रफ ने कहा कि मैं नए प्रधानमंत्री और सरकार को भरपूर सहयोग देने और नई सरकार का स्वागत करता हूं। वैसे अब वह क्या कर सकते थे। कुछ शब्द युसफ रजा गिलानी के लिए। यह कई वषरे से पाकिस्तान की राजनीति से जुड़े हुए हैं और एक राजनीति के घर से हैं। यह युवा पीढ़ी के व्यक्ित हैं जो भुट्टो परिवार और खासकर आसिफ अली जरदारी के काफी करीब मानते जाते हैं। बेनजीर की सरकार के समय यह नेशनल असेम्बली के स्पीकर थे। बाद में 2001 में मुशर्रफ सरकार ने भ्रष्टाचार के इल्जाम में पकड़ कर मुकदमा चलाया। बताया जाता है कि मुशर्रफ ने इन्हें साथ मिलाने के लिए प्रलोभन दिए परंतु इन्होंने जेल काटना ठीक माना और 5 साल की कैद के बाद जब सरकार कुछ न साबित कर सकी तो उनहें छोड़ दिया गया। पाकिस्तान के सभी समाचार पत्र इनके प्रधानमंत्री बनाने पर उत्साहित हैं। समाचार पत्र कह रहे हैं कि यह मिलीजुली सरकार की साझी राय पर इनका चयन हुआ। इस बात को सभी समाचारपत्र कह रहे हैं कि शायद गिलानी अंतरिम प्रधानमंत्री रहेंगे। बाद में आसिफ जरदारी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। जरदारी के खिलाफ चल रहे सभी मुकदमे खारिज हो गए हैं और प्रधानमंत्री की कुर्सी का रास्ता साफ हो गया है। सदन में प्रधानमंत्री चुनने के बाद शपथ से पहले गिलानी ने कहा कि जज जो अपने घरों में बंद थे, उन्हें आजाद किया जाए। हैरानगी है कि कामचलाऊ सरकार ने कोई विरोध नहीं किया और पुलिस ने रुकावटें साफ कर दी। खबर है कि पीपीपी ने मुशर्रफ को अंदर से आश्वासन दिया है कि वह मुशर्रफ पर महाभियोग अथवा जजों की बहाली के मुद्दे की हिमायत नहीं करेगी। लेकिन नवाज शरीफ के कड़े रुख के चलते यह असंभव हो गया है। अब जबकि यह साफ है कि दोनों पार्टियां मुशर्रफ पर दबाव रखने पर मजबूर हैं। लेकिन दो तिहाई बहुमत (दोनों सदनों में) न होते हुए मुशर्रफ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। सीनेट के आधे सदस्य 200में बदले जाएंगे तो जाहिर है कि 200तक कुछ संभव नहीं है। दोनों पार्टियां वचनबद्ध हैं कि 30 दिन के अंदर जजों को बहाल कर दिया जाएगा, पर क्या यह मुशर्रफ होने देंगे।ं