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‘.हम पर है खत्म शाम-ए-गरीबाने लखनऊ’

‘आओ मिलकर इंक़लाबे-तातर पैदा करें दहर पर इस तरह छा जाएँ कि सब देखा करें’..ऐसे अशारों के जरिए इंकलाबी शायरी की सफ (पंक्ित) में अव्वल असरारुल हक ‘मजाा’, पेपर मिल की ‘कब्रिस्तान जारिया’ की सफ में पीछे हो...

 ‘.हम पर है खत्म शाम-ए-गरीबाने लखनऊ’
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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‘आओ मिलकर इंक़लाबे-तातर पैदा करें दहर पर इस तरह छा जाएँ कि सब देखा करें’..ऐसे अशारों के जरिए इंकलाबी शायरी की सफ (पंक्ित) में अव्वल असरारुल हक ‘मजाा’, पेपर मिल की ‘कब्रिस्तान जारिया’ की सफ में पीछे हो गए हैं। कब्र को लोना लग गया है। प्लास्टर झड़ता जा रहा है। उनकी मजार तक पहुँचने के लिए कई दूसरी कब्रों पर से गुजरना होता है..। उर्दू के कीट्स कहे गए ‘मजाा’ पर गत सप्ताह डाक टिकट भी जारी हो गया लेकिन सूबाई रहनुमाओं ने फिलवक्त तक उनकी कब्र का हाल भी नहीं लिया..!ड्ढr ‘मजाा’ के निधन के 53 सालों बाद उन पर पाँच रुपए कीमत वाला डाक टिकट जारी हुआ जो सोमवार से जीपीओ से मिलेगा। हैदराबाद (महानगर) के ‘सिगरामऊ हाउस’ में जन्मे ‘मजाा’ ने अलीगढ़ विवि से तालीम हासिल की थी। वह आम जिंदगी और आजादी की जद्दोजहद दोनों में औरत के हुकू़क के हामी थे। इसीलिए औरत का आँचल उनके लिए परचम था और माथे का टीका मर्द की किस्मत का तारा। ‘मजाा’ की शायरी पर कलम चलाने वालों ने लिखा है कि रोगार और महबूबा दोनों को उन्होंने जिस तरह से खोया, उससे उनकी शख्सियत टूटने लगी थी।ड्ढr हालाँकि इस दौर में भी उन्होंने ख्वाबे सहर, शहर-निगार, अँधेरी रात जैसी रचनाएँ लिखीं। ‘..शहर की रात और मैं नाशादो-नाकारा फिरूँ जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ गै़र की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ ऐ ग़मे-दिल क्या करूँ ऐ वहशते-दिल क्या करूँ’ ऐसे ही दौर की नज्म का हिस्सा है।ड्ढr ऐसे शायर ‘मजाा’ चार दिसम्बर 1ो लालबाग के एक ताड़ी खाने की छत पर बेहोश मिले। उन्हें बलरामपुर अस्पताल ले जाया गया। जहाँ पाँच दिसम्बर को उनका निधन हो गया। ‘मजाा’ के शेर पढ़ने वालों को भी यह नहीं पता कि वह ताड़ीखाना कौन सा था, जहाँ उन्होंने शराब का आखिरी जाम पिया..? ‘कब्रिस्तान जारिया’ के मुँशी मोहम्मद रफी कहते हैं कि लम्बे समय तक मजाा की कब्र पर कोई दो फूल चढ़ाने भी नहीं आएगा..ऐसा अंदेशा मजाा साहब को रहा होगा, तभी तो उन्होंने लिखा था-‘ अब इसके बाद सुबह है, सुबहे नौ मजाा, हम पर है खत्म शाम-ए-गरीबाने लखनऊ!’ यही शेर उनकी कब्र की शिनाख्त कराता है..!

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