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आज के दिन धोखा खाने में रिस्क नहीं

प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन ने कहा है कि 1 अप्रैल वह दिन है जो बताता है कि बाकी के 364 दिनों में हम क्या हैं? 1 अप्रैल यानी ‘ऑल फू ल्स डे’ को अन्य पश्चिमी त्योहारों के अवसर पर दिखने वाले जोशो खरोश या...

 आज के दिन धोखा खाने में रिस्क नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन ने कहा है कि 1 अप्रैल वह दिन है जो बताता है कि बाकी के 364 दिनों में हम क्या हैं? 1 अप्रैल यानी ‘ऑल फू ल्स डे’ को अन्य पश्चिमी त्योहारों के अवसर पर दिखने वाले जोशो खरोश या साज-सजावट जैसा कुछ नहीं दिखेगा। इस दिन हैप्पी वेलेंटाइन डे या मेरी क्रिसमस की तरह मोटे इश्तेहार और उपहारों का लेन-देन नहीं होगा। बस लोग-बाग चुपके-चुपके एक दूसरे को ‘फूल’ बनाएंगे और एक दूसरे का मजाक उड़ाकर ‘वर्क लोड’ से लदे-फदे जीवन में हंसी बिखेरेंगे। कॉल सेंटर में काम करने वाले मनीष रावत क हते हैं कि हमने एक कॉमन वेबसाइट बनाई है- चुप्पा जी। हम उस पर एक दूसरे को लेकर कमेंट भेजते रहते हैं। एक अप्रैल का मौका भी हम जाने नहीं देंगे। इस पर कुछ न कुछ तो धमाल मचाएंगे ही कि साथी इसे काफी समय तक याद रखें। यह मौका होता है जब हम ऑप्श मैनेजर से लेकर टीम लीडर तक से मजाक कर लेते हैं। गर्ल्स कॉलेज की छात्रा प्रिया क हती हैं कि मैं तो 1 अप्रैल को अपनी फ्रेंड्स को मॉल में बुलाऊंगी लंच के लिए। बचपन में हम अपने पड़ोसियों को फू ल बनाते थे। मजे की बात यह कि इस दिन अगर कुछ सच भी बोलो तो उसे लोग झूठ मानते हैं। झूठ और सच की फिलासफी समझने का दिन है यह। पहली अप्रैल को मंगलवार है यानी शहर के मॉल बंद, बाजार बंद। सड़कों पर छुट्टी का नजारा। राजीव किशोर कहते हैं कि काश पहली अप्रैल मंगलवार को नहीं होती तो मैं पता नहीं किस-किस को मॉल बुलाकर उनका फुल इंटरटेनमेंट करा देता। एक एक्सपोर्ट हाउस की एचआर हेड पूनम गोगिया क हती हैं इस शहर में खास तौर पर कामकाजी औरतें और युवा वर्ग काम के बोझ से दबे हैं, ऐसे में कोई ऐसा दिन, जो थोड़ा-सा तनाव घटा दे, पुरानी हंसी लौटा दे भला लगता है। एक अन्य एक्सपोर्ट हाउस के अनिरुद्ध कहते हैं हम लोग रोजाना एक दूसरे को बेवकूफ बना रहे हैं। दुकानदार ग्राहक को, ग्राहक इंम्प्लायर को, इंप्लायर कर्मी को, पति पत्नी को, दोस्त दोस्त को। हमें पता नहीं चलता कि हम मूर्ख बन रहे हैं। एक दिन जब किसी को क्षणिक मूर्ख बना दिया जाए तो वह खूब खुश होता है। क्योंकि उसे पता है कि यह रोज से अलग सिर्फ आज की बात है, जिसमें वास्तविक धोखा नहीं है। शहर में समृद्धि तो आई मगर हंसी समृद्धि के बरक्स महंगी होती गई है, सो एक दिन मूर्ख बनना महसूस कीजिए, करवाइए, ठहाके लगाइए और जोर से बोलिए हम सब मूर्ख हैं.।

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