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कुपोषितों के पोषण पर दो रु. से भी कम खर्च

बिहार सरकार सूबे के कुपोषित बच्चों और खून की कमी वाली (एनीमिक) माताओं पर प्रति व्यक्ति सिर्फ 1 रुपया 85 पैसे खर्च करती है। इसमें एक रुपया केंद्र सरकार और बाकी पैसा राज्य सरकार देती है। अर्थात प्रति...

 कुपोषितों के पोषण पर दो रु. से भी कम खर्च
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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बिहार सरकार सूबे के कुपोषित बच्चों और खून की कमी वाली (एनीमिक) माताओं पर प्रति व्यक्ति सिर्फ 1 रुपया 85 पैसे खर्च करती है। इसमें एक रुपया केंद्र सरकार और बाकी पैसा राज्य सरकार देती है। अर्थात प्रति बच्चे दो रुपए से भी कम उपलब्ध होता है। कुपोषण दूर करने और पर्याप्त भोजन के लिए मिलने वाला यह पैसा अपर्याप्त है। नतीजा है कि कुपोषण और एनीमिया के शिकार बच्चों-ाच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है।ड्ढr ड्ढr कुपोषित बच्चों और माताओं के लिए राज्य में चल रही योजनाओं का आलम यह है कि कभी भी पूरा पैसा खर्च नहीं हो पाता है। 2002-07 के बीच सरकार ने 884 करोड़ रुपए से अधिक का प्रावधान किया। इसमें से 720 करोड़ रुपये रिलीज किया गया और खर्च हुए सिर्फ 50 करोड़ रुपये। सरकार ने 2रोड़ रुपये का बचत कर लिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित आयुक्तों की रिपोर्ट में बताया गया है कि बाल विकास योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार है। सीएजी की ताजा रिपोर्ट में भी भ्रष्टाचार की पुष्टि की गई है। बिहार में चल रही परियोजना के बार में विश्वबैंक की रिपोर्ट के अनुसार 1और 2005-06 में 6 माह से 35 माह के बच्चों में एनीमिया के प्रतिशत का अनुपात जहां 74.2 था,वह बढ़कर 7प्रतिशत हो गया। राज्य में एक तरफ योजना पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ कुपोषित बच्चों और महिलाओं की तादाद बढ़ती जा रही है। अति कुपोषित बच्चों के साथ रक्त की कमी वाले बच्चों एवं महिलाओं का प्रतिशत 1में क्रमश: 78 एवं 62 प्रतिशत था।ड्ढr ड्ढr यह 2005-06 में बढ़कर 88 एवं 68 प्रतिशत हो गया। राज्य में 544 बाल विकास परियोजनाओं के माध्यम से 80771 आंगनबाड़ी केंद्र चल रहे हैं। राज्य के 64 लाख बच्चों ,12 लाख गर्भवती व शिशुवती महिलाओं और 24 हाार से अधिक किशोरी महलाओं के लिए पौष्टिक भोजन का कार्यक्रम चल रहा है। 2002-03 से 2006-07 तक किए गए सव्रेक्षण का सार यह है कि राज्य के किसी आंगनबाड़ी केंद्र ने 225 दिनों से अधिक का पूरक पोषाहार नहीं दिया। पूरक पोषाहार कार्यक्रम का उद्देश्य 0-6 वर्ष के बच्चों को 300 कैलोरी एवं दस ग्राम प्रोटीन प्रदान करना था। गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 500 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन प्रदान कराना था। बच्चों एवं माताओं को 300 दिन पूरक पोषाहार दिया जाना था। दिलचस्प यह है कि सिर्फ सात प्रतिशत केंद्रों ने 225 दिनों तक पूरक पोषाहार उपलब्ध कराया। महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि राज्य में कुपोषित बच्चों का प्रतिशत 1े 54 प्रतिशत से बढ़कर 2005-06 में 58 प्रतिशत हो गया।

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