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प्रत्याशियों के गले की फांस बनी दुर्गावती परियोजना

दुर्गावती जलाशय परियोजना सासाराम लोकसभा क्षेत्र की चुनावी फिाां में एकबार फिर घुल गई है। पिछले 11 लोकसभा चुनावों से मुद्दा बनती आ रही यह परियोजना इस बार प्रत्याशियों के गले की फांस बन चुकी है। वोटर...

 प्रत्याशियों के गले की फांस बनी दुर्गावती परियोजना
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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दुर्गावती जलाशय परियोजना सासाराम लोकसभा क्षेत्र की चुनावी फिाां में एकबार फिर घुल गई है। पिछले 11 लोकसभा चुनावों से मुद्दा बनती आ रही यह परियोजना इस बार प्रत्याशियों के गले की फांस बन चुकी है। वोटर आर-पार के मूड में हैं और प्रत्याशी बगले झांक रहे हैं। यह परियोजना रोहतास, कैमूर के दक्षिणी पठारी इलाकों के आठ हाार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की लगभग पांच लाख आबादी की जीवन रखा है। सदियों से पिछड़े इस क्षेत्र के वोटरों की भीड़ जब परियोजना से जुड़े सवाल रखती है तो उम्मीदवारों की जुबान लडख़ड़ाने लगती है।ड्ढr ड्ढr दुर्गावती का प्रचलित अर्थ चाहे जो हो लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि परियोजना दुर्गति का पर्याय बन चुकी है। वर्ष 1में 25 करोड़ की लागत वाली इस योजना का शिलान्यास जगजीवन राम ने किया था। तभी से कभी लूट-खसोट तो कभी नक्सलियों के आतंक और अंत में वन विभाग की पेंच में घिरी यह महत्वाकांक्षी योजना अब तक पूरी नहीं हो सकी है। जगजीवन राम की पुत्री व वर्तमान सांसद मीरा कुमार लोगों को यह कहकर बहलाती हैं कि उनके ही प्रयत्नों से परियोजना को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी मिली। अब इसे पूरा करने और खेतों को पानी देने का काम राज्य सरकार का है।ड्ढr भाजपा प्रत्याशी मुनिलाल समझाते हैं कि योजना आयोग द्वारा बंद की जा चुकी परियोजना को वर्ष 1में वित्तीय स्वीकृति दिलाकर उन्होंने शुरू कराया। उनकी एनडीए सरकार के प्रयत्नों से आज यह पूरी होने के कगार पर है। जबकि राजद उम्मीदवार ललन पासवान अपने द्वारा चलाये गये कथित व्यापक आंदोलन और सुप्रीम कोर्ट में अपने प्रयासों को योजना को हरी झंडी मिलने का कारण बताते हैं। साथ ही जीत जाने पर इसे तत्काल पूरी कराने और लोगों का भाग्य बदलने का दावा करते हैं। उम्मीदवारों द्वारा दी जा रही इन दलीलों पर वोटर कितना भरोसा करते हैं इसका अंदाजा तो उनके तेवर से ही लगता है। जतपुर के कृष्णा सिंह का कहना है कि इस परियोजना ने एक दो नहीं लोकसभा के पूर ग्यारह चुनावों को देखा है। हरबार नेताओं की यही दलील होती है। ओरगांव के पप्पू तिवारी कहते हैं कि योजना का खर्च 25 करोड़ से बढ़कर हाार करोड़ से ऊपर हो गया। लेकिन जनप्रतिनिधियों में इसे पूरा कराने की इच्छाशक्ित नहीं जगी।

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