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दिलों को जोड़ती यात्रा

दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह द्वारा 1708 ईस्वी में देहावसान से पूर्व नांदेड़ में गुरु ग्रंथ साहिब को शाश्वत गुरु की पदवी सौंपन के तीन सौ साल पूरे होन के जश्न का ऐतिहासिक अवसर। इस मुबारक मौके पर...

 दिलों को जोड़ती यात्रा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह द्वारा 1708 ईस्वी में देहावसान से पूर्व नांदेड़ में गुरु ग्रंथ साहिब को शाश्वत गुरु की पदवी सौंपन के तीन सौ साल पूरे होन के जश्न का ऐतिहासिक अवसर। इस मुबारक मौके पर गए साल नवम्बर में नांदेड़ से ही पांच प्यारों की अगुवाई में प्रारंभ हुई ऐतिहासिक जागृति यात्रा कई पड़ावों से गुजरते हुए जारी है। फूलों से सजी पालकीनुमा गाड़ी पर गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश और साथ में लोगों के दर्शनार्थ दशम पातशाह के शस्त्र। ‘अवलि अल्लह नूर उपाइआ कुदरत के सब बंदे, एक नूर ते सब जग उपजिआ कउन भल को मंदे’ का समतावादी संदेश देती यह यात्रा जिस शहर या कस्बे में पहुंचती है, स्थानीय लोगों का पूरा कारवां जुड़ जाता है उसके साथ। कहीं-कहीं तो सिख कम दिखते हैं गैर सिख ज्यादा। इनमें आम सनातनधर्मी के अलावा मंदिर के पुजारी-पुरोहित भी हैं और इस्लाम धर्म के अनुयायी व मौलवी भी। मेनस्ट्रीम मीडिया की आंखों से एकदम ओझल है यह ऐतिहासिक यात्रा और राष्ट्रीय एकीकरण में उसका महत्व। शायद इसलिए कि कोई बड़ा राजनेता नहीं जुड़ा है उससे। जगजीत सिंहहालांकि यह जागृति यात्रा सही मायने में भारत जोड़ा का कार्य कर रही है। दिलों को जोड़ने वाली यह यात्रा कई राज्यों से गुजर चुकी है- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, बिहार, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा, हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़। यात्रा जहां से गुजरती है, उसके सत्कार में श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है। सांझीवालता का पैगाम देने वाले श्री गुरु ग्रंथ साहिब को सब अपने अपने ढंग से सिजदा करते हैं। कई गैर सिख मकानों की छतों से गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी पर फूलों की वर्षा करते दिखते हैं। कुछ सनातनधर्मी थाल में आरती दीप सजा और जला कर लाए हैं। कहीं बुके अर्पित किए जा रहे हैं ता कहीं केंडिल लाइट के साथ अखंड ज्योति को सिजदा किया जा रहा है। कंधे स कंधा जोड़ कर खड़े हिन्दू मुस्लिम और सिख अनेकता में एकता का अद्भुत नाारा पेश करते हैं।

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