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फ्री इंडिया के मुफ्तिया बजट की अपनी हसरत

जैसे मृत्यु जीवन की अनिवार्यता है, वैसे ही बजट शासन की। मृत्यु से कोई अपेक्षा रखना मुश्किल है, पर बजट और मौत में एक अहम अंतर है। व्यक्ति की जिंदगी का पटाक्षेप एक बार होता है, बजट हर साल आ धमकता है।...

फ्री इंडिया के मुफ्तिया बजट की अपनी हसरत
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 23 Feb 2015 12:45 AM
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जैसे मृत्यु जीवन की अनिवार्यता है, वैसे ही बजट शासन की। मृत्यु से कोई अपेक्षा रखना मुश्किल है, पर बजट और मौत में एक अहम अंतर है। व्यक्ति की जिंदगी का पटाक्षेप एक बार होता है, बजट हर साल आ धमकता है। ज्ञानी-विचारक हर चुनाव के बाद हमें बरगलाते हैं। दिल्ली में बैठे जन-प्रतिनिधि अब जनता की सुनने लगे हैं। वित्त मंत्री भी इसी श्रेणी के हैं। क्या पता, अपन जैसों की अपेक्षाओं पर भी ध्यान दे ही दें?
हम जैसे दिलजलों का ख्याल है कि सरकार में कर्मचारियों के ठाठ हैं। घर, कार, फोन, दौरे के नाम पर सैर-सपाटे वगैरह के खर्चों से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं है। ज्यादातर फ्री हैं, कुछ रियायती दर पर। संविधान में भले सब नागरिक समान हैं, किंतु अफसर कतार में लगें, यह अनुचित है। मुल्क की समस्याओं से जूझें कि बच्चे के स्कूल में प्रवेश से? उनका वक्त जाया होना राष्ट्रीय समय की बर्बादी है। इसीलिए उनका कोई न कोई सहायक, मय सरकारी गाड़ी, ऐसे निजी कामों के लिए दौड़ता रहता है।

जनता के चुने हुए प्रतिनिधि कैसे पीछे रहें? लोकतंत्र की मुफ्तखोरी में नेताशाही का अफसरी तंत्र से मात खाना जनता का अपमान है। सेवा का मापदंड सुविधा है। लाखों लोगों की सेवा करते हैं, तो सुविधाएं भी सैकड़ों में होनी ही चाहिए। कहना कठिन है कि उनका घर, सहायक, सफर, खान-पान, दफ्तर, बिजली-पानी, फोन, खान-पान, वाई-फाई, रुपये-पैसे, कपड़ा-लत्ता आदि क्या फ्री है, क्या प्रशंसकों की प्रतीकात्मक भेंट?
अफसर-नेता देश के अनुकरणीय आदर्श हैं। इनकी मुफ्तिया मानसिकता से प्रेरित होकर अपने मन में भी फ्री की कामना पनपी है। विशिष्टता की पहचान मुफ्त में जीवन-यापन है। जनतंत्र में जो दुर्बल है, वह जनता है। जो कभी दुर्बल था, अब सबल है, वह नेता है। यह आम आदमी के अफलातून बनने की यात्रा है। वित्त मंत्री से एक ही गुजारिश है- बिजली-पानी, इंटरनेट फ्री करो। दवा-दारू, इलाज वगैरह भी। वही बजट श्रेष्ठ है, जो हमें बैठे-बिठाए खाना खिलाए। अपंग बनाए। भविष्य का अपना निश्चय है, जो मुफ्त में जितनी सुविधाएं देगा, उतने ही वोट लेगा, वरना हम उस का ‘आप’ करने को कृतसंकल्प हैं।

 

 

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