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लोकसभा की तरह बन रही है भाजपा की बिहार रणनीति

बिहार में लोकसभा की तरह विधानसभा चुनावों में भी भाजपा विरोधी खेमे के कुछ प्रमुख नेताओं को अपनी तरफ लाकर चुनाव मैदान में उतार सकती है। पार्टी नेताओं का दावा है कि जीतन राम मांझी सरकार के कुछ मंत्रियों...

लोकसभा की तरह बन रही है भाजपा की बिहार रणनीति
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 13 Jan 2015 09:19 AM
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बिहार में लोकसभा की तरह विधानसभा चुनावों में भी भाजपा विरोधी खेमे के कुछ प्रमुख नेताओं को अपनी तरफ लाकर चुनाव मैदान में उतार सकती है। पार्टी नेताओं का दावा है कि जीतन राम मांझी सरकार के कुछ मंत्रियों समेत जद (यू), राजद व कांग्रेस के चालीस से ज्यादा विधायक उसके संपर्क में हैं।

गौरतलब है कि पार्टी ने बिहार के लिए दो तिहाई बहुमत के साथ मिशन 185 प्लस का लक्ष्य तय किया है जिसे हासिल करने के लिए उसने सारे राजनीतिक विकल्प खुले रखे हैं।

सूबे में भाजपा अपनी चुनावी रणनीति को लेकर पूरी तरह मस्तैद हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को चार घंटे की मैराथन बैठक में साफ कर दिया है कि भाजपा का लक्ष्य सिर्फ जीत है और उसके लिए जो भी जरूरी होगा, उसे करने में कोई संकोच नहीं होगा।

सूत्रों के अनुसार इस बात के भी साफ संकेत दे दिए गए हैं कि रणनीति के तहत अन्य दलों के कुछ प्रुमख नेता भाजपा में आ सकते है। इन नेताओं का उपयोग उन्हीं क्षेत्रों में किया जाएगा, जिन पर अभी भाजपा मजबूत नहीं है। पार्टी नेताओं का दावा है कि जीतन राम मांझी सरकार के चार मंत्री उसके संपर्क में हैं इनमें तीन अगड़े वर्ग व एक पिछड़े वर्ग से आते हैं।

मांझी रहें या जाएं, फायदा भाजपा को ही
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को लेकर भाजपा नेता ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहते हैं। हालांकि उनका मानना है कि मांझी को मुख्यमंत्री बनाए रखने व हटाने के जद (यू) के किसी भी भावी फैसले से भाजपा को ही लाभ होगा। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार पिछले चुनाव में मांझी ने भाजपा के टिकट के लिए संपर्क किया था, तब भाजपा ने गठबंधन धर्म का हवाला देते हुए साफ कर दिया था कि वह अपने सहयोगी दल को नहीं तोडम् सकती है। सूत्रों के अनुसार इस समय केंद्रीय मंत्री व भाजपा की सहयोगी लोजपा के नेता रामविलास पासवान मांझी के संपर्क में हैं।

विलय से कोई खतरा  नहीं
राजद व जद (यू) के विलय की तैयारियों से भी भाजपा नेता परेशान नहीं है। पार्टी का मानना है कि लालू यादव चुनाव मैदान से बाहर है और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद से हटने व लालू के साथ जाने के कारण अब पहले जैसे प्रभावी नहीं रहे हैं।

जरूरी न हो तो प्रदेश से बाहर न जाएं
दूसरी तरफ भाजपा ने अपने घर को चाक चौबंद करना शुरू कर दिया है। प्रदेश के नेताओं को दो टूक कहा गया है कि उन्हें जो काम सौंपा जाए उसे ही करें और जहां तक संभव हो विधानसभा चुनावों तक राज्य से बाहर न जाएं। वे खुद के या अपना नाते रिश्तेदारों को टिकट के लिए सिफारिश भी न करें।

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