सेकुलरिज्म का सच
जब कोई हिंदूवादी नेता किसी भी धर्म से संबंधित कोई बयान देता है, तो सेकुलर गिरोह एकत्र हो जाता है और उस हिंदूवादी नेता व तमाम हिंदूवादी संगठनों को कोसना शुरू कर देता है। यदि वह अपने धर्म के बारे में...
जब कोई हिंदूवादी नेता किसी भी धर्म से संबंधित कोई बयान देता है, तो सेकुलर गिरोह एकत्र हो जाता है और उस हिंदूवादी नेता व तमाम हिंदूवादी संगठनों को कोसना शुरू कर देता है। यदि वह अपने धर्म के बारे में कुछ कहता है, तो उसे संकीर्ण विचारों का कहा जाता है और यदि वह दूसरे किसी संप्रदाय के बारे में कोई टिप्पणी करता है, तो उसे सेकुलरिज्म पर आक्रमण करार दिया जाता है। धर्मातरण पर गला फाड़-फाड़कर चीखने वाली मायावती सहित तमाम कथित सेकुलर पार्टियों के नेता बसपा नेता हाजी याकूब कुरैशी द्वारा पेरिस हमलावरों के लिए इनाम के ऐलान पर खामोश क्यों हैं? कोई उनकी आलोचना नहीं कर रहा है, बल्कि देश की सबसे बड़ी सेकुलर कही जाने वाली कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने पेरिस के आतंकी हमले को ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ करार दिया है। भारत के नेताओं की यही दोहरा आचरण खलता है। अपने देश में इस तरह के वातावरण को देखकर मन में यह प्रश्न उठता है कि क्या यही सेकुलरिज्म है? और यदि यही सेकुलरिज्म है, तो धिक्कार है ऐसे सेकुलरिज्म पर।
राजेंद्र गोयल
बल्लबगढ़, फरीदाबाद
सीमा पर गोलीबारी
दिल्ली-लाहौर बस सेवा को रोकना और पोरबंदर की तरफ आने वाली विस्फोटकों से भरी नाव, दोनों घटना समझने के लिए काफी है कि भारत के साथ पाकिस्तान कैसा संबंध चाहता है। पेशावर हमले के बाद नवाज शरीफ ने आतंक को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम खाई थी। क्या अब भी समझना बाकी है कि पाकिस्तान ने जो बोया, वही उसके लिए घातक हो गया। पाकिस्तान को यह रक्तपात बंद कर देना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि नवाज शरीफ यह काम करना ही नहीं चाहते। इसलिए वक्त आ गया है कि पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश घोषित कर देना चाहिए।
श्याम सुंदर
चाकिया, चंदौली
चौंकिए नहीं, सतर्क रहिए
यह धार्मिक कट्टरता थी या मजहबी उन्माद था? जिनके नाम पर यह सब कुछ हुआ, क्या वह किसी की जान ले लेने को जायज ठहराते? कलम के खिलाफ बंदूक के तमाशे को पूरा विश्व स्तब्ध होकर देख रहा है। किसी को भी पता नहीं कि कल कहां और क्यों हमला होगा। धर्म विशेष के नाम पर ऐसी घटनाएं अब चौंकाती नहीं हैं, बल्कि सावधान करती हैं कि यदि ऐसी ताकतों के विरुद्ध जल्द ही कोई कारगर उपाय नहीं किए गए, तो यह विनाशलीला पता नहीं किस-किसको लील लेगी। पेरिस की घटना को अंजाम देने वाले लोगों ने यह साबित कर दिया कि कलम की ताकत को यदि वे मात नहीं दे सकते, तो मौत अवश्य दे सकते हैं। शायद उन्हें यह पता नहीं कि गोलियों से वे किसी को मौत तो दे सकते हैं, पर किसी के विचारों को नहीं मार सकते। नफरत से नफरत और हिंसा से हिंसा का जन्म होता है, न कि श्रद्धा और प्रेम का। लेकिन आए दिन निदरेष और मासूमों को मौत देने वाले लोग व उनके संगठन इस बात को नहीं समझ सकते, क्योंकि उनकी भाषा मात्र और मात्र गोलियों और बमों की है।
वंदना बरनवाल
लखनऊ , उ.प्र.
पुरस्कार के पीछे
पद्म पुरस्कारों के लिए बीते दिनों जो हो-हल्ला मचा, उससे यह बात जाहिर हो जाती है कि पुरस्कारों को पाने के लिए लॉबिंग को बतौर हथकंडा इस्तेमाल किया जाता है। निस्संदेह साइना नेहवाल सम्मान की हकदार हैं, क्योंकि उन्होंने भारत के लिए कई पदक जीते हैं। लेकिन जिस तरह से मीडिया में मामला आया, उससे एक शोभनीय स्थिति तो नहीं ही बनी, उलटे लोगों को यह लगा कि साइना नेहवाल भी पदक के लिए लॉबिंग करती हैं। बड़े खिलाड़ियों को अगर यह सब करना पड़ता है, तो इसमें व्यवस्था भी बराबर का गुनहगार है। इसलिए अच्छा यही होगा कि एक स्वतंत्र कमेटी का गठन हो, जो पुरस्कारों के लिए नामों की घोषणा करे।
दीपक कुमार
खानपुर, दिल्ली