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राजपक्षे को युद्ध अपराधों के लिए दंडित करने की मांग

तमिलनाडु की दो राजनीतिक पार्टियों ने शुक्रवार को मांग की कि श्रीलंका के निवर्तमान राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के खिलाफ युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इन दोनों राजनीतिक पार्टियों में...

राजपक्षे को युद्ध अपराधों के लिए दंडित करने की मांग
एजेंसीFri, 09 Jan 2015 05:46 PM
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तमिलनाडु की दो राजनीतिक पार्टियों ने शुक्रवार को मांग की कि श्रीलंका के निवर्तमान राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के खिलाफ युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

इन दोनों राजनीतिक पार्टियों में मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एमडीएमके) और पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) शामिल हैं।

एमडीएमके के महासचिव वाइको ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना से जेलों में कैद सभी तमिलों को रिहा करने का आग्रह किया।

तमिलनाडु के राजनीतिक दलों और मानवाधिकार समूहों ने राजपक्षे पर आरोप लगाया है कि मई 2००9 में युद्ध के अंतिम चरण में हजारों तमिलों की हत्याओं के लिए वह जिम्मेदार हैं।

पीएमके पार्टी के संस्थापक एस. रामदास ने कहा कि श्रीलंका के लोगों ने राजपक्षे को हराकर उन्हें सजा दी है।

उन्होंने कहा कि विपक्षी उम्मीदवार सिरिसेना की जीत का मुख्य कारण उन्हें तमिलों का भारी समर्थन मिलना है।

रामदास ने यह भी कहा कि राजपक्षे पर युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

रामदास और वाइको लंबे समय से लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के समर्थक रहे हैं, जिसका नेतृत्व 2009 में खत्म हो गया।

मनिथानेय मक्कल काची (एमएमके) के  एक विधायक एम.एच. जवाहिरुल्ला ने कहा कि राजपक्षे की हार सभी तानाशाहों के लिए चेतावनी होनी चाहिए।

उन्होंने कहा,"यह खुशी की बात है कि राजपक्षे की हार हुई और देश के अल्पसंख्यकों ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई।"

उन्होंने कहा,"राजपक्षे की हार उन सभी लोगों के लिए चेतावनी है, जो एक लोकतांत्रिक देश में तानाशाही लाना चाहते हैं।"

तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष तमिलिसाई सुंदरराजन ने नस्लीय मुद्दों के राजनीतिक समाधान की मांग की।

संसदीय मामलों के मंत्री एम.वेंकैया नायडू ने श्रीलंका की नई सरकार से संविधान में 13वें संशोधन का आग्रह किया है, ताकि तमिल अल्पसंख्यकों की इच्छाएं पूरी हो सके।

संविधान का 13वां संशोधन एक भारतीय पहल है, जिसका उद्देश्य प्रांतों को ज्यादा अधिकार देना है। 

राजपक्षे की सरकार ने इसके प्रावधानों को संकट में डाल दिया था, जिसपर भारत ने निराशा जताई थी।

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