अभिव्यक्ति पर हमला
क्या एक पत्रिका को धर्म पर मजाक करना चाहिए? स्वाभाविक रूप से देश के कानून के अनुरूप उसे यह हक है। शार्ली एबदो ने कैथोलिक पोप को भी बार-बार निशाना बनाया। इस मुद्दे पर एक कैथोलिक संगठन के खिलाफ...
क्या एक पत्रिका को धर्म पर मजाक करना चाहिए? स्वाभाविक रूप से देश के कानून के अनुरूप उसे यह हक है। शार्ली एबदो ने कैथोलिक पोप को भी बार-बार निशाना बनाया। इस मुद्दे पर एक कैथोलिक संगठन के खिलाफ मुकदमा भी जीता। कैथोलिक अनुयायी पोप पर किए जाने वाले व्यंग्यों पर जितना भी परेशान हों, पर वे उसे स्वीकार करते हैं। यहां सरकार को भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। 2006 में कार्टून संबंधी विवाद में डेनमार्क के प्रधानमंत्री आंदर्स फो रासमुसेन ने ठीक ही कानूनी कदम उठाने से मना कर दिया था। एक आजाद, लोकतांत्रिक समाज को इसे सहना होगा। सरकार इस सहनशीलता की अपने सभी नागरिकों से अपेक्षा कर सकती है। मुसलमानों के साथ विशेष बर्ताव नहीं हो सकता।... हमले के नतीजों के बारे में सोचकर गले में फांस नजर आती है। फ्रांस में मुसलमानों की बड़ी आबादी है। उनमें से बहुत से बेरोजगार हैं, समाज के हाशिये पर रहते हैं। उग्र दक्षिणपंथी नेशनल फ्रंट विदेशियों व खासकर मुसलमानों के खिलाफ प्रचार कर रही है। पिछले साल के यूरोपीय चुनावों में वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। उसके समर्थक अब अपनी पुष्टि होते देखेंगे। इस्लाम विरोधी भावनाएं बढ़ेंगी और मुसलमानों का गुस्सा भी। और इसके नतीजे फ्रांस में ही नहीं रुकेंगे। यूरोपीय संघ के लगभग हर देश में विदेशी लोगों की मुखालफत करने वाली पार्टियों की लोकप्रियता बढ़ी है। एक छोटे से गुट की कारस्तानी जल्द ही पूरे धर्म और उसके मानने वालों की कार्रवाई बन जाएगी।
डायचे वेले वेब पोर्टल में क्रिस्टॉफ हाजेलबाख