जनादेश का अर्थ
जम्मू-कश्मीर और झारखंड, दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को अच्छी सफलता मिलने की भविष्यवाणियां की जा रही थीं। ये भविष्यवाणियां पूरी तरह नहीं, तो बड़ी हद तक सच साबित हुई हैं।...
जम्मू-कश्मीर और झारखंड, दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को अच्छी सफलता मिलने की भविष्यवाणियां की जा रही थीं। ये भविष्यवाणियां पूरी तरह नहीं, तो बड़ी हद तक सच साबित हुई हैं। जम्मू-कश्मीर में भाजपा को 25 सीटें मिली हैं और वह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। झारखंड में उसकी सरकार बनना तय है। यह कहा जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर में मिशन 44 के दावे के बावजूद उसे 25 ही सीटें मिली हैं, लेकिन यथार्थ में भाजपा के नेता भी जानते थे कि यह नामुमकिन है। कश्मीर घाटी में भाजपा का कोई जनाधार नहीं है, जम्मू में उसे अच्छी कामयाबी मिली है और अब यह लगभग तय है कि राज्य में भाजपा के बिना कोई सरकार नहीं बन सकती। भाजपा दोनों राज्यों में, खासकर झारखंड में इससे कहीं बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही होगी। महाराष्ट्र और हरियाणा के मुकाबले यह कामयाबी कमतर है।
जम्मू-कश्मीर में भारी मतदान और उसके बाद ये आंकड़े बताते हैं कि राज्य की जनता एक बेहतर लोकतांत्रिक सरकार चाहती है, लेकिन वहां के राजनेता इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते। जम्मू-कश्मीर में बुरी तरह खंडित जनादेश यही बताता है कि जनता का किसी राजनीतिक पार्टी या नेता पर गहरा विश्वास नहीं है। ऐसा होता, तो पीडीपी को कश्मीर घाटी में भारी कामयाबी मिलती। पीडीपी को लोगों ने इसीलिए वोट दिया, क्योंकि वे वर्तमान सरकार से नाराज थे, इसलिए नहीं कि उन्हें पीडीपी बेहतर विकल्प लगती है। अगर कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन करके चुनाव लड़ते, तो हो सकता था कि वे फिर से सरकार बनाने के करीब आ जाते। भाजपा कश्मीर घाटी में पैठ बनाने में पूरी तरह नाकाम रही। यह स्वाभाविक भी है। अगर संघ परिवार वाले घर वापसी जैसे कार्यक्रम करेंगे, उसके नेता यह घोषणा करेंगे कि सन 2021 के बाद भारत में कोई अल्पसंख्यक नहीं रहेगा, तो भाजपा को किसी मुस्लिम बहुल इलाके में कैसे वोट मिलेंगे? यह सही है कि नरेंद्र मोदी अब भी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में भाजपा को और भी कुछ बातों की जरूरत पड़ सकती है। यह इस बात से साबित होता है कि लोकसभा चुनाव में लद्दाख से भाजपा उम्मीदवार जीता था, और इन विधानसभा चुनावों में लद्दाख की चारों विधानसभा सीटों पर भाजपा हार गई। कांग्रेस ने दोनों ही राज्यों में अकेले चुनाव लड़कर रणनीतिक भूल की। अगर झारखंड में वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ सहयोग करती, तो हो सकता था कि दोनों पार्टियां मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में होतीं। दोनों मिलाकर फिलहाल अच्छी ताकत में हैं। सहयोग से सीटें और जरूर बढ़तीं, तब स्थिति अलग होती।
झारखंड के लिए यह अच्छा है कि वहां भाजपा की सरकार बनेगी और इसके लिए उसे जोड़-तोड़ नहीं करनी पड़ेगी। उम्मीद है कि यह सरकार झारखंड को अस्थिरता के दौर से बाहर निकालेगी। कुछ पुराने नेता चुनाव हार गए हैं और भाजपा एक नए पन्ने पर नई शुरुआत कर सकती है। नतीजों से झामुमो को भी राहत मिली होगी। जिस तरह से उसे खेल से बाहर माना जा रहा था, उसके मुकाबले उसका प्रदर्शन कहीं अच्छा रहा। पिछले एक साल में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने काफी मेहनत की थी और इसका अच्छा नतीजा सामने आया। भाजपा के सामने लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती होगी। उम्मीदें बड़ी हैं, तो चुनौती उतनी ही बड़ी होगी। इन चुनावों ने भाजपा को कामयाबी की खुशी तो दी है, लेकिन कुछ जमीनी यथार्थ की कठोरता से भी रूबरू करवाया है।