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एक सितारे का अकेलापन

राजेश खन्ना हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार थे। राजेश खन्ना का व्यक्तित्व बहुत उलझा हुआ था। उनके व्यक्तित्व की जटिलता को समझने की कोशिश यासिर उस्मान ने अपनी किताब ‘राजेश खन्ना: कुछ तो लोग...

एक सितारे का अकेलापन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 20 Dec 2014 09:54 PM
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राजेश खन्ना हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार थे। राजेश खन्ना का व्यक्तित्व बहुत उलझा हुआ था। उनके व्यक्तित्व की जटिलता को समझने की कोशिश यासिर उस्मान ने अपनी किताब ‘राजेश खन्ना: कुछ तो लोग कहेंगे’ में की है। यहां प्रस्तुत हैं इस किताब के कुछ अंश..

जानते हो हर्ष, जिस रोड पर इस वक्त हम चल रहे हैं...एक वक्त ये मेरे फैन्स से भरी रहती थी। जैसे मैं आज यहां चल रहा हूं, उस दौर में मेरे लिए ऐसा करना मुमकिन ही नहीं था हर्ष। वो भी एक दौर था...ये भी एक दौर है...।
मुंबई में शुरुआती संघर्ष के दौरान ऐसा वक्त भी आया जब हर्ष की हिम्मत जवाब देने लगी और वो वापस दिल्ली लौटने के बारे में सोचने लगे। उस रात डिनर के दौरान राजेश खन्ना ने देखा कि हर्ष काफी परेशान हैं। वो कुछ दिन से चुप से हैं। राजेश खन्ना की आंखें ऐसे जज्बात से वाकिफ थीं। हारा हुआ महसूस करना कैसा लगता है, वो इससे अच्छी तरह वाकिफ थे। डिनर के बाद वो हर्ष के कमरे में गए और अपने पास बैठा कर उससे पूछा कि फिल्म इंडस्ट्री में उसका संघर्ष कैसा चल रहा है? जवाब में हर्ष ने बताया कि उसका सब्र जवाब देने लगा है।

हर्ष की बात सुनकर राजेश खन्ना के चेहरे पर जानी-पहचानी मुस्कान आ गई। वो बोले, ‘तूने कभी ट्रेन में सफर किया है?’ इस सवाल ने हर्ष को थोड़ा हैरान किया। महीनों से फिल्म इंडस्ट्री में धक्के खाते हुए पहले ही परेशान है और अब ये ट्रेन कहां से आ गई।
राजेश खन्ना आगे बोले, ‘सोच कि रात का वक्त है, तुम सेकेंड क्लास के डिब्बे में हो। ट्रेन तेजी से पटरी पर दौड़ रही है....धड़-धड़-धड़-धड़-धड़... तभी एक अंधेरी सुरंग आती है और कुछ भी दिखाई देना बंद हो जाता है। घुप्प अंधेरा। लेकिन वो ट्रेन अब भी पटरी पर उसी रफ्तार से दौड़ रही है। अंधेरे की परवाह किए बगैर। वो रुकी नहीं है। और फिर कुछ ही देर में अचानक तुम्हें बड़ी रोशनी नजर आती है। वो रोशनी...फिल्मी दुनिया है। तो तुम अभी उस अंधेरे टनल में हो। लेकिन उम्मीद और ट्रैक कभी मत छोड़ना। चलते रहना। अपनी मंजिल तक तुम जरूर पहुंच जाओगे।’

हर्ष का हौसला बढ़ाकर वो वहां से जाने के लिए उठे। तभी उन्हें कुछ याद आया, ‘लेकिन याद रखना, ये फिल्म इंडस्ट्री है, अच्छे से अच्छे आदमी को भी ये सेल्फिश बना देती है। प्यार बचा के रखना, यहां पर खो मत जाना।’
फिल्म पत्रकार रऊफ अहमद ने बताया था कि उसके एक इंटरव्यू के बाद राजेश खन्ना ने उनसे कहा, ‘स्टोरी का शीर्षक ‘ए किंग इन एग्जाइल’ (निर्वासन में एक राजा) रखना।’ राजेश खन्ना शायद ये स्वीकार कर चुके थे कि अब उनकी वापसी बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी वो खुद को एक निर्वासित राजा ही समझते थे। रऊफ अहमद के मुताबिक राजेश खन्ना ने उनसे ये भी कहा था कि अपनी सफलता को समझने के लिए उनके पास कोई रेफरेंस प्वाइंट नहीं था। अमिताभ के लिए वो रेफरेंस प्वाइंट हैं। मगर उनसे पहले कोई इतना बड़ा स्टार हुआ ही नहीं था, ‘आप मुझे दोष नहीं दे सकते। मुझे लगता था कि मेरी कामयाबी का दौर कभी खत्म ही नहीं होगा।’
क्या ये सिर्फ राजेश खन्ना के करियर में की हुई गलतियां थीं, जिन्होंने उन्हें इतना नुकसान पहुंचाया? या फिर उनकी शख्सियत और अवचेतन की गहराइयों में छुपा कुछ और ही था? वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म निर्देशक खालिद मोहम्मद ने 70 के दशक के आखिर में राजेश खन्ना के साथ हुई एक दिलचस्प मुलाकात का जिक्र किया था। वो राजेश खन्ना से फिल्म ‘धनवान’ के सेट पर मिले थे। उस समय खालिद एक नए रिपोर्टर थे, जिन्होंने राजेश खन्ना के पल-पल बदलते मूड के बारे में दूसरे से सुना था। इससे पहले कि वो राजेश से सवाल पूछ पाते, राजेश ने सामने रखी मेज को तबले की तरह बजाना शुरू कर दिया, ‘ऐसा करीब दो मिनट तक चला, लेकिन मुझे वो दो मिनट 20 मिनट के बराबर लगे। एक साल बाद मैंने उनके व्यक्तित्व का दूसरा रूप देखा... मिलनसार और बातूनी। वो मुस्कुराते रहे और मेरे लिए चाय के साथ बाकायदा एक केक मंगवा लिया।’

राजेश खन्ना को करीब से जानने वाले लोगों के मुताबिक राजेश खन्ना के इस अजीब से बर्ताव को लोग समझ नहीं पाते थे। एक मिनट में वो बड़े दिलवाले पंजाबी शख्स थे, तो दूसरे पल खामोश, घमंडी और मूडी शख्स। उनके इन दोनों पहलुओं के बारे में अलग-अलग कहानियां सुनने को मिलती हैं। उनकी सबसे करीबी राजदार अंजू महेन्द्रू भी शुरुआत में शायद उनको पूरी तरह समझ नहीं पाईं। अपने एक इंटरव्यू में अंजू ने कहा था, ‘मैं जानती हूं, ये एक विरोधाभास है, लेकिन राजेश खन्ना ऐसे ही हैं। कन्फ्यूजन हमारे रिश्ते का अभिन्न अंग था। अगर मैं स्कर्ट पहनती थी तो वो कहते थे तुमने साड़ी क्यों नहीं पहनी। अगर मैं साड़ी पहनती थी, तो वो कहते कि तुम भारतीय नारी वाला लुक दिखाने की कोशिश क्यों कर रही हो? हालात और बिगड़ गए जब राजेश खन्ना सुपरस्टार बन गए।’ सुपरस्टार के बेइंतेहा दबाव में राजेश खन्ना के दो अलग-अलग रूप सामने आते थे। सलीम खान कहते हैं, ‘वो बिलकुल अलग तरह का इंसान था। सही या गलत तो पता नहीं, लेकिन वो अलग था। वो अगले मिनट में क्या करेगा ये कोई नहीं जानता था। ही वॉज द मोस्ट अनप्रिडिक्टेबल मैन।’

फिल्म इतिहासकार सुरेश कोहली ने भी राजेश खन्ना का जिक्र करते हुए बताया कि परपीड़ा देना (सेडिस्ट ट्रेट) राजेश खन्ना के व्यक्तित्व का हिस्सा था। डॉक्टर जैकिल और मिस्टर हाइड सरीखा दोहरा रूप। वो एक पल में कुछ ऐसा कह देते थे या कर देते थे जो दूसरे को ठेस पहुंचाता था, लेकिन शायद उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं होता था। जैसे-जैसे लोग उन्हें छोड़कर जाते रहे वो अकेले होते गए, लेकिन उन्हें अंदाजा ही नहीं होता था कि लोगों को उनकी कौन सी बात से चोट पहुंची। जब उनके करियर का पतन शुरू हुआ तो उन्होंने अपने दिल की बातें बांटना और भी कम कर दिया। अपनी नजरों में वो हमेशा पीड़ित ही बने रहे। अपने बर्ताव को वो किसी दूसरे शख्स की नजर से कभी नहीं देख सके।

डिंपल ने अपने एक इंटरव्यू में कहा, ‘वो ना तो अपनी खुशी बांटते थे, ना गम और मुझे उन्हें किसी भी तरह की मदद देने से बेहद डर लगता था। मैं बस वहां मौजूद रहती कि हो सकता है शायद उन्हें मेरी जरूरत पड़ जाए।’ लेकिन उनके चार्मिंग बर्ताव का जिक्र करते हुए डिंपल ने ये भी कहा, ‘जब वो आपको चार्म करना चाहते हैं तो वो हमेशा कामयाब हो जाते हैं। वो बहुत बड़े दिलवाले हैं- अपने पैसे और दिल से भी। जो कोई भी उनके करीब रहा है, वो इस बात की गवाही दे सकता है।’

अपनी सफलता के चरम पर उन्होंने खुद को हमेशा अपने चमचों से घेरे रखा। फिल्म इंडस्ट्री और उनके साथ काम करने वाले निर्माताओं को हमेशा उनसे यही शिकायत रही कि उन्हें उनके चमचों की ही तरह हमेशा राजेश खन्ना की हां में हां मिलानी पड़ती है। जैसा कि अंजू ने कहा था कि राजेश को इन हां में हां मिलाने वालों की जरूरत थी। शायद उस अकेलेपन को दूर करने के लिए, जो शुरू से ही उनके अंदर मौजूद था। सुधीर गाडगिल ने मुझे बताया कि उन्होंने आशीर्वाद में अक्सर राजेश खन्ना को घंटों अपने टेरेस पर खड़े हुए देखा है। किन्हीं खयालों में खोए, अपने घर के सामने समंदर में डूबते हुए सूरज को देखते हुए। ना जाने वो क्या तलाश रहे थे?
अपने सुपरस्टार डम के दौर में भी राजेश खन्ना अक्सर अपने चारों तरफ एक अदृश्य दीवार सी बना लेते थे। उनकी सबसे करीबी को-स्टार मुमताज के मुताबिक, ‘वो कभी भी बहुत ज्यादा दोस्ताना किस्म का बर्ताव नहीं करते थे।’ हेमा मालिनी के मुताबिक राजेश टेंपरामेंटल शख्स थे, जो अपने तक ही सिमट कर रहते थे और हमेशा दूरी बना कर रखते थे। जीनत अमान ने बताया कि राजेश के साथ उनकी पहली फिल्म ‘अनजबी’ के दौरान राजेश रिजर्व थे, लेकिन साथ में हमारी आखिरी फिल्म (जाना) तक आते-आते वो इंट्रोस्पेक्टिव हो गए थे। राजेश खन्ना के साथ काम करने वाली अभिनेत्रियों के मुताबिक, गुजरते सालों के साथ खन्ना खामोश होते चले गए, लेकिन शुरुआत से भी वो रिजर्व ही रहते थे।
‘एक दिन मैंने सफेद कुर्ता-पाजामा पहने राजेश खन्ना को आशीर्वाद के दरवाजे पर अकेले खड़ा देखा। पूरा देश जो उनके पीछे पागल रहता था, वो आज उनके सामने से यूं ही गुजर रहा था...’। अभिनेत्री दीया मिर्जा ने राजेश खन्ना के आखिर के सालों के अकेलेपन को एक लाइन में बयां करते हुए एक बार ये ट्वीट किया था।
(साभार: पेंगुइन बुक्स)

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