मन व मां का कारक चंद्रमा
जन्मकुंडली में चंद्रमा के उच्च या नीच दशा में होने पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसके दुष्प्रभाव से कैसे बचा जा सकता है? चंद्रमणि सिंह, नई दिल्ली प्रत्येक ग्रह की उच्च या नीच की दशा जीवन पर...
जन्मकुंडली में चंद्रमा के उच्च या नीच दशा में होने पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसके दुष्प्रभाव से कैसे बचा जा सकता है?
चंद्रमणि सिंह, नई दिल्ली
प्रत्येक ग्रह की उच्च या नीच की दशा जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। ये प्रभाव इतना गहरा हो सकता है कि आपके जीवन की दशा-दिशा बदल जाए। चंद्रमा मन का कारक है। ग्रहों में चंद्रमा को स्त्री स्वरूप माना गया है। भगवान शिव ने चंद्रमा को मस्तक पर धारण किया हुआ है, इसलिए भगवान शिव को चंद्रमा का देवता कहा गया है। जिस प्रकार सूर्य हमारे व्यक्तित्व को आकर्षक बनाते हैं, उसी प्रकार चंद्रमा हमारे मन को मजबूत करते हैं। चंद्रमा हमारे मन का कारक है। चंद्रमा हमारी माता का भी कारक है। जिनकी कुंडली में चंद्रमा उच्च का होता है, उनको अपनी मां का भरपूर प्यार मिलता है। जिनकी कुंडली में चंद्रमा दूर होता है, उनको मां का प्यार उतना नहीं मिल पाता। जिसकी कुंडली में चंद्रमा अच्छा होता है, उसको बलवान कुंडली माना जाता है। चंद्रमा की उच्च स्थिति मन में सकारात्मक विचारों का प्रवाह करती है। ऐसे जातक जो भी कार्य करने की ठान लेते हैं, उसको सफलतापूर्वक सम्पादित करके ही दम लेते हैं। जिनकी कुंडली का स्वामी चंद्र होता है, उनकी कल्पनाशक्ति गजब की होती है।
अगर चंद्रमा कुंडली में नीच का होगा तो क्या परिस्थितियां उत्पन्न होंगी और किन उपायों के जरिये उनसे बचा जा सकता है? जैसाकि आपको बताया कि उच्च चंद्रमा मन को शांत करता है, वहीं चंद्रमा के नीच का होने पर व्यक्ति परेशान रहेगा। उसके साथ हमेशा मानसिक उथल-पुथल की स्थिति बनी रहेगी। चंद्रमा अगर नीच का है तो साधारण से उपायों के जरिये उससे होने वाली हानि से हम बच सकते हैं। चंद्रमा के स्वामी भगवान शिव हैं, इसलिए शिव की पूजा की जाए तो स्थितियां सुधर सकती हैं। इसके लिए सोमवार का व्रत करना, पूर्णिमा का व्रत करना, शंकर जी को दूध से स्नान कराना और सोमवार को सफेद वस्तुओं का दान करना चाहिए। अगर चंद्रमा बहुत ज्यादा खराब है तो शंकर जी के मंदिर में जाकर ‘ओम नम: शिवाय’ एवं ‘ऊं सों सोमाय नम:’ मंत्र का जाप करें। चंद्रमा को प्रसन्न करने के लिए चंद्रमा के इस मंत्र का भी जाप करें- ‘ऊं श्रं श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।’ इस मंत्र को 11 हजार बार जप करने से कुंडली में चंद्र की स्थिति में सुधार आता है। जप पूर्णिमा या शुक्ल पक्ष के सोमवार से शुरू करना चाहिए।