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आधुनिक शहर की असुरक्षित बच्चियां

बेंगलुरु के बाशिंदे,  विशेषकर बच्चों के माता-पिता इन दिनों खासे चिंतित हैं। शहर के स्कूलों में बाल-यौन शोषण के बढ़ते मामलों ने उनको हिलाकर रख दिया है। यह धारणा टूट गई है कि एक बार जैसे ही बच्चा...

आधुनिक शहर की असुरक्षित बच्चियां
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 14 Dec 2014 08:28 PM
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बेंगलुरु के बाशिंदे,  विशेषकर बच्चों के माता-पिता इन दिनों खासे चिंतित हैं। शहर के स्कूलों में बाल-यौन शोषण के बढ़ते मामलों ने उनको हिलाकर रख दिया है। यह धारणा टूट गई है कि एक बार जैसे ही बच्चा स्कूल पहुंचा,  वह सुरक्षित हो गया। कई अभिभावक स्वीकारते हैं कि वे अब नियमित तौर पर अपने बच्चों से पूछताछ करते हैं। उनसे यह सवाल करते हैं कि आज स्कूल में क्या-क्या हुआ। यह भी पूछते हैं कि क्या उन्हें किसी बुरी स्थिति से तो नहीं गुजरना पड़ा। बेंगलुरु कभी अवकाश प्राप्त लोगों के लिए सुरक्षित और शांत ठिकाना था। आज यह भारत की सूचना-प्रौद्योगिकी की राजधानी के रूप में अधिक मशहूर है। गगनचुंबी और बेहद चमकदार शीशों वाली इमारतों के साथ शहर व इसके बाहरी इलाकों के तेज और अंधाधुंध विकास ने इन्फ्रास्ट्रक्चर को पूरी तरह से ठस कर दिया है। ट्रैफिक जाम,  टूटी-फूटी सड़कें,  प्रदूषण और भू-जल का गिरता स्तर,  ये सब अब इस शहर को परिभाषित करते हैं। फिलहाल विवाद की सबसे बड़ी वजह बलात्कार की घटनाएं हैं,  विशेषकर छोटी-छोटी बच्चियों के साथ।

प्राथमिक व नर्सरी स्कूलों की बच्चियों के साथ यौन शोषण और बलात्कार के मुद्दे पर बेंगलुरु जुलाई महीने से अब तक कम से कम आधे दजर्न विरोध-प्रदर्शनों को देख चुका है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बीते तीन वर्षों में नाबालिगों पर यौन-हमले के मामले कर्नाटक में तीन गुना बढ़े हैं। खतरनाक यह है कि दूसरी तरफ अभियुक्तों की सजा-दर घट रही है। तो क्या बेंगलुरु बच्चों के लिए असुरक्षित होता जा रहा है?  एक तरफ तो आईटी कैपिटल के तौर पर यह शहर नॉलेज इकोनॉमी का केंद्र है,  कई अन्य शहरों के मुकाबले यहां की साक्षरता दर बढ़िया है और इसे आधुनिक महानगर के तौर पर देखा जाता है,  लेकिन दूसरी तरफ,  उलझन यह है कि लैंगिक अपराध और बच्चों को विचलित करने वाली घटनाएं बढ़ी हैं। अब यहां चिंतित अभिभावकों ने तेजी से एक संगठन खड़ा कर धरना-प्रदर्शनों का आयोजन किया। मीडिया,  खास तौर पर चौबीस घंटे प्रसारित होने वाले न्यूज चैनलों ने इस मुद्दे को बार-बार उठाया।

प्रशासन की तरफ से स्कूलों को दिशा-निर्देश जारी किए गए। हाईकोर्ट ने इस मसले पर राज्य सरकार को आगे आने के लिए कहा। कोर्ट ने सरकार को यह चेतावनी दी कि यदि प्रशासन बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित कराने में असफल है, तो वह इस मामले में हस्तक्षेप करेगा। लेकिन क्या यौन अपराध सचमुच बढ़े हैं?  एक दृष्टिकोण यह है कि बाल यौन अत्याचार सुरक्षा कानून ने यह अंतर पैदा किया है। इस कानून के तहत,  अब यह अनिवार्य हो चुका है कि अभिभावक और शिक्षक ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करें और एफआईआर दर्ज कराएं। कुछ का कहना है,  इससे मीडिया को जल्दी-जल्दी खबरें मिलने लगी हैं। वहीं,  समाजशास्त्री और बाल मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि इस रुग्णता के बढ़ने का एक कारण सामाजिक लांछन से इसका जुड़ना भी है। अभिभावक संबंधित अधिकारियों को केस की रिपोर्ट लिखाने से पहले दो बार सोचते थे और स्कूल प्रशासन आरोपियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कराए बगैर उनको आसानी से जाने देता था।

इस मुद्दे ने एक और बहस छेड़ी है कि क्या प्राथमिक कक्षाओं में सिर्फ महिला शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए? शिक्षाविद और इन्फोसिस के निदेशक-मंडल में रह चुके मोहनदास पाई मानते हैं कि माहौल खराब हो चुका है,  इसलिए छोटे बच्चे-बच्चियों के लिए सिर्फ महिला शिक्षकों को ही नियुक्त किया जाना चाहिए,  जबकि कुछ लोग मानते हैं कि यह प्रतिगामी कदम होगा, क्योंकि इससे बच्चों की नजरों में सभी पुरुष दानव की तरह दिखेंगे। राजनीतिक पार्टियों के नेता इस मुद्दे को सुलझाने की बजाय उलझा रहे हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सबसे पहले प्रेस की निंदा की कि ‘क्या आपके पास खबरें खत्म हो चुकी हैं?  यह इकलौती खबर है,  जिसे आप चला सकते हैं?’  उनके गृहमंत्री ने इस इशारे को भांपा और मीडिया पर आरोप मढ़ दिया कि वह अधिक टीआरपी के लिए इसे सनसनीखेज बना रहा है।

हालांकि,  मीडिया के बचाव में हाईकोर्ट आया और कहा कि वह समाज का रखवाला है और उसको अपना काम करने देना चाहिए। मुख्यमंत्री की बिना सोची प्रतिक्रिया यह थी कि पूरे राज्य के सभी प्राथमिक स्कूल पुरुष शिक्षकों के लिए प्रतिबंधित कर दिए जाएं। बाद में हुए विरोध-प्रदर्शनों से यह विचार निरस्त हो गया। इस दौरान,  कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई,  जिससे लोगों का गुस्सा और भड़क उठा। भाजपा के विधायक के एस ईश्वरप्पा ने गृहमंत्री पर यह कहते हुए हमला किया कि कांग्रेस सरकार राज्य में बलात्कारियों के खिलाफ तभी कार्रवाई करेगी,  यदि जब गृहमंत्री की बेटी के साथ बलात्कार हो जाए। कांग्रेसी विधान पार्षद ईवान डीसूजा ने भी इतनी ही खराब प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि  ‘ईश्वरप्पा क्या कर लेंगे,  यदि मैं उनकी पत्नी से बलात्कार करूं।’  इसके विपरीत,  राज्य-स्तरीय बाल सम्मेलन में विभिन्न जिलों से राजधानी आए बच्चे इस समस्या पर अधिक संवेदनशील दिखाई दिए। बच्चों ने बताया कि स्कूलों में खराब शौचालय सुविधाएं और सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

एक दृष्टिकोण यह है कि अपराध को घटाने में यौन अपराधियों के खिलाफ सजा-दर बढ़ाने से मदद मिलेगी, खासकर महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध के मामलों में। इसके लिए जांच की गुणवत्ता जरूर बेहतर होनी चाहिए, ताकि जांचकर्ता जल्दी सबूत जुटा सकें और दोषियों के खिलाफ ठोस मामले बना सकें। इसका मतलब है कि जांच एजेंसियों, स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों के बीच अधिक जागरूकता और संवेदनशीलता हो। इस मुद्दे ने स्कूल प्रबंधन पर यह दबाव बनाया है कि वे अधिक जवाबदेह हों और स्कूल के अंदर किसी भी तरह की घटना की पूरी जिम्मेदारी लें। प्राइवेट स्कूलों पर अब यह दबाव है कि ज्यादा फीस वसूली का मतलब बच्चों के लिए बेहतर सुरक्षा पक्का करना है। कुछ स्कूलों ने कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं और बच्चियों के लिए परिचारिकाएं रखी हैं। दूसरी तरफ, सरकारी स्कूल अधिक देखभाल सुनिश्चित करने के लिए फंड की कमी की शिकायत कर रहे हैं,  क्योंकि उनमें से कई के पास बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है,  जिससे वे साफ पेयजल और शौचालय उपलब्ध करा सकें। शहर और राज्य के स्कूल प्रशासन ने यह देखना शुरू कर दिया है कि दिशा-निर्देशों को पालन हो रहा है या नहीं। पुलिस ने भी यह आगाह किया है कि यदि इन दिशा-निर्देशों को लागू न कर पाने की वाजिब वजहें बताने में स्कूल नाकाम होते हैं,  तो उनके खिलाफ चाजर्शीट दाखिल की जा सकती है।

तो क्या यह समाधान है?  कुछ नाराज लोग अपराध करने वालों को सख्त सजा देने की मांग करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं,  जो यह कहते हैं कि सिर्फ सजा समस्या का हल नहीं है। वे बेहतर जांच,  त्वरित सुनवाई,  पीड़ितों के लिए अधिक सुरक्षा,  वित्तीय और नैतिक समर्थन की सिफारिश करते हैं। लेकिन सब इस पर सहमत हैं कि इन तमाम विचारों को सही तरीके से लागू किया जाना चाहिए और बिना सोचे कदम उठाने की बजाय,  लगातार सतर्कता की जरूरत है। बेंगलुरु की यह बहस पूरे देश के लिए काफी उपयोगी हो सकती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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