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यातनाओं के खिलाफ

अमेरिकी सीनेट की गुप्तचर सेवाओं से संबंधित संसदीय समिति ने उस संदेह की पुष्टि कर दी है, जिसके बारे में काफी आरोप लग रहे थे। समिति ने कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में सीआईए...

यातनाओं के खिलाफ
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 10 Dec 2014 10:36 PM
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अमेरिकी सीनेट की गुप्तचर सेवाओं से संबंधित संसदीय समिति ने उस संदेह की पुष्टि कर दी है, जिसके बारे में काफी आरोप लग रहे थे। समिति ने कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में सीआईए ने आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए लोगों को पूछताछ के दौरान यातनाएं दीं और उसके कुछ तरीके बहुत कू्रर थे। सीआईए ने संसद और सरकार से यह बात छिपाई और हमेशा यही दावा किया कि उसके तरीके पूरी तरह मानवीय थे। इसके बावजूद, 9/11 के बाद शुरू गिरफ्तारी और पूछताछ के कार्यक्रम की बहुत निंदा हुई थी और बराक ओबामा ने राष्ट्रपति बनने के बाद उसको बंद कर दिया था। इस कार्यक्रम के समर्थकों का कहना था कि देश की सुरक्षा के लिए कुछ सख्ती बरतना जरूरी है और इस सख्ती से बहुत महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई। इसी जानकारी की वजह से ओसामा बिन लादेन को भी खत्म किया जा सका था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को गलत करार दिया है कि ज्यादतियां करने से महत्वपूर्ण जानकारी हाथ लगी है या लादेन तक पहुंचने में ऐसे तरीकों का कोई योगदान है।

अमेरिका में इस रिपोर्ट पर काफी बवाल होगा। सीआईए ने समिति पर आरोप लगाया है कि उसने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। रिपब्लिकन पार्टी का कहना यह है कि बुश प्रशासन को बदनाम करने के लिए यह रिपोर्ट बनाई गई है। समिति के कुछ रिपब्लिकन सदस्यों ने रिपोर्ट से असहमति भी जताई है। इस रिपोर्ट से सीआईए की कुलजमा बदनामी ही होगी। किसी भी सभ्य लोकतांत्रिक समाज में यातनाएं देना मान्य नहीं है। यह सही है कि लोकतांत्रिक समाज का निर्माण एक लगातार चलती हुई प्रक्रिया है, इसलिए तमाम लोकतांत्रिक समाजों में भी सुरक्षा बलों द्वारा यातनाएं देने की घटनाएं होती रहती हैं, भले ही आधिकारिक स्तर पर उनसे इनकार किया जाए। लेकिन लोकतंत्र जैसे-जैसे विकसित हो रहा है, वैसे-वैसे अमानवीय और कू्रर तरीके अपनाने पर ज्यादा पाबंदियां लगती जा रही हैं। भारत जैसे देशों में, जहां पुलिस आम तौर पर डंडे से बात करती है, वहां भी मानवाधिकारों के प्रति सतर्कता बढ़ रही है। राजनीतिक रूप से जो समूह ज्यादा दक्षिणपंथी या वामपंथी झुकाव वाले हैं, वे हिंसा के प्रयोग को गलत नहीं मानते, इसलिए जहां ऐसे विचारों की सत्ता रही है, वहां कैदियों या राजनीतिक विरोधियों को यातनाएं देना सहज स्वीकृत है। अमेरिका पुराना लोकतंत्र है, किंतु यहां र्भी ंहसा को लेकर दोहरा रवैया है। एक ओर, यह समाज बहुत लोकतांत्रिक व उदार है, दूसरी ओर हिंसा को इस समाज ने अपनी परंपरा का हिस्सा माना है। इसीलिए वहां बंदूक रखने पर पाबंदी नहीं लागू की जाती व पुलिस बहुत आम परिस्थितियों में हथकड़ी व बंदूक का इस्तेमाल करती है। अभी-अभी वहां निहत्थे निरपराध अश्वेत युवकों को पुलिस द्वारा हत्या की दो घटनाओं पर बवाल हुआ है। दक्षिणपंथी रिपब्लिकन हिंसा के विशेष पक्षधर हैं और चाहे सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहें, काफी सारे रिपब्लिकन इस मामले में सीआईए के समर्थक होंगे।

दूसरी तरफ, फिलहाल पूरी दुनिया जिन आतंकी संगठनों से जूझ रही है, उन्हें कू्ररता से कोई परहेज नहीं है। वे कू्ररता का गर्व के साथ प्रदर्शन करते हैं। ऐसे में कहीं न कहीं सभ्य समाजों में भी इन लोगों को प्रति क्रूरता के लिए सहमति बनने लगती है। दुश्मन किसी मर्यादा को न मानता हो, तो दूसरे पक्ष में भी ज्यादती के पक्ष में राय बनने लगती है। जब आतंकवादी लोगों के सिर काटने के वीडियो प्रसारित कर रहे हों, तो हो सकता है कि सीआईए की ज्यादतियों के प्रति भी लोगों में समर्थन का भाव पैदा हो। आतंकवादी अपनी क्रूरता से बाकी दुनिया को भी कूछ क्रूर बना रहे हैं।

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