खुशी का खजाना
सुबह की जल्दबाजी में या दिन भर ऑफिस के कामकाज के बीच मूड खराब होना सामान्य-सी बात है। कभी-कभी बिना बात घर में बैठे हुए भी आप उदासी महसूस कर सकते हैं। कुछ लोग खुद को खुश करने के लिए टहलने निकल पड़ते...
सुबह की जल्दबाजी में या दिन भर ऑफिस के कामकाज के बीच मूड खराब होना सामान्य-सी बात है। कभी-कभी बिना बात घर में बैठे हुए भी आप उदासी महसूस कर सकते हैं। कुछ लोग खुद को खुश करने के लिए टहलने निकल पड़ते हैं, कुछ दोस्तों से मिलने या फिर मॉल में जाकर सिनेमा देखते या खरीदारी करते हैं। फिर भी कई बार मूड ठीक नहीं हो पाता। शायद इसीलिए कहते हैं कि खुशी खरीदी नहीं जा सकती। मनोवैज्ञानिक पॉल सैमुअल के अनुसार, खुशी तो थ्री-डी, यानी डिजायर-इच्छा, डिसीजन-निर्णय और डू-करने से ही मिलती है। आप इस फिक्र में मत रहिए कि कौन क्या करता या सोचता है, बल्कि आप तय करें कि आपका मन क्या करना या पाना चाहता है। खुशियों के फूल आपके आसपास खिलने लगेंगे। लेखक डेल कारनेजी कहते हैं कि खुशियां ढूंढ़ने से नहीं मिलती, खुद को पा लेने के एहसास से मिलती हैं। खुद की तलाश बहुत मुश्किल काम है।
यह एक ऐसा एहसास है, जो आपको बताता है कि आप अपनी प्राथमिकता, इच्छा, आकांक्षा के अनुरूप काम करें। बजाय इसके कि दूसरों की नकल करें। जब आप अपना विश्लेषण करते हैं और किसी निर्णय पर पहुंच जाते हैं, तो आप आत्मसंतुष्ट व आत्मशांति के परिवेश में होते हैं। तब आपको एहसास होता है कि रुपये गिनने वाले बैंकर की बजाय फूल-पौधे सींचने वाला माली ज्यादा खुश है। मनोवैज्ञानिक सैम वुड की मानें, तो हम पूरी जिंदगी यह दिखाने की कोशिश में लगा देते हैं, जो हम वास्तव में नहीं होते हैं। इसी कारण हम अंदर से खुश नहीं हो पाते। सच तो यह है कि खुद को महसूस करने में जो मजा है, जो खुशी है, वह और कहीं नहीं। तभी तो अभिनेता चार्ली चैपलिन जब तक जर्मनी के कॉमेडियन की नकल करते रहे, तब तक उन्हें सराहना नहीं मिली। जब उन्होंने अपनी स्टाइल में अभिनय शुरू किया, वह रातोंरात कॉमेडी के बादशाह बन गए। खुद को पहचानिए और खुश हो जाइए।