उर्दू जिसे कहते हैं जुबां है मेरी..
दिल्ली जिसे कहते हैं वतन है मेरा, उर्दू जिसे कहते हैं जुबां है मेरी । जीना हो जमाने में हो गाजी होकर, मर जाएं तो कहलाएं शहीदे उर्दू। सिक्कों के एवज अपनी जुबां बेचने वाले , खुलवाएं न अब मेरी जुबान और...
दिल्ली जिसे कहते हैं वतन है मेरा, उर्दू जिसे कहते हैं जुबां है मेरी । जीना हो जमाने में हो गाजी होकर, मर जाएं तो कहलाएं शहीदे उर्दू। सिक्कों के एवज अपनी जुबां बेचने वाले , खुलवाएं न अब मेरी जुबान और ज्यादा। दिल्ली स्कूल के प्रसिद्ध शायर गुलजार देहलवी ने जब अपने इन कलामों को पढ़ा तो लोग वाह-वाह करने लगे।ड्ढr रविवार को खुदा बख्श लाइब्रेरी के तत्वावधान में आयोजित ‘एक शाम गुलजार देहलवी के नाम’ कार्यक्रम में गुलजार ने अपनी एक से एक रचनाओं से उर्दू प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। आबरू-ए- दिल्ली के नाम से मशहूर गुलजार ने अपने सम्मान में आयोजित इस प्रोग्राम में उर्दू आन्दोलन के विभिन्न अवधियों पर प्रकाश डाला । अपने को इस आन्दोलन से गहरा संबंध बताते हुए उन्होंने कहा कि देश की आजादी के बाद उर्दू के लिए सबसे पहले आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा हिन्दुस्तान की अखंडता और हिन्दू -मुस्लिम एकता का प्रतीक है। समारोह की अध्यक्षता करते हुए बुजुर्ग शायर व पद्मश्री डा. कलीम आजिज ने कहा कि उर्दू किसी खास समुदाय की भाषा न पहले थी और न अब है और न रहेगी। यह तो सही मायने में मिलीजुली संस्कृति की द्योतक है। समारोह में आए श्रोताओं तथा अतिथियों का स्वागत लाइब्रेरी के निदेशक डा. इम्तेयाज अहमद ने किया।