इमरान की सियासत
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के मुखिया इमरान खान ने बीते इतवार की अपनी इस्लामाबाद रैली में अपने आगे की रणनीति का खुलासा किया। उनके कथित प्लान-सी में 16 दिसंबर को पूरे मुल्क में बंद के आयोजन के...
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के मुखिया इमरान खान ने बीते इतवार की अपनी इस्लामाबाद रैली में अपने आगे की रणनीति का खुलासा किया। उनके कथित प्लान-सी में 16 दिसंबर को पूरे मुल्क में बंद के आयोजन के अलावा लाहौर, फैसलाबाद और कराची में अलग-अलग हड़ताल करना शामिल हैं। हालांकि इस बार की रैली में वैसा बड़ा ड्रामा देखने को नहीं मिला, जैसा कि कुछ महीने पहले दिखा था, लेकिन इमरान की इस नई रणनीति ने पुराने जख्म भी कुरेद दिए। उन्होंने देशव्यापी हड़ताल के लिए जिस दिन को चुना, वह पाकिस्तान की तारीख पर एक बदनुमा दाग है। इमरान ने उस 16 दिसंबर को पाकिस्तान की मौजूदा हुकूमत से मुक्ति दिलाने के लिए चुना, जिस दिन 43 साल पहले हमने अपना आधा मुल्क गंवा दिया था। यह बताता है कि पीटीआई नेतृत्व, और खुद इमरान खान अपने राजनीतिक इतिहास से नावाकिफ हैं या फिर उन्होंने इसे नजरअंदाज किया। वजह जो भी हो, लेकिन यह उस पार्टी के लिए वाकई चिंता की बात है, जो सिस्टम में बदलाव की बात करती है। यही नहीं, पूरे मुल्क में हड़ताल करने के कार्यक्रमों में तब्दीली इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि लाहौर में पार्टी के कर्ताधर्ताओं ने तैयारी के लिए ज्यादा वक्त की मांग की और चार दिसंबर को इसके लिए सही नहीं माना। हालांकि, इसकी पृष्ठभूमि में कहीं अधिक घातक वजह के होने के दावे किए जा रहे हैं, और वह यह कि पीटीआई ने अपने लाहौर कार्यक्रम को इसलिए बदला, क्योंकि जमात उद दावा का उसी समय वहां दो दिन का कार्यक्रम होने वाला था। यह वही संगठन है, जिसे जन्म देने वाले लश्कर-ए-तैयबा पर प्रतिबंध आयद है। अनजाने में ही सही, लेकिन पीटीआई ने एक बार फिर खुद को ही बेपरदा किया है। बहरहाल, इतवार की रैली में इमरान खान ने हुकूमत के सामने जो मांगें रखी हैं और नवाज शरीफ हुकूमत पीटीआई के साथ बातचीत में जो प्रस्ताव रख सकती है, उसमें बहुत मामूली अंतर है। इसलिए गेंद अब सरकार के पाले में है। वह खौफ के घेरे से बाहर निकल जो सही है, वह काम करे। आखिर वाजिब चुनावी सुधार और मई 2013 के चुनाव की फैसलाकुन इनक्वॉयरी कराई जा ही सकती है।
द डॉन, पाकिस्तान