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2014 के जनादेश का समाजशास्त्रीय अध्ययन जरुरी: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सलाह दी है कि सन-2014 के जनादेश का समाजशास्त्रीय अध्ययन होना चाहिए। शनिवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में समाजशास्त्रियों के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन...

2014 के जनादेश का समाजशास्त्रीय अध्ययन जरुरी: राष्ट्रपति
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 29 Nov 2014 09:33 PM
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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सलाह दी है कि सन-2014 के जनादेश का समाजशास्त्रीय अध्ययन होना चाहिए। शनिवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में समाजशास्त्रियों के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सन-14 का जनादेश मतदाताओं की सूझबूझ को प्रदर्शित करता है। उस सूझबूझ भरे निर्णय ने यह मिथक बदल दिया कि भारतीय लोकतंत्र अब गठबंधनों के दौर से बाहर नहीं निकल सकता। उन्होंने आह्वान किया कि सबकी संतुष्टि के लिए विकास हो। विविधता का आनंद लेते हुए लोकतंत्र को मजबूती दी जाए।

इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी के तीन दिवसीय 40वें राष्ट्रीय अधिवेशन में देश के विभिन्न प्रांतों के 1200 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। काशी विद्यापीठ के समाजशास्त्र विभाग के इस आयोजन के उद्घाटनसत्र का विषय था -विकास, विविधता और लोकतंत्र। राष्ट्रपति ने अपने 25 मिनट के उद्बोधन में कहा कि यह सही है कि सन-51 की तुलना (-1 प्रतिशत) में 2013 में जीडीपी दर (7.6 प्रतिशत) बढ़ी है। इसे 8-9 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य है परंतु जीडीपी दर के आधार पर विकास का आकलन नहीं हो सकता। विकास के अन्तर्निहित तत्वों पर भी विचार होना चाहिए। अपनी हाल की भूटान यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि वहां शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, खाद्यान्न आदि क्षेत्रों में ‘ग्रॉस हैप्पीनेस’ (अंतिम आदमी की खुशी) को विकास की अवधारणा बनाया गया है। होना भी यही चाहिए। यदि सभी को संतुष्टि न मिले तो विकास परिपूर्ण नहीं हो सकता।

राष्ट्रपति ने सन-2014 के आम चुनाव की चर्चा करते हुए कहा कि सन-84 के बाद पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है। यह भारतीय मतदाताओं की सूझबूझ का परिचायक है। इस सूझबूझ को अन्ना हजारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं और उनके आंदोलन से मजबूती मिलती है। उससे अन्तत: लोकतंत्र मजबूत होता है। अन्ना की मांग के अनुरूप बिल तो सदन में आया मगर उस आंदोलन ने लोगों को जागरूक कर दिया, सरकार पर दबाव बना। उन्होंने अपने 43 वर्ष के सार्वजनिक जीवन के अनुभवों के आधार पर कहा कि विविधता भारतीय प्राचीन संस्कृति की शक्ति है जो उसे गतिशील व जीवंत बनाए है। समाजशास्त्रियों से मुखातिब राष्ट्रपति ने आान किया कि वे लोकतंत्र, विकास के सामने खड़ी चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें ताकि देश को लाभ मिले।

इससे पूर्व अध्यक्षीय संबोधन में राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि विकास ऐसा हो जिसमें धन का बेजा प्रभाव न दिखे और न किसी को अभाव हो। नैतिकता और पारदर्शिता विकास के मुख्य मानक होने चाहिए। उन्होंने कहा कि इस समय मुक्त बाजार की संस्कृति से संघर्ष का दौर है। उसकी अच्छाइयों और बुराइयों को समझने का विवेक पैदा हो, समाजशास्त्रियों का यह अधिवेशन उस दिशा में मदद करेगा।

इस अवसर पर राज्यपाल ने उल्लेखनीय कार्य के लिए चार समाजशास्त्रियों-प्रो. प्रकाश एन. पिंपले, प्रो. रमेशचंद्र तिवारी, प्रो. इम्तियाज अहमद और प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी को लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया। इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. आनंद कुमार और काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. पृथ्वीश नाग ने स्वागत भाषण दिए। सोसाइटी की सचिव आर. इंदिरा ने संचालन किया। संचालन प्रो. रविप्रकाश पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन भी मौजूद रहे। 

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