एएमयू के कुलपति ने लिखा स्मृति ईरानी को पत्र
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति ने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय परिसर में स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप की जयंती मनाने की योजना पर संभावित...
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति ने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय परिसर में स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप की जयंती मनाने की योजना पर संभावित सांप्रदायिक तनाव और छात्र असंतोष के प्रति आगाह किया है।
मंत्री को अपने पत्र में कुलपति जमीर उद्दीन शाह ने कहा कि अगर कुछ तत्व एक दिसंबर को एएमयू में प्रदर्शन करने की योजना को अंजाम देते हैं तो इससे परिसर में छात्रों के बीच अशांति पैदा हो सकती है। बहरहाल, कुलपति ने किसी पार्टी या संगठन का नाम नहीं लिया। कुलपति ने उल्लेख किया कि अगर इस पर हो रही राजनीति को नहीं संभाला गया तो सांप्रदायिक आग भड़कने की आशंका है।
भाजपा के कुछ नेताओं ने राजा महेंद्र प्रताप की जयंती पर परिसर में प्रदर्शन का फैसला किया है। राजा एएमयू के छात्र थे। उनका परिवार संस्थान के संस्थापक सर सैयद अहमद खान के काफी निकट था। उन्होंने कहा कुछ तत्व इस आधार पर प्रदर्शन करने की धमकी दे रहे हैं कि राजा महेंद्र प्रताप ने एएमयू की स्थापना के लिए विशाल जमीनें दी थीं।
कुलपति ने कहा कि हमें पता है कि राजा ने 1929 में दो रुपये प्रति वर्ष की दर से 3.04 एकड़ भूमि पटटे पर दी थी। हमें स्वतंत्रता सेनानी पर गर्व हैं। कई और दानकर्ता थे और एएमयू का मुख्य परिसर का निर्माण ब्रिटिश सरकार की ओर से ली गयी भूमि पर कराया गया, जो मूल रूप से अलीगढ़ छावनी की थी।
राज्य स्तर और स्थानीय स्तर के भाजपा के कुछ नेताओं ने हाल में दावा किया कि राजा महेंद्र प्रताप द्वारा दान में दी गयी भूमि पर एएमयू का निर्माण हुआ लेकिन एएमयू प्रशासन उनके योगदान को मान्यता देने में नाकाम रहा। कुलपति ने कहा कि हालात शांतिपूर्ण बनाने के लिए वे राजा की जयंती पर एक संयुक्त समारोह आयोजित करने के लिए राजी हुए थे। उन्होंने कहा, 25 नवंबर को मध्यस्थता की पेशकश करने वाले, इस जिले के कुछ पूर्व सैन्यकर्मियों के आग्रह पर मैंने प्रदर्शन की धमकी देने वाले कुछ संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत की। यह विचार हालात को शांत करने के लिए था और हमने राजा की जयंती पर एक संयुक्त समारोह करने का फैसला किया।
बहरहाल, उन्होंने कहा कि जयंती मनाये जाने का फैसला अब वापस ले लिया गया है क्योंकि ऐसी सूचना है कि प्रदर्शन आयोजित करने वाले समूहों के भीतर आंतरिक मतभेद है। शाह ने कहा कि विरोध की पृष्ठभूमि में दूसरे दानकर्ताओं के परिवार भी अब आ चुके हैं और अपने पूर्वजों की याद में समारोह करने की मांग कर रहे हैं। कुलपति ने मानव संसाधन विकास मंत्री से अपने पद का इस्तेमाल करते हुए उन राजनीतिक नेताओं पर दबाव बनाने का अनुरोध किया है जो बयानबाजी कर रहे हैं। उन्होंने कहा, विश्वविद्यालय राजनीति में संलिप्त नहीं होना चाहता और कानून और व्यवस्था के जोखिम से निपटने के लिए हमें आपके तुरंत और गंभीर सहयोग की जरूरत है।
बहरहाल, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (अमूटा) ने मुद्दे के राजनीतिकरण किये जाने पर गम्भीर चिंता जाहिर की है। अमूटा के सचिव आफताब आलम ने आज यहां कहा कि कुछ ताकतें, जिनका राजा महेन्द्र प्रताप से कोई लेना-देना नहीं है, वे सिर्फ सियासी फायदा लेने के लिये इस मुद्दे पर गैरजिम्मेदाराना बयान देकर हालात को साम्प्रदायिक रंग देना चाहती हैं।
अमूटा का कहना है कि वह इस बात को अच्छी तरह जानती और मानती है कि एएमयू की स्थापना हजारों लोगों के योगदान से ही सम्भव हुई है। उसका स्पष्ट मत है कि किसी एक योगदानकर्ता की जयन्ती मनाना और बाकी योगदान देने वालों को नजरअंदाज करना उन सभी लोगों का अपमान होगा जिन्होंने विभिन्न तरीकों से एएमयू की स्थापना में मदद की है।
संगठन ने किसी एक राजनीतिक दल के दबाव में विश्वविद्यालय में किसी व्यक्ति की जयन्ती मनाने के विचार का विरोध करते हुए कहा कि यह खासकर इसलिये भी गलत है कि दबाव डालने वाली पार्टी सत्ता में है। अमूटा का यह भी मानना है कि एएमयू प्रशासन ने राजा महेन्द्र प्रताप के योगदान को लेकर परस्पर विरोधाभासी बयान दिये जिसने विवाद की आग में घी का काम किया। अमूटा की तरफ से जारी बयान में कहा गया राजा एक क्रांतिकारी समाज सुधारक तथा साम्प्रदायिक राजनीति के विरोधी थे। वर्ष 1957 में जब वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़े थे तब जनसंघ ने उनका विरोध किया था। भाजपा जनसंघ का ही नया अवतार है और वह बदनीयती भरे अंदाज में राजा की विरासत पर दावा कर रही है।
बयान में कहा गया है कि अमूटा विश्वविद्यालय के कुलपति तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं के बीच हुई तथाकथित गुप्त बैठक से बेहद आहत है। बयान में कहा गया अमूटा का स्पष्ट मानना है कि मुसलमानों के लिये दिल में तनिक भी सम्मान ना रखने वाले लोगों के प्रतिनिधियों के साथ किसी तरह की बैठक होना उन मुसलमानों के प्रति विश्वासघात है जिन्होंने एएमयू पर यकीन रखा है। किसी को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिये कि एएमयू मात्र किसी अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालय की तरह है।