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निर्मल कालीबेई

होशियारपुर के धनोआ गांव से निकलकर कपूरथला तक जाती है 160 किमी लंबी कालीबेई। इसे कालीबेरी भी कहते हैं। कुछ खनिज के चलते काले रंग की होने के कारण ‘काली’ कहलाई। इसके किनारे बेरी का दरख्त...

निर्मल कालीबेई
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 22 Oct 2014 09:41 PM
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होशियारपुर के धनोआ गांव से निकलकर कपूरथला तक जाती है 160 किमी लंबी कालीबेई। इसे कालीबेरी भी कहते हैं। कुछ खनिज के चलते काले रंग की होने के कारण ‘काली’ कहलाई। इसके किनारे बेरी का दरख्त लगाकर गुरुनानक देव ने 14 साल, नौ महीने और 13 दिन साधना की। एक बार नदी में डूबे, तो दो दिन बाद दो किलोमीटर आगे निकले। मुंह से निकला पहला वाक्य था- न कोई हिंदू, न कोई मुसलमां। उन्होंने जपुजी साहब कालीबेई के किनारे ही रचा। यह 500 साल पुरानी बात है। अकबर ने कालीबेई के तटों को सुंदर बनाने का काम किया। व्यास नदी इसे पानी से सराबोर करती रही। एक बार व्यास ने अपना पाट क्या बदला, अगले 400 साल कालीबेई पर संकट रहा। संवेदनहीनता इस कदर रही कि किनारे के शहरों ने मिलकर कालीबेई को कचराघर बना दिया। इसी बीच कॉलेज की पढ़ाई पूरी न कर सका एक नौजवान नानक की पढ़ाई पढ़ने निकल पड़ा था- संत बलबीर सिंह सींचेवाल! संत सींचेवाल ने किसी काम के लिए सरकार की प्रतीक्षा नहीं की। पहले खुद काम शुरू किया, बाद में दूसरों से सहयोग लिया। कार सेवा के जरिये गांवों की उपेक्षित सड़कों को दुरुस्त करके ख्याति पाई। 2003 में कालीबेई की दुर्दशा ने संत की शक्ति को गुरु वचन पूरा करने की ओर मोड़ दिया- पवन गुरु, पानी पिता, माता धरती मात्। कहते हैं कि कीचड़ में घुसोगे, तो मलीन ही होओगे। सींचेवाल कीचड़ में घुसे, पर मलीन नहीं हुए। उसे ही निर्मल कर दिया। यही असली संत स्वभाव है।
इंडिया वाटर पोर्टल में अरुण तिवारी

 

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