तारीफ का हक
बहुत कम ऐसे लोग हैं, जो छोटी-सी उपलब्धि पर शाबाशी की आशा न करते हों। फल की इच्छा के बिना कर्म करना, स्थितप्रज्ञ होने का लक्षण तो है, लेकिन इस मानसिकता को प्राप्त करने के लिए कठोर साधना की आवश्यकता...
बहुत कम ऐसे लोग हैं, जो छोटी-सी उपलब्धि पर शाबाशी की आशा न करते हों। फल की इच्छा के बिना कर्म करना, स्थितप्रज्ञ होने का लक्षण तो है, लेकिन इस मानसिकता को प्राप्त करने के लिए कठोर साधना की आवश्यकता होती है। डेलकारनेगी एक भेदभरी लघुकथा सुनाते हैं। एक किसान स्त्री दिन भर खेतों में काम करने वालों के लिए भोजन बनाती। सब चुपचाप आकर खाना खाते और वापस चले जाते। एक दिन उसने भोजन की जगह उनके सामने भूसे का ढेर रख दिया। वे सब गुस्से में आकर कहने लगे कि कहीं यह औरत पागल तो नहीं हो गई। उसने उत्तर दिया- ‘मुझे नहीं पता था कि तुम लोग ध्यान भी देते हो। पिछले 20 साल से मैं तुम सबके लिए खाना बनाती हूं, मैंने कभी एक शब्द नहीं सुना, जिससे पता चले कि तुम लोग भूसा नहीं खा रहे थे।’
प्राय: पति-पत्नी में ऐसी अपेक्षा रहती है। रिश्तों में दरारें तब पड़ती हैं, जब कोई दूसरे के काम को अपना अधिकार मानकर, कभी आभार प्रकट नहीं करता। इसके विपरीत छोटी-छोटी मानवीय दुर्बलताओं को तूल देकर, आरोपों का सिलसिला शुरू कर देता है। यह स्थिति अलगाव की ओर ले जाती है। थोड़ी-सी सावधानी बरतने पर इन्हीं स्थितियों में रिश्ते मजबूत भी हो सकते हैं। एक महिला ने अपने पति से अनुरोध किया कि वह ऐसी छह बातों की सूची बनाए, जिन्हें अपनाकर वह एक बेहतर पत्नी बन सके। पति असमंजस में पड़ गया। सोचने लगा कि यदि पत्नी मेरी कमियों को गिनाने लगे, तो संख्या हजारों तक पहुंच जाएगी। सुबह उठकर उसने अपनी पत्नी को छह गुलाब भिजवाएं, इस नोट के साथ कि ‘मैं तुम्हें बदलने के लिए छह कमियां नहीं खोज पाया। तुम जैसी हो, मैं तुम्हें प्यार करता हूं।’
बहुत-सी चीजों को ऐसे खूबसूरत मोड़ देकर ही जिंदगी को बेहतर बनाया जा सकता है।