फोटो गैलरी

Hindi Newsदिमाग में भी होता है खुद का जीपीएस सिस्टम

दिमाग में भी होता है खुद का जीपीएस सिस्टम

कभी आपने सोचा है कि हम कैसे जानते हैं कि हमें कहां और एक जगह से दूसरे जगह कैसे जाना है? दरअसल यह सारा कमाल दिमाग में मौजूद ‘आंतरिक जीपीएस सिस्टम’ का है जिसे वैज्ञानिक ‘पोजिशनिंग...

दिमाग में भी होता है खुद का जीपीएस सिस्टम
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 07 Oct 2014 10:56 AM
ऐप पर पढ़ें

कभी आपने सोचा है कि हम कैसे जानते हैं कि हमें कहां और एक जगह से दूसरे जगह कैसे जाना है? दरअसल यह सारा कमाल दिमाग में मौजूद ‘आंतरिक जीपीएस सिस्टम’ का है जिसे वैज्ञानिक ‘पोजिशनिंग सिस्टम’ भी कहते है। यह आसपास के वातावरण का मानचित्र बनाने के साथ उसमें से निकलने का रास्ता भी सुझाता है।

इसी सिस्टम का पता लगाने के लिए इस साल ब्रिटिश-अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन ओ कीफ, नार्वे के वैज्ञानिक मेय ब्रिट मोजर और एडवर्ड मोजर को चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मनित किया गया है।

कीफ ने पहली बार वर्ष 1971 में इस सिस्टम पर से पर्दा उठाया था। चूहे पर किए शोध में उन्होंने पाया कि दिमाग के हिप्पाकैंपस में मौजूद कुछ खास प्रकार की तंत्रिका कोशिकाएं हमेशा तभी सक्रिय होती हैं, जब चूहा कमरे के किसी खास हिस्से में होता है। जबकि दूसरी प्रकार की तंत्रिका कोशिका कमरे के दूसरे हिस्से में सक्रिय होती है। इस प्रकार उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इन खास तरह की ‘स्थान कोशिकाओं’ की मदद से दिमाग पूरे वातावरण का मानचित्र तैयार करता है। ठीक वैसे ही जैसे सैटेलाइट में लगे कैमरे भू आकृति और मौसम के अनुरूप काम करते हुए मानचित्र तैयार करते हैं।

इस खोज के करीब तीन दशक बाद वर्ष 2005 में मेय ब्रिट और एडवर्ड मोजर ने ‘पोजिशनिंग सिस्टम’ के दूसरे अहम घटक की खोज की। इन्होंने दिमाग में मौजूद एक अन्य प्रकार की तंत्रिका कोशिका की  पहचान की, जिसे उन्होंने ‘ग्रिड कोशिका’ नाम दिया। ये कोशिकाएं समन्यवय सिस्टम का निर्माण करती हैं, जो स्थान और रास्ते ढूढ़ंने की प्रक्रिया के बीच सटीक समन्यवय करता है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें