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लेह-लद्दाख में जवान भूखे नहीं मरेंगे

लेह-लद्दाख की सीमा पर कभी चीन से युद्ध हुआ तो हमारे जवान भूखे नहीं मरेंगे। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की दूरगामी रणनीति के कारण ऐसा संभव हुआ है। डीआरडीओ ने 1962 के चीन युद्ध के बाद इस...

लेह-लद्दाख में जवान भूखे नहीं मरेंगे
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 05 Oct 2014 11:29 PM
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लेह-लद्दाख की सीमा पर कभी चीन से युद्ध हुआ तो हमारे जवान भूखे नहीं मरेंगे। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की दूरगामी रणनीति के कारण ऐसा संभव हुआ है। डीआरडीओ ने 1962 के चीन युद्ध के बाद इस क्षेत्र में खेतीबाड़ी को बढ़ावा देने के प्रयास किए। आज सेना अपनी जरूरत का 60 फीसदी खाद्यान्न स्थानीय स्तर पर मिल जाता है।

डीआरडीओ सूत्रों के अनुसार 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जवान भूख से भी मरे। कारण यह था कि पीछे से रसद की आपूर्ति नहीं हो पा रही थी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पहल पर सफेद मरुस्थल में एक प्रयोगशाला स्थापित करने का फैसला किया गया, जो स्थानीय जनता को उस क्षेत्र में फल, सब्जियां एवं अन्य खाद्यान्न उगाने की तकनीक और प्रशिक्षण मुहैया कराए।
डीआरडीओ ने तब यहां अपनी प्रयोगशाला डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई अल्टीट्यूड रिसर्च (डीआईएचएआर) स्थापित की। यह 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सबसे ऊंची प्रयोगशाला है।

पहले यहां की आबादी को भी अपने भोजन के लिए बाहर की आपूर्ति पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन पिछले 50 सालों में यहां फलों, सब्जियों की खेती, मुर्गी एवं भेड़पालन तेजी से बढ़ा है। प्रयोगशाला में खेती पशुपालन की नई तकनीक विकसित की गई। स्थानीय लोगों को ये तकनीक निशुल्क हस्तांतरित की गई, बल्कि आवश्यक प्रशिक्षण एवं संसाधन भी मुहैया कराए गए।

 

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