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ब्रह्मांड का अंत, तुरंत

स्टीफन हॉकिंग हमारे दौर के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं और उनका कोई भी बयान चर्चित हो जाता है। हॉकिंग सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री हैं और उन्हें अपने सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर ऐसी बातें करने में महारत...

ब्रह्मांड का अंत, तुरंत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 14 Sep 2014 06:51 PM
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स्टीफन हॉकिंग हमारे दौर के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं और उनका कोई भी बयान चर्चित हो जाता है। हॉकिंग सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री हैं और उन्हें अपने सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर ऐसी बातें करने में महारत हासिल है, जिसकी आम लोगों में भी चर्चा हो जाए। अपनी नई किताब स्टारमस की प्रस्तावना में उन्होंने लिखा है कि हिग्स-बोसोन या कथित गॉड पार्टिकल किसी भी क्षण दुनिया को नष्ट कर सकता है। हिग्स-बोसोन की परिकल्पना वैज्ञानिक पीटर हिग्स और उनके साथियों ने साठ के दशक के शुरू में की थी और सन 2012 में इसके अस्तित्व का प्रायोगिक साक्ष्य मिला। बहुत साल पहले हिग्स-बोसोन को एक वैज्ञानिक ने लगभग मजाक में गॉड पार्टिकल कह दिया था, क्योंकि परिकल्पना के मुताबिक वह दुनिया में हर कहीं है, लेकिन दिखता नहीं है, तब से उसका नाम ज्यादा चर्चित हो गया। हिग्स पार्टिकल दुनिया के अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि यह तमाम सूक्ष्म कणों को भार प्रदान करना है। हॉकिंग के विचार को संक्षेप में और सरल ढंग से यूं समझा जा सकता है कि हिग्स-बोसोन पूरी दुनिया में समान रूप से व्याप्त है और इसका भार भी काफी ज्यादा है, यह प्रोटोन से 126 गुना ज्यादा भारी होता है।

वैज्ञानिक सन 2012 में इसकी खोज के बहुत पहले से यह मानते थे कि इतने भारी कण के होने का अर्थ है कि अत्यंत निम्न ऊर्जा स्थितियों का भी अस्तित्व है। कोई भी चीज स्वाभाविक रूप से सबसे निचली स्थिति तक जाती है, जैसे अगर कोई गेंद पहाड़ी से लुढ़का दी जाए, तो वह सबसे निचली सतह पर जाकर रुकेगी। किसी भी व्यवस्था की प्रवृत्ति निम्नतम ऊर्जा स्थिति तक जाकर स्थिर होने की होती है। हिग्स-बोसोन और एक अन्य बुनियादी कण टॉय क्लार्क के संतुलन से यह ब्रह्मांड बना हुआ है। किसी वजह से यह संतुलन बिगड़ जाए, तो वह निम्नतम ऊर्जा स्तर पर पहुंच जाएगा और क्षण के एक छोटे-से हिस्से में पूरी तरह गायब हो जाएगा। यह प्रक्रिया कहीं एक जगह शुरू होगी और प्रकाश की गति से पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगी। सैद्धांतिक रूप से ऐसा हो सकता है। वैज्ञानिक नजरिये से ब्रह्मांड बना भी ऐसे ही एक सेकंड के कुछ अरबवें हिस्से में था। लेकिन इसकी आशंका कितनी है, यह सोचने की बात है। यह दुनिया तमाम किस्म की असंतुलित और अधूरी व्यवस्थाओं से मिलकर बनी है, जिनमें कभी भी कुछ भी होने की संभावना या आशंका रहती है।

आशंका यह भी है कि कोई खतरनाक वायरस अचानक पैदा हो और सारे जीवन को नष्ट कर दे। स्टीफन हॉकिंग ने एक बार इस खतरे की भी बात की थी। यह भी डर है कि कभी कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लैस मशीनें इंसान के काबू से बाहर हो जाएं। ये सारी आशंकाएं भी बेबुनियाद नहीं हैं। दुनिया और जीवन को सिर्फ भौतिकी के नियम या उनकी निश्चितता नहीं चलाती। हम लगातार अनिश्चितता और खतरों के बीच इसीलिए चलते जाते हैं, क्योंकि हमें जीवन के आधारभूत तत्व के बने रहने का भरोसा रहता है। व्यावहारिक जीवन में अगर किसी घटना के होने की संभावना एक निश्चित प्रतिशत से ज्यादा हुई, तभी हम उसके होने की संभावना पर विचार करते हैं। दुनिया में फिलहाल प्रदूषण से पैदा घातक बीमारियों के फैलने या परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा ज्यादा है। यहां तक कि सड़क दुर्घटना में मौत होने का खतरा हिग्स-बोसोन से दुनिया के नष्ट होने के खतरे से कहीं ज्यादा है। हॉकिंग का कथन दार्शनिक चिंतन के लिए एक आधार हो सकता है, फिलहाल हिग्स-बोसोन के खतरे से दुनिया को बचाने की फिक्र करना बेमानी है।

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