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बिना हॉकी स्टेडियम के शहर से इंचियोन तक का सफर

एक ऐसे परिवार से आना जिसमें चार भाई और तीन बहन हो, उसमें भी एक ऐसा खेल चुनना जिसका आधारभूत ढांचा उस प्रदेश में न हो। उसके बावजूद भारतीय हॉकी टीम के उन खिलाड़ियों की कतार में शामिल होना, जो 100 से...

बिना हॉकी स्टेडियम के शहर से इंचियोन तक का सफर
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 15 Sep 2014 04:22 PM
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एक ऐसे परिवार से आना जिसमें चार भाई और तीन बहन हो, उसमें भी एक ऐसा खेल चुनना जिसका आधारभूत ढांचा उस प्रदेश में न हो। उसके बावजूद भारतीय हॉकी टीम के उन खिलाड़ियों की कतार में शामिल होना, जो 100 से ज्यादा मैच खेल चुके हैं। यह बड़ी उपलब्धि ही कही जाएगी।

भारतीय हॉकी टीम की फॉरवर्ड वंदना कटारिया का सफर उत्तराखंड के हरिद्वार से शुरू हुआ था, जो अब इंचियोन एशियाड में जाने वाली टीम तक का सफर तय कर चुका है। उनकी हॉकी ट्रेनिंग लखनऊ हॉस्टल से हुई थी। वंदना इंचियोन एशियाड के लिए दिल्ली के मेजर ध्यानचंद हॉकी स्टेडियम में प्रैक्टिस कर रहीं हैं।

पिता ने लगातार बढ़ाया हौसला
वंदना ने बताया कि उत्तराखंड से हॉकी के उतने खिलाड़ी नहीं हैं। हरिद्वार में हॉकी का स्टेडियम भी नहीं है, इसलिए इस खेल में आना ही एक बड़ी चुनौती थी। उनकी बड़ी बहन रीना कटारिया खुद राष्ट्रीय स्तर की हॉकी खिलाड़ी थी, उनको देखकर ही हॉकी खेलना शुरू किया था। भेल में मास्टर टेक्निशियन पद पर तैनात पिता नाहर सिंह ने लगातार उनका हौसला बढ़ाया। कई बार ट्रायल में भी वह उनके साथ गये। वंदना 2002 में जब छठी क्लास में थी, तब पहली बार हॉकी स्टिक उन्होंने थामी थी। हरिद्वार में रौशनाबाद स्टेडियम में कोच कृष्ण कुमार ने उन्हें कोचिंग देना शुरू किया था। उन्होंने सबसे पहली बार उनकी प्रतिभा को पहचाना। हालांकि टीम प्रैक्टिस न होने के कारण वह सातवीं क्लास में लखनऊ चली गईं थी।

हॉस्टल ने बदला करियर का रुख
वंदना ने बताया कि हॉकी करियर में बदलाव 2005 में आया जब उनका चयन लखनऊ हॉस्टल में हुआ था। टीम इंडिया के लिए 2008 में पदार्पण किया। उन्होंने विश्वास जताया कि कॉमनवेल्थ में जो कमी रह गई थी वह उसे इंचियोन में अच्छा प्रदर्शन कर पूरा करने की कोशिश करेंगी।
104 मैच भारतीय टीम के लिए खेल चुकी हैं, 20 गोल किए हैं
फॉरवर्ड पोजीशन में खेलती हैं भारतीय टीम के लिए
2013 में जूनियर विश्व कप में कांस्य पदक जीतने वाली टीम की रहीं हिस्सा
05 में दागे थे उन्होंने चार गोल

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