सपनों का घर और सपनों में घर
नए जन्म में पुरानी बातें सिर्फ इसलिए याद रहनी चाहिए, ताकि हमें पता रहे कि पिछले जन्म में किस बिल्डर से मकान बुक करवाया था। कुछ लोग आपत्ति करेंगे कि इससे आदमी पिछले जन्म में औरतों से मिले अनुभव को भी...
नए जन्म में पुरानी बातें सिर्फ इसलिए याद रहनी चाहिए, ताकि हमें पता रहे कि पिछले जन्म में किस बिल्डर से मकान बुक करवाया था। कुछ लोग आपत्ति करेंगे कि इससे आदमी पिछले जन्म में औरतों से मिले अनुभव को भी भुला नहीं पाएगा। इसीलिए मेरा मानना है कि ऊपर वाले को याददाश्त के मामले में सिर्फ बिल्डरों से जुड़ा सीमित संविधान संशोधन करना चाहिए, जिससे कुछ याद रहे न रहे, इतना पता हो कि 18 महीने के पोजेशन के वादे पर उसके पुरखों ने 1800 साल पहले किससे मकान बुक कराया था?
ऐसे बहुत से भारतीय परिवारों को जानता हूं, जहां बच्चे के चार-पांच साल का होते ही उसकी छाती पर बिल्डर के नाम और पते का टैटू गुदवा दिया जाता है और कुछ भारतीय परिवारों में तो यह परंपरा कुतुबुद्दीन ऐबक के समय से चली आ रही है। ऐसे ही एक परिचित ने लेटेस्ट 250 साल पहले मकान बुक करवाया था, उनका कहना है कि उनके पूर्वजों को एक बिल्डर ने नोएडा एक्सटेंशन में उस समय ‘छह महीने में मेट्रो आ रही है’ कहकर मकान बेच दिया, जब भारत में पहली रेलगाड़ी भी नहीं चली थी।
उनका कहना है कि 19वीं सदी के अंत तक जब भी घर पर पिताजी के अंग्रेज मित्र चाय पीने आया करते थे, तो अक्सर बड़े गर्व से वह उन्हें ब्रोशर दिखाकर बताते थे कि कैसे उन्होंने पार्क फेसिंग, थ्री साइड ओपन बालकनी और वुडन फ्र्लोंरग मास्टर बेडरूम वाला तीन कमरों का मकान बुक करवाया है, मगर 20वीं सदी के आते-आते ब्रोशर फटने लगा, तो उन लोगों ने उसे लेमिनेट करवा लिया।
देश आजाद होते-होते उसकी हालत और खराब होने लगी, तो उन लोगों ने ब्रोशर के अलग-अलग पन्नों को फोटो फ्रेम करवाकर घर की लॉबी में लगा दिया, ताकि आने-जाने वाले बिना हाथ लगाए उसे देख पाएं और उसकी पुरातात्विकता बची रहे। यह बताते-बताते भावुक होकर वह बोला, पूर्वजों ने यह सोचकर ‘ड्रीम वैली’ प्रोजेक्ट में मकान बुक कराया होगा कि हम ऐसी वादी में रहेंगे, जिसका लोग सपना देखते हैं। क्या पता था कि इसका नाम ‘ड्रीम वैली’ रखा ही इसलिए गया कि आप इसका सपना देखते रहें।