मेक्सिको के रेगिस्तान में मिली डायनासोर की पूंछ
प्रकृति जितनी खूबसूरत है, उतने ही रहस्यों को खुद में समेटे हुए भी है, जो समय-समय पर सामने आते रहते हैं। अभी हाल ही में उत्तरी मेक्सिको के जेनरल सीपेडो शहर के रेगिस्तान में डायनासोर प्रजाति के जीव की...
प्रकृति जितनी खूबसूरत है, उतने ही रहस्यों को खुद में समेटे हुए भी है, जो समय-समय पर सामने आते रहते हैं। अभी हाल ही में उत्तरी मेक्सिको के जेनरल सीपेडो शहर के रेगिस्तान में डायनासोर प्रजाति के जीव की 5 मीटर लंबी पूंछ का जीवाश्म मिला है। इसे देखकर पुरातत्वविद हैरान हैं, क्योंकि यह पूंछ प्राकृतिक रूप से संरक्षित मिली है। इसमें मिली 50 हड्डियां अभी भी सुरक्षित हैं। इस पूंछ के जीवाश्म के आस-पास कई और हड्डियां भी प्राप्त हुई हैं।
पुरातत्वविदों के अनुसार यह डायनासोर करीब 72 मिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में रहा होगा, मतलब कि यह काफी असाधारण जीवाश्म है। उन्होंने जब इस पूंछ के जीवाश्म को पूरी तरह से देखा, तब इसकी लंबाई देख वे हैरान रह गए, क्योंकि यह पूंछ 5 मीटर लंबी थी। पूरे 20 दिन की खुदाई के बाद इस जीवाश्म को निकाला गया। बड़ी सावधानी से यह खुदाई पूरी की गई, ताकि इस जीवाश्म को सुरक्षित बाहर निकाला जा सके, जिसे प्रकृति ने 72 मिलियन वषरे तक संभाल कर रखा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह लंबी पूंछ पूरे डायनासोर के शरीर का आधा हिस्सा रही होगी और वह डायनासोर 36 फीट लंबा होगा। इस पूंछ में 50 कशेरुकी हड्डियां हैं, जो बिल्कुल सुरक्षित हैं। साथ ही मेक्सिको में मिली यह पहली ऐसी पूंछ है, जो अच्छी अवस्था में है। राष्ट्रीय मानव शास्त्र एवं इतिहास संस्थान (आईएनएएच) के अनुसार यह पूंछ किसी हैड्रोसॉर की हो सकती है, जो क्रिटेशस पीरियड के अंत में पृथ्वी पर मौजूद थे। पर इसकी सख्त चोंच व चेहरे की बनावट के कारण इसे डक-बिल्ड डायनासोर भी माना जा रहा है। इनके पास 1,000 छोटे-छोटे पत्तों के आकार के दांत भी थे।
ऐसा माना जा रहा है कि यह प्रजाति उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में पाई जाती थी और ये डायनासोर की अंतिम प्रजाति थी। हालांकि मेक्सिको के रेगिस्तान में मिली यह पूंछ अपने आप में एक उपलब्धि है।
अब यह टीम सावधानी से आगे की जांच के लिए इसे दूसरे शहर में भेज देगी, जहां इस पर पूरा शोध किया जाएगा। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि ये विशाल जानवर किन रोगों से ग्रस्त थे। इस तरह की पहले मिली हड्डियों पर शोध से पता चला है कि ये जंतु ट्यूमर व आर्थराइटिस जैसी बीमारियों से ग्रस्त थे और इसी बीमारी के कारण इनकी बड़ी संख्या में मौत हुई। वैज्ञानिक इस खोज को बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं।