पेशेवरों को तोड़ने से तौबा करती कंपनियां
अब अपने पेशेवरों के उन्हें खटाखट छोड़ने से परशान प्रतिस्पर्धी कंपनियों ने भी आपस में हाथ मिलाना शुरू कर दिया है। बीपीो सेक्टर से शुरू हुआ सिलसिला अन्य क्षेत्रों में भी देखा जा रहा है। आटो,...
अब अपने पेशेवरों के उन्हें खटाखट छोड़ने से परशान प्रतिस्पर्धी कंपनियों ने भी आपस में हाथ मिलाना शुरू कर दिया है। बीपीो सेक्टर से शुरू हुआ सिलसिला अन्य क्षेत्रों में भी देखा जा रहा है। आटो, स्टील,फार्मा वगैरह क्षेत्रों की कंपनियों ने लिखित-अलिखित नो-पोचिंग एग्रीमेंट करने शुरू कर दिए हैं। इसके तहत वे एक-दूसर के पेशेवरों को अपने यहां नौकरी नहीं देंगी। सूत्रों का कहना है कि हाल ही में मुम्बई में आटो सेक्टर की कुछ कंपनियों ने एक-दूसर के मंजे हुए पेशेवरों को न तोड़ने संबंधी एक समझौता कर लिया। यानी कि अब इनके मुलाजिम इनमें बेहतर पद या वेतन पर नहीं जा पाएंगे। बीपीओ एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रवक्ता दीपक कपूर ने कहा कि करीब डेढ़ साल पहले बीपीओ कंपनियां अपने मुलाजिमों के उन्हें जल्दी-ाल्दी अलविदा कहने के चलते इतनी परशान हो गई कि उन्हें इस प्रकार के कदम को उठाने के लिए बाध्य होना पड़ा। जानकार कह रहे हैं कि नो पोचिंग एग्रीमेंट सिर्फ भारतीय कंपनियों के बीच में हो रहा है। भारत में अपना कारोबार करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने को इस अभियान से फिलहाल दूर ही रखा हुआ है। उदाहरण के रूप में मारुति उद्योग लिमिटेड का कोई इंजीनियर बजाज या टीवीएस मे नहीं जा सकता, पर उसे हुंडुई, होंडा, फोर्ड या इस सेक्टर की किसी अन्य कंपनी में जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। प्रमुख एचआर फर्म ट्रू वेल्थ के सीईओ राजीव तिवारी कहते हैं कि पश्चिमी देशों में नो पोचिंग की रिवायत पुरानी हो गई है।