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पेट्रोल बेलगाम

च्चे तेल की तपिश अभी भारतीय उपभोक्ता तक नहीं पहुंची है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सरकारी सब्सिडी का कवच हमेशा उसे अभयदान देता रहेगा। जो देश अपनी कुल तेल खपत का सत्तर फीसदी हिस्सा इंपोर्ट करता हो और...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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च्चे तेल की तपिश अभी भारतीय उपभोक्ता तक नहीं पहुंची है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सरकारी सब्सिडी का कवच हमेशा उसे अभयदान देता रहेगा। जो देश अपनी कुल तेल खपत का सत्तर फीसदी हिस्सा इंपोर्ट करता हो और जिसका कुल इंपोर्ट बिल दो साल में 38 अरब डॉलर से 64 अरब डॉलर हो चुका हो, वहां बाजार की यह सुनामी किसी के रोके नहीं रुक सकती। दाम तो बढ़ेंगे, सवाल बस यही है कि अब बढ़ेंगे या आम चुनाव के बाद बढ़ेंगे और दामवृद्धि का कितना हिस्सा सरकार अपने खजाने से चुकाएगी। जो कच्चा तेल 1में 10 डॉलर प्रति बैरल पर बिक रहा था, वह बीते शुक्रवार 126 डॉलर का सर्वकालीन रिकॉर्ड स्तर छू आया है। माना जा रहा है कि इससे भारत सरकार के सब्सिडी बिल में 20 अरब डॉलर का इजाफा होगा। इसका एक मतलब तो यह है कि हमारी कुल निर्यात आय का आधा हिस्सा सिर्फ पेट्रोल खरीदने में खर्च हो जाएगा और वह विदेशी मुद्रा भंडार छीाने लगेगा जिस पर हम फूले नहीं समाते। दूसरा मतलब यह है कि भारत सरकार जल्दी ही उस बिंदु पर पहुंचने वाली है, जहां या तो पेट्रो कंपनियों को बचाने के लिए पेट्रो बांड की नई किस्त जारी करनी होगी या फिर उस टैक्स रवेन्यू की कुर्बानी देनी होगी, जो पेट्रोल पर वसूला जाता है। दोनों ही स्थितियों में एफआरबीएम एक्ट से बंधी केंद्र सरकार के राजकोषीय अनुशासन की धज्जियां उड़ेंगी और वित्त मंत्रालय के समीकरण बिगड़ेंगे। मगर इन संभावनाओं से ज्यादा भयावह ईरानी तेल मंत्री का यह बयान है कि दाम 200 डॉलर तक भी पहुंच सकता है। कुछ अरसा पहले फिक्की ने हिसाब लगाकर बताया था कि कीमत में हर 10 डॉलर की वृद्धि के साथ विकास दर में एक फीसदी कटौती की आशंका है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि ईरानी तेल मंत्री का बयान कितने गहर अर्थ रखता हैं। हम भूले नहीं हैं कि 1और 1े तेल संकट की तरह 1े ऑयल बूम ने भी भारतीय अर्थतंत्र की चूलें हिला दी थीं और मुल्क रातोंरात सोना गिरवी रखने पर मजबूर हो गया था। मौजूदा तेजी भी कम खतरनाक नहीं। मायूस करने वाली बात यही है कि तेल उत्पादक मुल्कों की गुटबंदी से जूझने के लिए वैकल्पिक ईंधन विकसित करने की जसी छटपटाहट पश्चिमी देशों में दिखने लगी है, उसकी छाया हमार यहां नजर नहीं आती। बिल्ली को नकारने के लिए हमने कबूतर की तरह आंखें बंद कर रखा है।ड्ढr

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