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बाहर जाकर देखिए जमाना तेजी से बदल रहा है

फिल्मकार महेश भट्ट को लगता है कि 1999 में फिल्म जख्म के बाद निर्देशन के काम से संन्यास लेना उनका एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला था। उस फैसले की बदौलत ही आज उनका बैनर फल-फूल रहा है। अक्सर सामाजिक मुद्दों...

बाहर जाकर देखिए जमाना तेजी से बदल रहा है
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 16 Aug 2014 10:10 PM
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फिल्मकार महेश भट्ट को लगता है कि 1999 में फिल्म जख्म के बाद निर्देशन के काम से संन्यास लेना उनका एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला था। उस फैसले की बदौलत ही आज उनका बैनर फल-फूल रहा है। अक्सर सामाजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय के साथ टेलीविजन पर दिख जाने वाले भट्ट साहब की अब छोटे परदे पर एक नई पारी देखने को मिलेगी। जल्द ही प्रसारित होने वाले नए शो उड़ान  से वह जुड़े हैं, जो उनकी ही एक फिल्म गिरवी  का अक्स है। उनके जीवन के कई पहलुओं पर विशाल ठाकुर ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत हैं इसके अंश-

नए टीवी शो उड़ान से आपको क्या उम्मीद है?
यह एक बेहद दिलचस्प प्रोजेक्ट है। आजकल जो टीवी पर हो रहा है, उससे बिल्कुल अलग। उड़ान, मेरी एक फिल्म गिरवी  का ही अक्स है, जिसे हम किसी वजह से रिलीज नहीं कर पाए थे। बात 1992 की है, जब यह कांसेप्ट मेरे दिमाग में आया था। बंधुआ मजदूरी जैसे विषय को उस समय मैंने काफी रिसर्च करके डेवलप किया था। पर बात नहीं बनी। समय के साथ मानो इस प्रोजेक्ट पर धूल-सी चढ़ती गई।

आज के नए दौर में बंधुआ मजदूरी की याद फिर कैसे आई?
देखिए, इतने लंबे अंतराल के दौरान देश में बहुत कुछ बदला है। पर कुछ चीजें ऐसी हैं, जो बिल्कुल नहीं बदली हैं। बंधुआ मजदूरी भी एक ऐसा ही विषय है। इस दिशा में बहुत से लोग काम कर रहे हैं। मेरे कई पुराने साथी इस दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह की जागरूकता होनी चाहिए या यों कहिए कि इस विषय को जिस ढंग से घर-घर पहुंचाने की आवश्यकता है, उस दिशा में वह सब नहीं हो पाया है, जो होना चाहिए था। उड़ान  उस प्रयास में पहला और बड़ा कदम है। मैंने कलर्स चैनल पर इससे पहले कुछेक धारावाहिक देखे, जिनमें सामाजिक कुरीतियों से लड़ना या उनके बहिष्कार की बातों को काफी प्रमुखता से उठाया गया था। इसलिए जब हमने इस शो के लिए चैनल से संपर्क किया, तो उन्हें हमारा कांसेप्ट पसंद आया। फिर भी मैं यही कहूंगा कि यह प्रयास एक तरफा नहीं है। उड़ान  के लिए एक कदम हमारा है, तो दूसरा उनका।

इसमें टीवी वाली अति नाटकीयता तो नहीं आ जाएगी?
नब्बे के दौर से अब तक सैटेलाइट चैनलों में बहुत बदलाव आया। तमाम तरह के ट्रेंड आए और गए। कुछ हैं, जो अब भी चल रहे हैं। उड़ान  के जो निर्देशक हैं गुरुदेव भल्ला, वह मेरे असिस्टेंट रह चुके हैं। लंबे समय तक साथ काम करने से हमें एक-दूसरे के बारे में पता है। उन्हें पता है कि मुझे क्या चाहिए। मेरा उड़ान से जुड़ने का मकसद भी यही है कि बात दर्शकों तक सीधे तरीके से पहुंचे।

आप लीक से इतना हटकर क्यों चलते हैं? इंडस्ट्री जब पारिवारिक फिल्में बना रही थी, तब आप मर्डर  ले आए। लोग बिग बॉस  देख रहे थे, तो आपने वहां जाकर सनी लियोन को साइन कर लिया?
जब हमने बिग बॉस के शो में जाकर सनी लियोन को साइन किया, तो बड़ा हल्ला हुआ। पर मैं आपको एक चौंकाने वाली बात बताता हूं। सनी लियोन की फिल्म जिस्म-2 जब रिलीज हुई, तो मैं हमेशा की तरह सिंगल स्क्रीन थिएटरों का जायजा लेने पहुंचा। मैं हैरान था यह देखकर कि महिलाएं अपने छोटे बच्चे को गोदी में उठाए अपने शौहर के साथ फिल्म देखने के लिए लाइन में लगी थीं। ये पारिवारिक फिल्म वगैरह बनाना, ब्रांडिंग की बातें हैं। बाहर जाकर देखिए, जमाना तेजी से बदल रहा है। पब्लिक को आज सब कुछ चाहिए।

सौ करोड़ी क्लब में आप कितना यकीन रखते हैं?
मैं इन सब बातों को नहीं मानता। 80-90 करोड़ में बनी फिल्म अगर 100 करोड़ से ऊपर बटोरती है, तो उसे क्या आप हिट फिल्म कहेंगे? ऐसी फिल्म अगर 150 करोड़ से ऊपर भी इकट्ठा करती है, तब भी वह औसत से ऊपर नहीं कहलाएगी। हर ट्रेड में सफल और असफल का अपना एक पैमाना होता है। हमने आशिकी-2 बनाई। 10-12 करोड़ में बनी थी फिल्म। बिजनेस किया 80-90 करोड़। इसे आप कहेंगे सफल फिल्म। अपनी लागत से दोगुना या उससे अधिक फिल्म की कमाई होती है, तभी उसे हिट या सुपरहिट कहा जा सकता है।

आजकल कई बैनर युवा फिल्मकारों को बढ़ावा देने के लिए अलग से एक डिवीजन बना रहे हैं?
मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ करने की जरूरत है। हम प्रतिभाशाली युवाओं को कुछ नहीं दे सकते, बल्कि वे हमें कुछ न कुछ देकर जाते हैं। हम उन्हें बनाने वाले कौन होते हैं? हमारे बैनर ने एक से बढ़कर एक नए लोगों को मौका दिया। मुझे अब तक तो गिनती भी याद नहीं है। वे नए लोग हमारे साथ आए और आगे बढ़ गए। फिर नए लोग आएंगे और आगे बढ़ जाएंगे। इसके लिए अलग से बैनर का गठन, मेरी समझ से परे है।

आलिया और पूजा में से अभिनय के मामले में कौन बेहतर है?
घर में पिटवाओगे क्या? मैं बताऊं  पूजा कभी एक्ट्रेस बनना ही नहीं चाहती थीं। वह तो फिल्म डैडी  में एक छोटे-से रोल के लिए उन्हें कास्ट कर लिया गया और फिर बस मौके मिलते गए। लेकिन आलिया की सफलता चौंकाती नहीं है। उसे शुरू से पता था कि उसे क्या करना है। उसे एक्टिंग ही करनी है। पहली फिल्म से आलिया को अच्छी लांचिंग मिली और बाद में भी उसने बेहतर काम जारी रखा।

 

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