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सरहदों ने रिश्तों को भी बांटा, बरसों से सूनी हैं भाइयों की कलाइयां

सरहदें देशों को बांट सकती हैं, रिश्तों को नहीं, लेकिन पाकिस्तान से लगती राजस्थान की पश्चिमी सीमा पर सरहदी लकीरों ने रिश्तों को भी बांट दिया है। सरहद और सरहदी कानूनों के चलते पिछले कई वर्षो से यहां के...

सरहदों ने रिश्तों को भी बांटा, बरसों से सूनी हैं भाइयों की कलाइयां
एजेंसीSun, 10 Aug 2014 03:24 PM
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सरहदें देशों को बांट सकती हैं, रिश्तों को नहीं, लेकिन पाकिस्तान से लगती राजस्थान की पश्चिमी सीमा पर सरहदी लकीरों ने रिश्तों को भी बांट दिया है। सरहद और सरहदी कानूनों के चलते पिछले कई वर्षो से यहां के कई भाइयों की कलाइयां सूनी हैं, तो सैकड़ों बहनों को अपने भाइयों का इंतजार है। इनमें से कई भाई-बहन तो उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं जहां उम्मीदें दम भी तोड़ने लगी हैं।
   
पाकिस्तान के मीरपुर निवासी कलावती जब भारत आयीं तो बाड़मेर में रह रहे अपने परिवार से नहीं मिल सकीं। उनसे मिलने के लिए उनके परिवार को जोधपुर आना पड़ा।
   
बाड़मेर निवासी ताराचंद सोनी का परिवार 1971 के भारत पाक युद्व के समय भारत आकर बस गया। लेकिन उनकी छोटी बहन कलावती की सगाई पाकिस्तान के जेमकाबाद, जिला मीरपुरखास निवासी शिशपालदास से तय होने के कारण 1979 में उनकी शादी हो गयी। शादी के बाद कलावती पाकिस्तान अपने ससुराल चली गयी। तब से वह एक बार भी अपने भाइयों को राखी बांधने नहीं आयी हैं।
   
ताराचंद ने कहा कि इस अवधि में उनके माता-पिता का देहांत हो गया, लेकिन कलावती वीजा नहीं मिलने के कारण नहीं आ सकीं। सोनी बताते है कि सात साल पहले 2007 में कलावती भारत आयीं, लेकिन बाड़मेर का वीजा नहीं होने के कारण वो बाड़मेर नहीं आ सकीं। लिहाजा पूरा परिवार कलावती से मिलने जोधपुर गया।
   
सरहद के उस पार पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मीठी, मीरपुर खास, हैदराबाद और कराची में सैकड़ों हिन्दू परिवार आबाद हैं, मगर वह जब अपने भाई बहनों से मिलने भारत आते हैं तब उन्हें राजस्थान के सरहदी जिले में जाने की इजाजत नहीं मिलती।
   
बाड़मेंर निवासी शांति देवी की शादी 1974 में हुई और उनका ससुराल पाकिस्तान से भारत आकर बस गया। तब से शांति देवी ने एक बार भी अपने भाई को राखी नहीं बांधी है। शांति देवी के चार भाई पीताम्बर, सवाईराम, नंदलाल और चंदन आज भी पाकिस्तान के मीरपुरखास इलाके में रहते हैं।
   
शांति देवी ने कहा कि वे शादी के बाद दो बार पाकिस्तान गयीं थी लेकिन अपने भाईयों को राखी नहीं बांध पायी, क्योंकि राखी का त्यौहार दूर था। 57 वर्षीय शांति देवी कहती हैं कि राखी के दिन फोन पर जब वह भाइयों से बात करती हैं तो उनकी आंखें आसुंओं से भर जाती हैं। बकौल शांति देवी सरहदों ने रिश्तों को बेमानी कर दिया है।
   
शांति देवी ने भरे गले से कहा कि बस, अब एक दुआ है, कि वह दिन आए जब मैं भी दूसरी बहनों की तरह अपने भाइयों को राखी बांध सकूं।

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