स्वस्थ रहेंगे बच्चे उन्हें दें भरपूर पोषण
महानगरों की जीवनशैली में बाजार के भोजन का सेवन बहुत बढ़ गया है। इस वजह से नई पीढ़ी में उग्रता और व्यावहारिक समस्याएं पैदा हो रही हैं। इससे बचाव के लिए कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं। आप अपने बच्चे के...
महानगरों की जीवनशैली में बाजार के भोजन का सेवन बहुत बढ़ गया है। इस वजह से नई पीढ़ी में उग्रता और व्यावहारिक समस्याएं पैदा हो रही हैं। इससे बचाव के लिए कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं। आप अपने बच्चे के भोजन में क्या बदलाव लाएं और कैसे, आइए जानें।
बच्चे आहार के मामले में काफी संवेदनशील होते हैं। उनका दिमाग और शरीर विकास करने की अवस्था में रहता है, इसलिए उन्हें कितना और क्या खाना चाहिए, इस बात पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। आप कुछ जरूरी बातों पर ध्यान देकर अपने बच्चों के आहार को संतुलित बना सकते हैं और उनकी सेहत सुधार सकते हैं।
बच्चों की आम समस्याएं
आमतौर पर बच्चों में एकाग्रता में कमी, उग्र होने पर नखरे दिखाना, स्मरणशक्ति में कमी, असामाजिक व्यवहार, पढ़ाई आदि के बोझ से उबर न पाना आदि की समस्याएं दिखती हैं। आजकल बच्चों में आहार और पोषण संबंधी कई तरह की परेशानियां देखी जा रही हैं। उनके खान-पान की गलत आदतों की वजह से ऐसा हो रहा है।
क्या हैं बचाव के उपाय
स्नैक्स में अनाज के सैंडविच, इडली, डोसा, स्प्राउट्स आदि हों तो काफी अच्छा है।
’सॉफ्ट ड्रिंक और मीठे पेय पदार्थो की बजाय बच्चे को पानी पीने को प्रोत्साहित करें। समय-समय पर नींबू पानी भी दें।
’ बच्चों के खान-पान में शर्करा की मात्र कम रहे, इस बात का ध्यान रखें।
’ स्कूल में पैकेज्ड फूड की अधिक मात्र को नजरंदाज करें।
’ बच्चे को हानिकारक खाने के बुरे प्रभावों के बारे में बताएं और यह भी बताएं कि कौन सा खाना कब खाएं।
’ उन्हें बाजार की चीजें खाने से रोकें और उसके नुकसान समझाएं।
’ हर साल बच्चे के स्वास्थ्य की नियमित जांच कराते रहें।
क्या कहते हैं रिसर्च
’ कई विटामिनों की कमी बच्चों को चिड़चिड़ा बना देती है। नियासिन, 4 पैंटोथेनिक एसिड, 5 थाइमिन 6, विटामिन बी 67, विटामिन सी 8 इनमें शामिल है।
’ लॉन्सडेल और शैमबर्गर ने अमेरिकन जर्नल और क्लिनिकल न्यूट्रीशन की 20 लोगों की जंक फूड खाने की आदत पर एक रिपोर्ट में बताया है कि उन लोगों में थाइमिन की कमी थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि किशोरावस्था में अक्सर किशोर अत्यधिक चिड़चिड़े हो जाते हैं।
’ एक रिसर्च में बाइपोलर डिसऑर्डर (एक तरह की मानसिक परेशानी) के शिकार 13 मरीजों को सब्जियों से प्राप्त प्राकृतिक लीथियम से ठीक किया गया। 10 दिनों के भीतर ही इन मरीजों में काफी सुधार देखा गया और उन पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा।
’ इस तरह के सबूत मिल रहे हैं कि आयरन की कमी बच्चों में उग्रता पैदा कर रही है। आयरन की कमी किशोरों के उग्र व्यवहार के लिए भी जिम्मेदार है।
’जिंक, आयरन, विटामिन बी, प्रोटीन की कमी की वजह से आईक्यू कम हो जाता है, जो बाद में उन्हें असामाजिक बना देता है। ये सारे पोषक तत्व दिमाग के विकास के लिए काफी जरूरी हैं।
’ ऑटिज्म के शिकार कुछ बच्चों में विटामिन ए, बी 1, बी 3, बी 5 के अलावा बायोटिन, मैगनीशियम, सेलेनियम और जिंक जैसे पोषक तत्वों की कमी होती है।
आपको अनेक बीमारियों से दूर रखें टीके
बच्चों को तो आप टीके/वैक्सीनलगवाते हैं, पर क्या आपने अपने लिए आवश्यक टीके लगवाए हैं? यदि नहीं, तो कुछ ऐसे टीके हैं, जिन्हें जल्द से जल्द लगवाना चाहिए, क्योंकि ये सेहत के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनके बारे में बता रही हैं श्रुति गोयल
मारे देश में बच्चों को टीके यानी वैक्सीन लगवाने के लिए तो सजगता है, पर वयस्कों में इस सजगता की कमी होती है। यह समझ लेना बेहद जरूरी है कि कुछ टीके हमें रोगों का शिकार होने से तो बचने ही हैं, उसकी आशंका से भी दूर रखते हैं। इससे स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीना आसान हो जाता है।
न पालें गलतफहमियां
दो राय नहीं कि हमारे देश में बड़ों के लिए टीकों को लेकर जागरूकता कम है। कुछ लोग इस बात से भी डरते हैं कि टीके लगवाने पर कहीं कोई रिएक्शन न हो जाए। विशेषज्ञ बताते हैं कि टीके से किसी भी तरह के नुकसान की आशंका बहुत ही कम होती है, जबकि फायदे अनेक होते हैं। इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि टीके किसी विशेषज्ञ से ही लगवाएं।
हेपेटाइटिस बी
बचाव: यह टीका लीवर अर्थात् जिगर से जुड़ी तकलीफों और रोगों से बचाता है। इससे लीवर कैंसर की आशंका भी कम हो
जाती है।
अवधि: 10 साल में एक बार लगवाएं।
खुराक: यह वैक्सीन तीन खुराक में दी जाती है। पहली खुराक, फिर उसके एक महीने बाद दूसरी और फिर छह महीने बाद तीसरी। इसके बाद यह वैक्सीन पूरी मानी जाती है।
हेपेटाइटिस ए
यह वैक्सीन पीलीया, लीवर फेलियर आदि से रक्षा करती है।
अवधि: यह वैक्सीन भी 10 साल तक असरदार होती है।
खुराक: इसकी दो खुराक दी जाती हैं। पहली खुराक के छह महीने बाद दूसरी खुराक।
टेटनस या डीटी
यह वैक्सीन टेटनस और डिफ्थीरिया रोग से बचाती है। जंग लगी लोहे की चीजों से होने वाले संक्रमण से बचाती है।
अवधि: इस वैक्सीन का असर 10 साल के लिए होता है। बचपन में आपका वैक्सीनेशन नहीं हुआ तो इसे 6 महीने पर लगवाना होता है।
इन्फ्लुएंजा
यह वैक्सीन फ्लू, कोल्ड, निमोनिया और वायरल आदि रोगों का शिकार होने से बचाती है।
अवधि: यह टीका एक साल के लिए असरदार होता है।
नेउमोकोकल
इसकी वैक्सीन क्रोनिक डिजीज के शिकार लोगों के लिए बेहतर होती है।
बचाव : यह वैक्सीन मधुमेह के रोगियों, बुजुर्गो, सांस की परेशानी वालों, किडनी की परेशानी या जिनको डायलेसिस की आवश्यकता रहती हो या शरीर में किसी तरह का ट्रांसप्लांट हुआ हो आदि के लिए है।
अवधि : यह वैक्सीन 5 साल में एक बार लगनी चाहिए।
मेनिंगोकोकल
यह वैक्सीन मैनिन्जाइटिस या इससे जुड़ी अन्य परेशानियों से बचाती है। अधिक उम्र वालों को भी अवश्य दी जानी चाहिए।
खुराक : यह वैक्सीन तीन साल में लगवानी चाहिए।
एचपीवी वैक्सीन
यह युवा लड़कियों को दी जानी चाहिए। अमूमन लड़कियों को यह वैक्सीन 15 वर्ष की आयु या
यौन संबंध बनाने शुरू करने से पहले लगवानी चाहिए।
बचाव : यह लड़कियों में होने वाले सर्वाइकल कैंसर (गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर) या उससे जुड़ी कई समस्याओं से बचाव करती है।
खुराक : इसकी एक खुराक हमेशा के लिए बचाव करती है।
वैक्सीन की कीमत
वैक्सीन की कीमत वैक्सीन और कंपनी के अनुरूप अलग-अलग होती है। टेटनस की वैक्सीन सस्ती होती है, पर हेपेटाइटिस ए वैक्सीन महंगी
होती है।
सर गंगाराम हॉस्पिटल के कंसलटेंट (फिजिशियन और इन्फेक्शस डिजीज स्पेशलिस्ट) डॉ. अतुल गोगिया से बातचीत पर आधारित