अपने पराए
दिल्ली में मणिपुर के एक नौजवान की पीट-पीटकर की गई हत्या ने कुछ ही वक्त पहले ऐसे ही हुई एक हत्या की यादें ताजा कर दी हैं। इस घटना से पता चलता है कि भले ही दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी हो, लेकिन यहां...
दिल्ली में मणिपुर के एक नौजवान की पीट-पीटकर की गई हत्या ने कुछ ही वक्त पहले ऐसे ही हुई एक हत्या की यादें ताजा कर दी हैं। इस घटना से पता चलता है कि भले ही दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी हो, लेकिन यहां राष्ट्र के दूसरे हिस्सों से आए लोगों को बाहरी माना जाता है। इन हत्याओं को हम ‘हेट क्राइम’ या नफरत से उपजा अपराध मान सकते हैं और यह पूरे देश के लिए सोचने का विषय है कि हमारे देश में ‘दूसरों’ के प्रति इतनी नफरत क्यों है, वह चाहे दूसरी जाति हो, दूसरा धर्म हो, दूसरा इलाका हो, दूसरे रंगरूप या त्वचा के रंग वाले लोग हों। हम इस बात पर गर्व करते हैं कि भारत में इतनी विविधता है कि अनेकता में एकता ही इसका स्वभाव है। लेकिन विविधता का अर्थ खुशी और आत्मीयता से दूसरे को स्वीकार करना है, मजबूरी में उसकी मौजूदगी को स्वीकार करना नहीं कि दबी हुई नफरत किसी भी वक्त उभर आए। दिल्ली में हजारों नौजवान पूवरेत्तर भारत से पढ़ने या रोजगार करने के लिए आते हैं, और उनकी अमूमन यही शिकायत होती है कि स्थानीय लोग उनके साथ भेदभाव करते हैं।
उन पर फब्तियां कसी जाती हैं, मजाक बनाया जाता है और विरोध करने पर हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है। कई बार पूर्वोत्तर के लोग इन बातों को लेकर आंदोलन कर चुके हैं, लेकिन स्थिति नहीं सुधरती है। दिल्ली आकार-प्रकार में भले ही एक महानगर बन गई हो, लेकिन सांस्कृतिक रूप से यह शहर, कस्बे और गांवों का एक घालमेल है। देश के कोने-कोने से लोग यहां आकर बसे हैं और दिल्ली के आसपास के ग्रामीण इलाके इसकी सीमा में आ गए हैं। स्थानीय लोगों का इस नए बसते शहर से कोई सांस्कृतिक मेल नहीं है, इसलिए इनके बीच अक्सर आशंका, नफरत, संदेह और आक्रामकता के रिश्ते पनपते हैं। यह आक्रामकता शहरीकरण के साथ आने वाले काले- सफेद धन की वजह से ज्यादा खतरनाक रूप धारण कर लेती है। पूर्वोत्तर के लोगों को आधुनिकता और पश्चिमीकरण के रंग में ज्यादा रंगा मान लिया जाता है, इसलिए भी आक्रामकता या संदेह ज्यादा होता है। लेकिन यह सिर्फ दिल्ली की समस्या नहीं है। कुछ वक्त पहले बेंगलुरु में भी पूवरेत्तर के लोगों के साथ र्दुव्यावहार के मामले सामने आए थे और एक समय तो अफवाहों के कारण हजारों की संख्या में पूर्वोत्तर के लोगों को रातोंरात उस शहर को छोड़ना पड़ा था। कुछ हद तक यह भेदभाव हर जगह पर है। इसकी एक वजह तो यह भी है कि देश के पूर्वोत्तर सीमांत पर मौजूद इलाके काफी अलग-थलग पड़ गए हैं। इन इलाकों को सुरक्षा के नजरिये से संवेदनशील मानकर उन्हें अक्सर शक की नजर से देखा जाता है। शेष भारत के लोग पूर्वोत्तर के बारे में बहुत कम जानते हैं और उससे भी कम लोग वहां घूमने जाते हैं। एक-दूसरे के प्रति अपरिचय कम हो, तो बीच की दीवारें आसानी से टूट सकती हैं।
एक बड़ी समस्या भारत में कानून-व्यवस्था की मशीनरी की है, जो तेजी से बदलते भारत की जरूरतों से मेल नहीं खा रही। 21वीं शताब्दी का दूसरा दशक आधा होने को आया, लेकिन हमारा पुलिस तंत्र अब भी बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भी नहीं आया है। इसकी वजह से आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को कानून का डर नहीं लगता। ऐसा नहीं है कि पुलिस हर जगह मौजूद हो सकती है, लेकिन अगर चुस्त और मुस्तैद पुलिस की वजह से कानून के राज का माहौल हो, तो अपराध काफी हद तक नियंत्रित हो पाएंगे। लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि भारतीयों को अपने से अलग लोगों के साथ सौहार्द के साथ रहने के लिए शिक्षित होना पड़ेगा, क्योंकि नए जमाने में रहने की यह अनिवार्य शर्त है।