'उम्रकैद की सजा पाये कैदियों को नहीं छोड़ सकेंगी राज्य सरकारें'
उच्चतम न्यायालय ने उम्र कैद की सजा भुगत रहे कैदियों को सजा में छूट देकर रिहा करने के अधिकार का इस्तेमाल करने से राज्य सरकारों को आज रोक दिया। न्यायालय ने इसके साथ ही सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेन्सियों...
उच्चतम न्यायालय ने उम्र कैद की सजा भुगत रहे कैदियों को सजा में छूट देकर रिहा करने के अधिकार का इस्तेमाल करने से राज्य सरकारों को आज रोक दिया। न्यायालय ने इसके साथ ही सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेन्सियों के मुकदमे में सजा भुगत रहे ऐसे कैदियों की रिहाई से पहले केन्द्र सरकार की अनुमति के सवाल पर राज्य सरकारों से जवाब तलब किया है।
प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किये हैं। इन सभी से 18 जुलाई तक जवाब मांगा गया है ताकि संविधान पीठ 22 जुलाई को इस पर आगे सुनवाई कर सके। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे एस खेहड़, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति रोहिन्टन नरीमन शामिल हैं।
संविधान पीठ ने कहा, इस दौरान राज्य सरकारों को सुनवाई की अगली तारीख तक उम्र कैद की सजा पाये कैदियों की रिहाई के लिये सजा में छूट देने के अधिकार के इस्तेमाल से रोका जाता है। न्यायालय ने कहा कि इस बारे में स्पष्ट जवाब की अपेक्षा है कि क्या सीबीआई के मामलों में उम्र कैद की सजा वाले कैदियों को छूट देने के मसले में राज्यों की कोई भूमिका है।
राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों की उम्र कैद की सजा में माफी देने के तमिलनाडु सरकार के निर्णय के खिलाफ केन्द्र सरकार की याचिका पर न्यायालय ने इस मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया था। शीर्ष अदालत ने 20 फरवरी को राजीव गांधी हत्याकांड के तीन दोषियों मुरूगन, संतन और अरिवु को रिहा करने के राज्य सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी थी। इन तीनों मुजरिमों की मौत की सजा को उच्चतम न्यायालय ने 18 फरवरी को उम्र कैद में तब्दील किया था।
न्यायालय ने बाद में चार अन्य दोषियों नलिनी, राबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन की भी उम्र कैद की सजा में माफी देते हुये उन्हें रिहा करने के राज्य सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी थी। न्यायालय ने इन दोषियों की रिहाई पर रोक लगाते हुये कहा था कि राज्य सरकार के निर्णय में प्रक्रियागत खामियां थीं।
इन सात कैदियों के साथ ही लाल किला कांड सहित इसी तरह के दूसरे मामले आज जब सुनवाई के लिये संविधान पीठ के समक्ष आये तो सालिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि तमिलनाडु सरकार सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेन्सी की जांच और अभियोजन वाले मामलों में इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकती है।
रंजीत कुमार ने शीर्ष अदालत का 25 अप्रैल का आदेश पढ़ते हुये कहा, आज तमिलनाडु सरकार ने इस अधिकार का इस्तेमाल किया है। कल दूसरे राज्य भी ऐसा करेंगे। सालिसीटर जनरल ने कहा कि सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेन्सी ने संबंधित मामलों में केन्द्र सरकार को ही ऐसे विषयों पर विचार का अधिकार है। उन्होंने कहा कि सजा में माफी पर विचार करते समय पीडिम्तों के अधिकारों पर भी विचार की आवश्यकता है।
संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि वह उसके पास भेजे गये सवाल के दायरे से बाहर नहीं जायेगी। लेकिन इस मामले में संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्यायालय ने केन्द्र सरकार से जानना चाहा कि इसमें रिट याचिका कैसे विचार योग्य हो सकती है। जयललिता सरकार ने 19 फरवरी को राजीव गांधी हत्याकांड के सभी सात दोषियों की सजा माफ कर उन्हें रिहा करने का फैसला किया था। ये सभी 21 मई, 1991 को श्रीपेरंबदूर में राजीव गांधी की हत्या के मामले में 23 साल से जेल में हैं।
शीर्ष अदालत ने इस मामले को संविधान पीठ को सौंपते हुये कहा था कि न्यायालय में पहली बार इस तरह का सवाल उठाया गया है और ऐसी स्थिति में सुविचारित व्यवस्था की आवश्यकता है। तदनुसार इस मामले को संविधान पीठ के पास विचार और निर्णय के लिये भेजा जा रहा है।