आंतरिक सुरक्षा के लिए जरूरी है जीरो टॉलरेंस
राष्ट्रपति अभिभाषण के जरिये सरकार ने ये संकेत दे दिया है कि वह आतंकवाद, उग्रवाद, दंगों व अपराध पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाएगी। देश में आंतरिक सुरक्षा की स्थिति व सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों का...
राष्ट्रपति अभिभाषण के जरिये सरकार ने ये संकेत दे दिया है कि वह आतंकवाद, उग्रवाद, दंगों व अपराध पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाएगी। देश में आंतरिक सुरक्षा की स्थिति व सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों का जायजा ले रहे हैं रामनारायण श्रीवास्तव
हालात बेहद विषम हैं। देश के 640 जिलों में से 205 जिलों को उग्रवाद, नक्सलवाद व आतंकवाद के साये में जीना पड़ रहा है। इनमें से 120 जिले माओवादी हिंसा से ग्रस्त हैं तो जम्मू-कश्मीर के 20 जिले पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद से जूझ रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों के 65 जिलों में उग्रवादी हिंसा का कहर जारी है। सरकार में नंबर दो देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह के लिए आंतरिक सुरक्षा का मोर्चा बेहद अहम है। नक्सलवाद सबसे बड़ी समस्या है तो स्लीपर्स सेल के जरिये गहरे तक पैठ जमा चुका आतंकवाद उससे भी बड़ी चुनौती। सरकार के सामने तटीय सीमा की चाक-चौबंद सुरक्षा के साथ-साथ राज्यों की कानून व्यवस्था, केंद्र-राज्य संबंधों की तकरार, महिलाओं व दलितों के प्रति बढ़ रहे अपराध और आपदा प्रबंधन के बड़े सवाल भी खड़े हैं।
सरकार के पास न तो कानून की कमी है और न ही सुरक्षा बलों की। अगर कहीं कमजोरी है तो खुफिया तंत्र में है। किसी भी घटना पर राज्य व केंद्र एक-दूसरे के पाले में गेंद फेंक कर जिम्मेदारी से बचते रहे हैं। देश की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी आईबी व विशिष्ट एजेंसी के रूप में गठित एनआईए अभी तक किसी बड़ी सफलता तक नहीं पहुंच सके हैं। 2013 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक आईबी की स्वीकृत क्षमता 26,867 लोगों की है, लेकिन उसमें 18,795 लोग ही काम कर रहे हैं। लगभग 30 फीसदी यानी 8,072 लोग कम हैं। ऐसे में न तो पटना के गांधी मैदान में मोदी की रैली में बम धमाकों की कोई भनक लग पाती है और न ही जीरम घाटी में नक्सली हमले के पहले की कोई खुफिया सूचना हाथ लगती है।
2013 के सरकारी आंकड़े देश में पुलिस व केंद्रीय बलों के तंत्र की असलियत सामने रखने के लिए काफी हैं। देश में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 4,730 के मुकाबले 3,637 अधिकारी ही कार्यरत थे यानी 23 फीसदी कम। शांतिकाल में एक लाख लोगों पर 220 पुलिस जवान होने चाहिए, लेकिन देश में एक लाख लोगों पर 138 पुलिस जवान ही हैं। कई पश्चिमी देशों में यह संख्या 220 से भी ज्यादा है। केंद्रीय पुलिस बलों के हालात भी बहुत अच्छे नहीं हैं। सात केंद्रीय पुलिस बलों सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, बीएसएफ, असम राइफल्स, आईटीबीपी, एसएसबी व एनएसजी में कुल 9,84,781 पद स्वीकृत हैं, लेकिन प्रभावी संख्या 8,83,581 है यानी 10.2 फीसदी की कमी।
नक्सलवाद
25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ की जीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हुए नक्सली हमले में लगभग एक दजर्न बड़े नेता मारे गए थे। राजनेताओं पर किया गया यह सबसे बड़ा हमला था। नेपाल सीमा के बिहार व पश्चिम बंगाल से लेकर केरल तक के पूरे गलियारे में लाल आतंक छाया हुआ है। देश के 11 राज्य इससे प्रभावित हैं। इनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, केरल, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश में भी माओवादी पैर पसार रहे हैं।
आतंकवाद व उग्रवाद
सीमा पार के आतंकी संगठन कश्मीर में सीधे घुसपैठ करते हैं तो बाकी हिस्सों में स्लीपर्स सेल के जरिए सक्रिय हैं। जम्मू-कश्मीर समेत 14 राज्यों में आतंकी घटनाएं सामने आई हैं। बिहार नया गढ़ बना है। बीते साल बोधगया व पटना के आतंकी हमलों से चिंताएं बढ़ी हैं। देश में 36 आतंकी संगठनों के सक्रिय होने की बात सरकार ने मानी है। पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवादी घटनाएं थम नहीं रही हैं। असम की स्थिति एक बार फिर बिगड़ रही है।
सांप्रदायिक हिंसा व दलितों पर अत्याचार
बीते साल उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा सांप्रदायिक हिंसा का शिकार रहा। मुजफ्फरनगर के दंगों ने नई चुनौती खड़ी की है। बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल भी सांप्रदायिक हिंसा के शिकार रहे। 2013 में 823 घटनाएं हुईं, जिनमें 133 लोगों को जान गंवानी पड़ी। इस दौरान दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं। सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा निवारण कानून बनाने के लिए संसद में विधेयक पेश करने की कोशिश की थी, लेकिन उसके कई बिंदुओं पर विवाद होने से मामला आगे नहीं बढ़ सका।
महिलाओं के प्रति अपराध
सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की है। बलात्कार और उसके बाद हत्या तथा ऑनर किलिंग की घटनाओं ने देश को हिला कर रख दिया है। राजधानी दिल्ली के साथ उत्तर प्रदेश की घटनाओं ने देश को झकझोर कर रख दिया। महिलाओं पर अपराध के मामलों में महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश सबसे ऊपर हैं। 2012 में देशभर में एक लाख से ज्यादा बलात्कार के मामले दर्ज किए गए थे।
केंद्र राज्य संबंध
आंतरिक सुरक्षा के लिए केंद्र व राज्य संबंध सबसे महत्वपूर्ण कारक है। कानून व्यवस्था राज्य का विषय होने से कई मामलों में राजनीतिक टकराव भी उभरता है। राज्यों से केंद्र की मंजूरी के लिए जाने वाले तमाम विधेयक इस टकराव में लंबित रहते हैं। बीते तीन सालों में केंद्र की मंजूरी के लिए ऐसे 121 विधेयक भेजे गए, जिनमें से 68 पर अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका है।
आपदा प्रबंधन
बीते साल केदारनाथ की घटना ने सरकार के आपदा प्रबंधन पर सवाल खड़े किए हैं। हालांकि फेलिन तूफान के समय उसने कुशल प्रबंधन कर बेहतर काम भी किया है, लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में काम करने की अक्षमता सामने आती रही है।
2010 - 2013 के दौरान हुए आतंकी हमले, जिनकी जांच-पड़ताल अभी तक लंबित है
29 मार्च 2010
महरौली दिल्ली में हुआ इंटेसिफाई एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) विस्फोट
07 दिसंबर 2010
शीतलाघाट, वाराणसी में बम विस्फोट
25 मई 2011
दिल्ली हाईकोर्ट के निकट विस्फोट
21 फरवरी 2013
हैदराबाद में दोहरा बम विस्फोट
7 जुलाई 2013
बोधगया में श्रृंखलाबद्ध विस्फोट
27 अक्तूबर 2013
पटना में श्रृंखलाबद्ध विस्फोट
आतंकी हमलों के शिकार प्रमुख 10 राज्य
राज्य घटनाएं मारे गए सुरक्षाकर्मी मारे गए नागरिक मारे गए आतंकी/उग्रवादी
(2012-2013) (2012-2013) (2012-2013) (2012-2013)
जम्मू और कश्मीर 220-170 15-15 15-15 72-67
अरुणाचल प्रदेश 54-21 00-01 05-02 14-07
असम 169-211 05-05 27-35 59-52
मणिपुर 518-225 08-05 21-28 65-25
मेघालय 127-123 01-07 36-30 16-21
मिजोरम 00-01 00-00 00-00 00-00
नागालैंड 151-145 00-00 08-09 66-33
त्रिपुरा 06-06 00-00 00-01 02-00
नई दिल्ली 01-00 00-00 00-00 00-00
महाराष्ट्र 01-00 00-00 00-00 00-00
बिहार 00-02 00-00 00-06 00-00