हिंदी में मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिलेंगे, तो बहुत संभव है कि दोनों नेता दुभाषियों की मदद से बात करें, क्योंकि मोदी राजनयिक वार्ता में हिंदी बोलना पसंद करते हैं। जब उनके...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिलेंगे, तो बहुत संभव है कि दोनों नेता दुभाषियों की मदद से बात करें, क्योंकि मोदी राजनयिक वार्ता में हिंदी बोलना पसंद करते हैं। जब उनके शपथ-ग्रहण समारोह में सार्क देशों के नेता आए, तो उनसे मोदी ने हिंदी में ही बातचीत की। ऐसा नहीं कि मोदी अंग्रेजी नहीं समझते या नहीं बोल पाते, उनकी अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं हो सकती है, जितनी अंग्रेजी माध्यम में या विदेश में पढ़े लोगों की होती है, लेकिन कामचलाऊ अंग्रेजी वह जानते हैं। इसके बावजूद अगर मोदी हिंदी में बोलना पसंद करते हैं, तो यह अच्छी बात है। श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने उनसे जो बातें अंग्रेजी में कीं, उन्हें समझने में मोदी को कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन जवाब उन्होंने हिंदी में दिए, जिनका अनुवाद दुभाषिए ने किया। मोदी कई मामलें में दिल्ली के परंपरागत सत्ता तंत्र से अलग हैं। दिल्ली में आम तौर पर सत्ता के साथ एक आभिजात्य जुड़ा है, जिसमें देसी संस्कृति का नफीस-सा पुट होता है, पर वह मूलत: अंग्रेजीदां और पश्चिमी रंग का है। मोदी जिस संस्कृति से आए हैं, उस संस्कृति के लोग इस अभिजात में शामिल नहीं हो पाते, बल्कि इसके सामने दबे-दबे रहते हैं। लेकिन मोदी लोकप्रियता की लहर पर सवार होकर आए हैं और उद्योग-व्यापार से लेकर सड़क के लोगों तक उनकी स्वीकार्यता है। उनमें वह आत्मविश्वास है, जिससे वह सिर्फ दिल्ली के सत्ता तंत्र में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मंच पर भी हिंदी बोलने से नहीं हिचकिचाएंगे।
हमें उम्मीद करनी चाहिए कि मोदी विदेशी लोगों से हिंदी में बात करना जारी रखेंगे और हमारे अन्य नेता भी उनका अनुसरण करेंगे। अपनी भाषा में बोलना अपनी सांस्कृतिक पहचान से लगाव को प्रकट करता है। इससे यह भी जाहिर होता है कि मोदी राजनयिक संवाद की बारीकियों के महत्व को समझते हैं कि ऐसे संवाद में शब्दों के चयन और उन पर जोर देने से अर्थ बदल सकता है। अपनी भाषा में ही व्यक्ति अधिकार के साथ जटिल और नफीस अभिव्यक्ति कर सकता है, विदेशी भाषा बोलते वक्त उसका ध्यान सही व्याकरण और अभिव्यक्ति की तलाश में ही उलझ जाता है। मोदी अपने पूरे अंदाज में आधुनिक व्यक्ति हैं। अपना चुनाव प्रचार उन्होंने जिस तरह किया, वह इसका उदाहरण है। वह नई सूचना तकनीक के इस्तेमाल के भी कायल हैं। ऐसे में, जो एक छद्म विरोधाभास हमारे यहां बना हुआ है, उसके टूटने में इससे मदद मिलेगी।
हमारे यहां अंग्रेजी का संबंध आधुनिकता और प्रगतिशीलता से जोड़ा जाता है और भारतीय भाषाओं के लिए आग्रह को दकियानूसी और प्रगति विरोधी या पुरातनपंथी मान लिया जाता है। इसी तरह, अंग्रेजी के ज्ञान को पढ़े-लिखे होने का पर्याय मान लिया गया है। अगर मोदी के हिंदी बोलने से यह नकली वर्गीकरण कुछ हद तक भी टूट पाया, तो अच्छा होगा। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी मोदी के हिंदी बोलने का अच्छा असर पड़ेगा। वह एक ऐसे देश और समाज के प्रतिनिधि के तौर पर देखे जाएंगे, जिसमें अपनी पहचान और संस्कृति के प्रति आत्मविश्वास है। कई बार विदेशी राजनयिकों और नेताओं ने इस बात पर हैरत जताई है कि भारतीय अपनी भाषा बोलना क्यों नहीं पसंद करते? अपनी भाषा में बोलना अपने आप में यह संदेश देता है कि बोलने वाला बराबरी के स्तर पर बात करना चाहता है। एक अच्छी बात यह भी है कि मोदी ने बिना किसी शोर-शराबे और प्रचार के यह शुरुआत की है, जिससे इसके बेवजह विरोध के स्वर भी नहीं उभरे हैं। इस तरह वह साबित कर रहे हैं कि अपनी भाषा में बोलना ही स्वाभाविक है, अपवाद स्वरूप तो अंग्रेजी का प्रयोग होना चाहिए।