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सेहत के लिए सबसे बड़ी चुनौती तंबाकू

तंबाकू का सेवन कितना भयावह है, वह इस बात से समझा जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे सदी की सबसे बड़ी बीमारी करार दिया है। आशंका है कि सदी के अंत तक तंबाकू सेवन से होने वाली...

सेहत के लिए सबसे बड़ी चुनौती तंबाकू
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 29 May 2014 11:55 PM
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तंबाकू का सेवन कितना भयावह है, वह इस बात से समझा जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे सदी की सबसे बड़ी बीमारी करार दिया है। आशंका है कि सदी के अंत तक तंबाकू सेवन से होने वाली बीमारियों द्वारा मरने वालों की संख्या एक अरब से अधिक हो जाएगी। यह महज आशंका नहीं है, बल्कि कई वैज्ञानिक अध्ययनों में साबित भी हो चुका है कि गैर संचारी रोगों की सबसे बड़ी जड़ आज तंबाकू सेवन है। विश्व तंबाकू दिवस (31 मई) के अवसर पर सेहत पर इसके नुकसान और उन्मूलन के बारे में बता रहे हैं मदन जैड़ा

सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान को हतोत्साहित करने के लिए दुनिया के तमाम देशों में कानून लागू हो चुके हैं। भारत ने भी कुछ साल पूर्व तंबाकू निषेध कानून लागू किया। इस कानून के लागू होने के बाद तंबाकू के सेवन में कोई कमी तो नहीं आई, लेकिन धूम्रपान को लेकर लोगों के व्यवहार में बदलाव दिखा। कानून के चलते लोग सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान से परहेज करने लगे, लेकिन तंबाकू गुटखा और खैनी आदि का सेवन करने लगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय द्वारा कराए गए ग्लोबल वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण में यह बात सामने आई। सर्वे के अनुसार किसी भी रूप में तंबाकू के सेवन करने वालों की संख्या भले ही देश में 27 करोड़ हो, लेकिन जो लोग घर के भीतर या खुले स्थानों पर धूम्रपान करते हैं, उससे सेकेंड हैंड स्मोक की चपेट में आने वालों की संख्या वास्तविक सेवनकर्ताओं से करीब दोगुनी है। ऐसे में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से तंबाकू से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या 80 करोड़ से भी अधिक है।

कैंसर और हृदय रोगों का प्रमुख कारण
विशेषज्ञों के अनुसार चबाए जाने वाले तंबाकू जिसमें गुटखा, खैनी एवं अन्य उत्पाद शामिल हैं, विशेष रूप से मुख कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन गले व सांस की नली का कैंसर भी इनसे हो सकता है। धूम्रपान से फेफड़ों के कैंसर के अलावा मुख कैंसर और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां हो सकती हैं। यह जानते हुए भी  कि दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों में से 1/3 तंबाकू के कारण होती हैं, एक अरब से अधिक लोग तंबाकू पीते और खाते हैं।

तंबाकू सेवन का नुकसान इस पर भी निर्भर करता है कि व्यक्ति तंबाकू के संपर्क में कितना रहा है। इसमें अप्रत्यक्ष धूम्रपान के अलावा व्यक्ति रोजाना कितना धूम्रपान करता है, किस उम्र और कितने समय से वह ऐसा कर रहा है, काफी मायने रखता है। धूम्रपान की अवधि इसकी तीव्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

तंबाकू में 4000 से ज्यादा घातक तत्व होते हैं। धूम्रपान से उत्पन्न होने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड सीधे शरीर में पहुंचती है, जो हमारे रक्त में ऑक्सीजन की मात्र को घटा देती है। ऐसे मामलों में दौरे पड़ने की आशंका ज्यादा रहती है। शरीर में निकोटिन और अन्य तत्व यदि सांस के जरिये लगातार प्रवेश करें तो वे धमनियों के साथ चिपकने शुरू हो जाते हैं और धीरे-धमनियों को अवरुद्ध कर देते हैं। इसलिए दिल और धमनियों के दौरों की एक बड़ी वजह आज तंबाकू सेवन बन चुकी है।

धुआं रहित तंबाकू में कुल 28 कैंसरकारी तत्वों की पहचान की गई है। चबा कर खाए जाने वाले तंबाकू में न सिर्फ निकोटिन की मात्र अधिक होती है, बल्कि यह रक्त वहिकाओं में भी अधिक समय तक बने रहता है।

तंबाकू के लगातार सेवन से उच्च रक्तचाप के मामले भी सामने आए हैं। इसका सेवन मानसिक बीमारियों का कारण बन सकता है। इसकी लत धीरे-धीरे एक लाइलाज मानसिक बीमारी बन जाती है। शरीर निकोटिन का आदी हो जाता है। यह वैसी ही लत होती है, जैसी चरस, अफीम एवं हेरोइन की होती है।

तंबाकू सेवन के अप्रत्यक्ष प्रभावों में शरीर की प्रतिरोधी प्रक्रिया सुस्त पड़ जाती है। सिगार और पाइप से धूम्रपान करना भी मुख कैंसर को बढ़ाता है। वहीं बीड़ी में भी निकोटिन और कोलतार की उच्च मात्र होती है।

अप्रत्यक्ष धूम्रपान से फेफड़ों का कैंसर होने की आशंका अधिक होती है।  शोध बताते हैं कि धूम्रपान करने वालों के जीवनसाथी में फेफड़ों का कैंसर होने की आशंका काफी बढ़ जाती है।

तंबाकू से मुक्ति के उपाय
डब्ल्यूएचओ के अनुसार इसके लिए त्रिस्तरीय रणनीति अपनानी होगी। पहले चरण में सरकार की तरफ से किए जाने वाले उपाय हैं। दूसरे चरण में समाज की भूमिका है तथा तीसरे चरण में स्वयं के प्रयास हैं। तीनों स्तर पर काम करके काफी हद तक तंबाकू के सेवन को नियंत्रित किया जा सकता है। इससे नई पीढ़ी को इसकी जद में आने से रोका जा सकेगा। भारतीय समाज में तंबाकू को सामाजिक मान्यता मिली हुई है। इसे शराब या अफीम, चरस, हेरोइन की तरह गंभीर नहीं माना जाता, जबकि यह उनसे कम खतरनाक नहीं है। इस मान्यता पर चोट किए जाने की जरूरत है। साथ ही तंबाकू को भी हेरोइन आदि की तरह नशे की श्रेणी में रखे जाने की जरूरत है। इसके अलावा लोगों को सार्वजनिक स्थलों पर तंबाकू सेवन के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

सरकार की है बड़ी भूमिका
इसमें कोई दो राय नहीं कि तंबाकू के सेवन को हतोत्साहित करने के लिए सरकार ने सख्त कानून बनाया है। यह कानून तंबाकू के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक संधि के अनुरूप है। तंबाकू निषेध कानून एक विस्तृत कानून है तथा इसके करीब-करीब सभी प्रावधान लागू हो चुके हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह असरदार साबित हुए हैं। सच्चई यह है कि उनका प्रभाव आंशिक रूप से ही पड़ा है।

रोकथाम के उपाय में सरकार को तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाना  चाहिए। वैश्विक अध्ययन बताते हैं कि यदि तंबाकू उत्पादों पर 10 फीसदी टैक्स बढ़ता है तो इस्तेमाल करने वालों की संख्या घट कर 4 फीसदी कम हो जाती है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए किसी उत्पाद का महंगा होना और ज्यादा महत्वपूर्ण है। तंबाकू उत्पादों में 10 फीसदी की मूल्यवृद्धि देश में इसके सेवनकर्ताओं की संख्या में 6-9 फीसदी तक की कमी ला सकती है।

दूसरे, तंबाकू मुक्ति केंद्रों की स्थापना करने के अलावा इसे छुड़ाने की नई तकनीकें विकसित की जानी चाहिए। सरकार को वैकल्पिक संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए, जैसे निकोटिन पैक आदि। गंभीर रूप से पीड़ितों के उपचार की सही व्यवस्था होनी चाहिए।

कैसे करें तलब को कम
तंबाकू का सेवन शरीर की पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता को कम करता है। पर कुछ ऐसे पोषक तत्व हैं, जो निकोटिन की तलब को कम करने में मददगार साबित होते हैं,आइये जानें..
फलों का सेवन खासतौर पर संतरा, सेब, पपीता व खट्टे फल खाएं।
टमाटर, गाजर, चुकंदर, पालक व हरी सब्जियों के जूस का सेवन  करें।
हर घंटे पानी व तरल पदार्थो का सेवन करते हुए खुद को हाइड्रेट रखें।
कम वसा वाले दूध से बने दही और लस्सी का सेवन करें। डेयरी प्रोडक्ट्स में विटामिन बी कॉम्प्लेक्स अधिक मात्र में होता है, जो निकोटिन की तलब को कम करता है।
कैफीन व एल्कोहलयुक्त चीजों का सेवन करें। ये निकोटिन की तलब को बढ़ाते हैं। नियमित व्यायाम करें।

 

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