सार्क देशों से कारोबार बढ़ने की नई संभावनाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) देशों के राष्ट्र प्रमुखों और विशिष्ट प्रतिनिधियों के आने से विदेश नीति के एक नए युग की शुरुआत की ...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) देशों के राष्ट्र प्रमुखों और विशिष्ट प्रतिनिधियों के आने से विदेश नीति के एक नए युग की शुरुआत की आशा तो बंधी ही है, इसके जरिये आपसी कारोबार के नए रास्ते भी खोले जा सकते हैं। यह ठीक है कि एक आध को छोड़कर ज्यादातर सार्क देशों से हमारे रिश्ते इन दिनों बहुत अच्छे नहीं हैं, मगर इन्हें सुधारने की कोई भी कोशिश आर्थिक सहयोग की तरफ ही जाएगी। इतना ही नहीं, इस नई पहल से सार्क भी नए रूप में आ सकता है। हालांकि सार्क 1985 में अस्तित्व में आया और 1994 में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, लेकिन अब तक सार्क देशों में हुए व्यापार समझौते का कोई खास प्रभाव उनके आपसी कारोबार पर दिखाई नहीं दे रहा है।
यही कारण है कि साफ्टा विश्व का सबसे कमजोर मुक्त व्यापार संगठन है। विश्व व्यापार में सार्क का हिस्सा पांच प्रतिशत से भी कम इसीलिए है, क्योंकि सार्क देश आपसी व्यापार से दूर हैं। कम आपसी व्यापार के कारण सार्क के आठों सदस्य देशों का कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विश्व की जीडीपी के सिर्फ दो फीसदी के बराबर है, जबकि इनकी आबादी विश्व की कुल आबादी की 20 फीसदी है। यह अखरने वाली बात है कि सार्क देश आपस में करीब सात अरब डॉलर का वार्षिक कारोबार करते हैं, जबकि दुनिया के दूसरे देशों के साथ उनका वार्षिक कारोबार 350 अरब डॉलर से अधिक का है। ऐसे में, दक्षिण एशिया क्षेत्र के सबसे बड़े देश होने के नाते भारत व पाकिस्तान सार्क को गतिशील बनाने की जिम्मेदारी निभा सकते हैं। सार्क के राष्ट्र प्रमुखों को समझना होगा कि दक्षिण एशिया में कारोबार की तीन-चौथाई संभावनाओं का महज इसलिए इस्तेमाल नहीं हो पाता, क्योंकि एक ओर सार्क देशों में आपसी वैमनस्य है, तो दूसरी ओर शुल्क और गैर शुल्क गतिरोध, खराब संचरण और कमजोर परिवहन ढांचा, कारोबारी सुविधाओं का अभाव व कमजोर बैंकिंग लिंक जैसी कारोबारी प्रतिकूलताएं बनी हुई हैं।
ऐसे में, भौगोलिक रूप से जुड़े हुए सार्क देशों को आर्थिक लाभ लेने के लिए एकीकृत परिवहन प्रणाली को अपनाया जाना जरूरी है। क्षेत्रीय परिवहन और पारगमन संधि की भी आवश्यकता होगी, जिसकी मदद से दक्षिण एशिया को विश्व मानचित्र में पूर्वी एशिया, मध्य और पश्चिम एशिया के चौरास्ते के रूप में दर्ज किया जा सकेगा। कनेक्टिविटी के लिए विमान सेवा से अधिक महत्वपूर्ण है सड़कों के जरिये कनेक्टिविटी। इसके लिए काबुल, लाहौर, दिल्ली, ढाका, यांगून के बीच ट्रांसपोर्ट कॉरीडोर बनाया जाना जरूरी होगा। हालांकि ऐसे रास्ते बनाने से पहले सदस्य देशों द्वारा अभी दोस्ती की राजनीतिक इच्छाशक्ति पैदा करने और कई तरह की राजनीतिक बाधाओं को दूर करने की जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)