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पार्किंग के लिए पार्क की बलि

पार्किंग के लिए पार्क की बलि शालीमारबाग के ए एन तथा ए एम ब्लॉकों के बीच में एक पार्क है जो लगभग 25-30 वर्षो के श्रम के बाद सुन्दर रूप में विकसित हो सका है। घरों में काम करने वाली बाइयां-माइयां भी...

 पार्किंग के लिए पार्क की बलि
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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पार्किंग के लिए पार्क की बलि शालीमारबाग के ए एन तथा ए एम ब्लॉकों के बीच में एक पार्क है जो लगभग 25-30 वर्षो के श्रम के बाद सुन्दर रूप में विकसित हो सका है। घरों में काम करने वाली बाइयां-माइयां भी दोपहर के समय खाना खाकर सुस्ताने बैठ जाती हैं। इस पार्क को उजाड़ने का ख्याल भी कैसे किसके दिमाग में आया? नगर निगम यहां अण्डरग्राउंड पार्किंग का प्रोजेक्ट शुरू करने वाला है। कुछ व्यापारी लोग भले ही इसे आवश्यक मानते हों, पर प्रतिशत लोग उसे नहीं चाहते। यह ‘अमृत’ को ‘विष’ में बदलने का बराबर होगा। हम सब निवासी ताÊाी हवा चाहते हैं- कारों का धुआं नहीं।ड्ढr कृपया संबंधित अधिकारी पेड़ों को काटने से बचाएं।ड्ढr डॉ. प्रवेश सक्सेना, शालीमारबाग आफत ऑनलाइन दिल्ली नगर निगम ने जब से सम्पत्ति कर ऑन लाइन किया, बुजुर्गो की आफत ही आ गई। तपती दोपहरी को किसी तरह कलेक्टर के दफ्तर में जाने पर कहा जाता है कि हम अखबारों में दी गई छूट को नहीं मानते। हमारी कॉलोनी के बारे में लिखित रूप से स्पष्टीकरण है कि यह वार्ड 23 की ‘डी’ श्रेणी की कॉलोनी है, फिर भी यहां की आरडब्लूए ‘ई’ श्रेणी में लोगों को टैक्स भरने को कह रही है। स्थानीय टैक्स कलक्टर को भी इसकी चिन्ता नहीं। सुना है कि वो भी किसी राजनीतिक भय से इसे स्वीकार कर रहे हैं। कर्मचारियों व अधिकारियों को नियमानुसार काम करने का साहस होना चाहिए। नेताओं को भी दूरदर्शिता के साथ नियम बनाने चाहिए। नगर-निगम में इन दोनों की कमी है।ड्ढr बी एस नागर, राजौरी गार्डन, नई दिल्ली मुस्कान जीवन की.. एक चीनी कहावत है कि जिस व्यक्ित को मुस्कुराना नहीं आता वह दुकानदारी नहीं कर सकता। सहज, सौम्य और सूक्षम मुस्कान खुद के लिए जीवन-योति बनेगी ही, दूसरों के अंधेरे जीवन में भी रोशनी की किरणें बिखेरने में सहायक सि होगी। कई बार तो ऐसा देखा गया है कि एक छोटी सी मोहक मुस्कान ने बिगड़े-उधड़े रिश्तों को चुपके से तुरपाई कर दी। आज के जीवन में हंसी-मुस्कुराहट की बहुत जरूरत है, बशर्ते किसी और के लबों से छीनकर न लाई गई हो।ड्ढr डॉ. आर. के. मल्होत्रा, अलकनंदा, नई दिल्ली सड़क संस्कार देश में बाईस लाख करोड़ खर्च करके यकीनन सड़क क्रांति आ जाएगी, फिर भी सड़कों का अपना रुतबा कहां है? कस्बों, देहातों की सड़कों पर बुग्गी, जुगाड़, ट्रैक्टरों का राज है। भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर भी अजीब है पहले नई सड़कें बनती हैं फिर सड़कों को काट कर बिजली-पानी-सीवर की पाइप डलती है।ड्ढr राजेन्द्र कुमार सिंह, रोहिणी, दिल्ली पूछो जाकर उनसे महंगाई का असर उस गरीब से पूछना चाहिए, जो दस रुपया रोज कमाता है- उस रिक्शाचालक से पूछना चाहिए जो पांच रुपये के लिए इस चिलचिलाती धूप में खून जलाता है- उस रेहड़ी वाले से पूछना चाहिए जो दिनभर गला फाड़ कर चिल्लाता है। किसी मेहनतकश मजदूर से जाकर पूछना चाहिए कि अरबों डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार से आपको कितनी तसल्ली मिल रही है?ड्ढr विनोद कुमार शुक्ला, नेहरूविहार, दिल्लीं

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