ममता का जादू अपराजेय
देश भर में चली मोदी लहर से पश्चिम बंगाल भी अछूता नहीं रहा, किंतु यह असर लाल दुर्ग के जजर्र अवशेष पर पड़ा और ममता बनर्जी अपराजेय रहीं। उनके नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की।...
देश भर में चली मोदी लहर से पश्चिम बंगाल भी अछूता नहीं रहा, किंतु यह असर लाल दुर्ग के जजर्र अवशेष पर पड़ा और ममता बनर्जी अपराजेय रहीं। उनके नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। उसने पिछले लोकसभा चुनाव में 19 सीटें हासिल की थी, इस बार उसे 34 सीटें मिली हैं। वह अपना जनाधार बचाने में कामयाब रहीं। राज्य में हुए शारदा घोटालों में अपनी पार्टी का नाम उछाले जाने और मामले की सीबीआई जांच का सामना करने जा रही ममता ने बंगाल की राजनीति के ढर्रे को ही बदल कर रख दिया है। नतीजे इस बात का संकेत हैं कि भविष्य में भले कांग्रेस की स्थिति कमोबेश जस की तस बनी रहे, किंतु यहां अब भाजपा भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी। वाम दल 15 सीटों से सिमटकर दो पर आ गए। माकपा को दो सीटें मिलीं, उसके अन्य साथी दलों को सिफर हाथ लगा। राज्य के अल्पसंख्यकों की सरपरस्त के तौर पर ममता की छवि बनी है।
देश भर में चली मोदी लहर से किसी हद तक तृणमूल के चुनावी नतीजे अप्रभावित रहे, तो इसलिए कि अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण उसके पक्ष में हुआ। ममता ने अपने तेवर व गतिविधियों से यह साबित किया कि वह सांप्रदायिक ताकतों को रोकने वाली एक जुझारू नेता हैं और आने वाले समय में वह राष्ट्रीय स्तर अपनी इस छवि का विस्तार करेंगी। हिंदीभाषियों को बंगाल में गेस्ट बताने वाली ममता ने अब अपनी गलती सुधार ली है और इसका उन्हें लाभ मिला।
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