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सोलह मई: एक तिरछी कविता

ओ मेरे हेकड़ मन! ओ मेरे हुब्रिस मन! ओ मेरे हिंदी मन! ओ एनजीओ मन! अब तक क्या किया? कैसा लेखन किया? सेकुलर बन अनात्म बन गया। भूतों की शादी में कनात-सा तन गया। हाय मेरे...

सोलह मई: एक तिरछी कविता
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 17 May 2014 09:30 PM
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ओ मेरे हेकड़ मन!
ओ मेरे हुब्रिस मन!
ओ मेरे हिंदी मन!
ओ एनजीओ मन!
अब तक क्या किया?
कैसा लेखन किया?
सेकुलर बन अनात्म बन गया।
भूतों की शादी में कनात-सा तन गया।
हाय मेरे ‘हुब्रिस’मन! हाय अहंकारी मन! ऐसा क्योंकर हुआ?
तू खिलाफ जिसके था, वही-वही आ गया। तेरे ही शापों से सरकार बना गया।
तेरे बयान क्या हुए? जनता ने पढ़े नहीं कि जनता समझी नहीं?
मेरा मन क्या जाने?

मैं तो जी लेखक हूं। हुब्रिस हूं। हेकड़ हूं। हिंदी का हेटर हूं। अंग्रेजी वेटर हूं। सेकुलर देश है। सेकुलर काल है। सेकुलर काल में सेकुलर माल है। सेकुलर माल की सेकुलर चाल है। सेकुलर चाल में सेकुलर लकड़ी की सेकुलर टाल है। सेकुलर  टाल में सेकुलर जाल है। सेकुलर तर्क है:
मुझसे जो असहमत है। सांप्रदायिक अव्वल है, फासिस्टिक त्याज्य है।
मैं लेखक सेकुलर। जनता है धार्मिक।
धार्मिक, कम्युनल-कम्युनल-कम्युनल, निंदनीय-निंदनीय।
और मैं अभिनंदनीय।
लेखक बुद्धिजीवी हूं, जनता श्रमजीवी है। मैं मुफ्तखोरा हूं। आलू का बोरा हूं। अपने लिए सारा है, उसके लिए थोरा है। राजनीति के आगे जलती है, चलती है। सेकुलर मशाल मेरी रास्ता बताती है। आती है, और जाती है।
मैं प्रगतिशील हूं। कुछ-कुछ अश्लील हूं। अश्लील का वकील हूं।
मेरे पास क्रांति है।
प्रगतिशील अंग्रेजी के प्रगतिशील पेपर में मेरा ऐलान था:
‘वो अगर जीता, तो काशी हार जाएगी!’
अपने ऐलान पर मैं भी हैरान हूं। मेरी इस जनता ने एक नहीं मानी है।
उसको जिता दिया, मुझको हरा दिया। जनता ही कानी है।
रे जनता क्यूं किया? ऐसा भी क्यूं किया?
मैं तो तेरा लेखक हूं। तू मेरी जनता है। मैं तेरा हरकारा।
ऐसा तूने क्यूं किया? काशी को हरा दिया और उसको जिता दिया? 
कितना बताया तुझे, कितना समझाया तुझे। दिमित्रेफ थीसिस को कितना पढ़ाया तुझे। पीपल के फ्रंट को यों ही ठुकरा दिया। सेकुलर फ्रंट को यों ही बिसरा दिया। यह तूने क्या किया? मेरे ऐलान को, मेरे बयान को, मेरे हस्ताक्षरों को, मेरे इस लेखन को यूं ही बिसरा दिया? यह तूने क्या किया? क्यों यह धोखा दिया?
जनता ने बहुत सुना, लेकिन कुछ न कहा।
जनता सब समझती है: यह दिमाग अंग्रेजी। अंग्रेजी बतियाता है, हिंदी लतियाता है। कहता कम्युनल है, जो हिंदी वाला है। हिंदी क्या भाषा है? राष्ट्रीय झांसा है।
मत अकड़। मत जकड़। मत न कोई मक्कड़ कर। ये समझ-
जनता का निर्णय है। जनता ने वही किया, जो उसे मुफीद लगा। जनता के निर्णय का स्वागत कर। अभिनंदन कर। अपने जनतंत्र की जनता ही ईश्वर है। जनता को जो धोखा देगा, वह हमेशा भुगतेगा।
मत भूल। मत भूल। तू हिंदी वाला है।

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