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बिहारः मोदी बने नायक, लगी मुहर

नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के साथ ही देश के नायक बनकर उभरे हैं। बिहार ने भी 40 में से 31 सीटों पर एनडीए को बढ़त देकर उनके नायक बनने पर अपनी मुहर लगा दी। जब तक बिहार किसी को सहयोग और सर्मथन नहीं...

बिहारः मोदी बने नायक, लगी मुहर
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 16 May 2014 11:46 PM
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नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के साथ ही देश के नायक बनकर उभरे हैं। बिहार ने भी 40 में से 31 सीटों पर एनडीए को बढ़त देकर उनके नायक बनने पर अपनी मुहर लगा दी। जब तक बिहार किसी को सहयोग और सर्मथन नहीं देता तब तक कोई नेता नायक के रूप में नहीं जाना जाता। महात्मा गांधी चंपारण से जनआंदोलन कर, तो जयप्रकाश नारायण बिहार से संपूर्ण क्रांति का शंखनाद कर नायक बने। 1977 के चुनाव में बिहार की 54 में से 52 सीटों पर जनता पार्टी गठबंधन को सफलता मिली थी। फिर ऐसा दोहराया गया इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में, तब कांग्रेस को 54 में से 48 सीटों पर विजय हासिल हुई थी। 1999 में वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा को 23 और जद-यू को 18 सीटें मिली थीं।

बिहार-झारखंड बंटवारे के बाद पहली बार भाजपा बिहार में इतनी मजबूती से उभरकर आई है। इस मजबूती की एक खास वजह यह भी है कि नरेंद्र मोदी खुद को नायक के रूप में स्थापित कराने के लिए बिहार का सघन दौरा करते रहे। हर बार बिहार में उनकी सभाओं में उमड़ी भीड़ ने उन्हें अपना भरपूर समर्थन दिया। मोदी ने अपनी हर सभाओं में विकास, सौहार्द, गवर्नेंस और रोजगार के मुद्दों पर बिहार के लोगों से सीधा संवाद कर उनसे अपनी बातों पर हामी भरवाई। जहां जरूरत समङी वहां खुद को चाय बेचने वाला तो कहीं पिछड़ी जाति का बता लोगों की सहानुभूति बटोर ले गए। वजह कोरे भाषण नहीं बल्कि चंद्रगुप्त की इस धरती पर अक्सर विद्रोही तेवर को समर्थन मिलता रहा है, चाहे वह गांधी, जेपी हों या फिर वीपी सिंह। केंद्र और राज्य सरकारों के प्रति मोदी के विद्रोही तेवर देख बिहार के लोगों ने उन्हें नायक मान लिया।

यह नरेंद्र मोदी का ही आकर्षण रहा कि जातियों में बंटा कहा जाने वाले ने बिहार लगभग एकमत होकर मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए पर खुलकर वोट लुटाया। क्षेत्रीय दलों का आधार मानो खत्म सा हो गया। आडवाणी के बाद मोदी को रोकने का दंभ भरने वाले लालू प्रसाद हों या फिर विकास और काम के नाम पर मजदूरी मांगने वाले नीतीश कुमार, सभी के आधार वोट भी मोदी के नाम पर एनडीए की तरफ खिसक गए।

आलम यह कि यादव और मुसलमानों के बीच से युवा वोटरों ने भी मोदी का साथ दिया। लालू का गढ़ माने जाने वाले पाटलीपुत्र से पुत्री मीसा भारती और छपरा में पत्नी तथा पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को भी जीत नहीं मिली। मनरेगा के जरिए देश में सामाजिक-आर्थिक बदलाव के अगुआ कहे जाने वाले रघुवंश बाबू भी हार गए।

बिहार में मोदी लहर का आकलन करें तो कांग्रेस की खूब किरकिरी हुई। निवर्तमान लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और केरल के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर औरंगाबाद से चुनावी मैदान में उतरे निखिल कुमार को पराजय मिली। इसी प्रकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जद-यू को भी बड़ा झटका लगा है। पिछले चुनाव में 20 सीटें जीतने वाली पार्टी इस बारदोपर सिमट गई। राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को भी हार का मुंह देखना पड़ा।

एनडीए का दामन थामकर लोजपा नेता पिता-पुत्र रामविलास पासवान और चिराग ने जद-यू को तगड़ा झटका दिया है। यह मोदी लहर की बदौलत ही हुआ कि पासवान का पूरा कुनबा (पिता, पुत्र और भाई रामचंद्र पासवान) लोकसभा में पहुंच गया। इसी प्रकार एनडीए से जुड़े रालोसपा को भी तीन में तीन सीटें मिल गईं। जबकि जद-यू से समझौते के बावजूद सीपीआई को बेगूसराय और बांका में से एक भी सीट नहीं मिली। अनुसूचित जाति के आरक्षित सभी छह सीटों पर एनडीए काबिज हुई है, जबकि 2009 में इनमें से चार पर जद-यू को तथा कांग्रेस और भाजपा को एक-एक पर विजय मिली थी।

 

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