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पुस्तक कमजोर प्रधानमंत्री की आधिकारिक पुष्टि: भाजपा

भाजपा ने कहा कि मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार की किताब इस बात की आधिकारिक पुष्टि करती है कि वह सबसे कमजोर प्रधानमंत्री रहे और जोर दिया कि संप्रग के शासलकाल में उनके पद को बौना बना दिया...

पुस्तक कमजोर प्रधानमंत्री की आधिकारिक पुष्टि: भाजपा
एजेंसीSun, 13 Apr 2014 10:35 PM
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भाजपा ने कहा कि मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार की किताब इस बात की आधिकारिक पुष्टि करती है कि वह सबसे कमजोर प्रधानमंत्री रहे और जोर दिया कि संप्रग के शासलकाल में उनके पद को बौना बना दिया गया।

मुख्य विपक्षी पार्टी ने कहा कि पद छोड़ने की पूर्वसंध्या में सिंह को गहराई से आत्मचिंतन करना चाहिए कि उनके कार्यकाल में प्रधानमंत्री का संस्थान किस प्रकार से प्रभावित हुआ।

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के इस आरोप की अगुवाई करते हुए कहा कि उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सिंह को अब तक का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कहा था और संजय बारू की लिखी किताब उस बात की पुष्टि करती है जो दुनिया पहले से जानती है।

आडवाणी ने अहमदाबाद में संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने जो कहा है कि वह दुनिया पहले से जानती है, लेकिन किताब इस बात की आधिकारिक पुष्टि है। जब मैंने पहली बार कहा था कि हमारे सभी प्रधानमंत्रियों में वह सबसे कमजोर हैं, उसके बाद मेरे अपने ही सहयोगियों ने कहा था कि वह भला आदमी हैं और उनकी इतनी निंदा क्यों की जाए। तब मैंने कहा था कि मुझे उनके लिए अफसोस भी है और सहानुभूति भी रखता हूं।

आडवाणी से मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब के बारे में पूछा गया था। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि संप्रग सरकार के कार्यकाल में जिन संस्थाओं को बौना बना दिया गया, उसमें प्रधानमंत्री का अपना कार्यालय शामिल है।

सिंह पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पद कोई रोजगार नहीं है, बल्कि यह लोक सेवा है जो लोगों को नेतत्व प्रदान करने से जुड़ा है।

संप्रग सरकार की तुलना पुराने कम्युनिस्ट राष्ट्रों से करते हुए जेटली ने कहा कि उन्हें आश्चर्य होता है कि सोनिया गांधी कहीं कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव के समान तो नहीं, जिनका फैसला ही अंतिम माना जाता था, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नहीं।

उन्होंने पुस्तक का हवाला देते हुए कहा कि देश को प्रधानमंत्री के बारे में जो संदेह था कि उन्हें अपने अधिकतर फैसलों के लिए कांग्रेस अध्यक्ष की मंजूरी लेनी होती थी, इसकी पुष्टि यह किताब करती है।

जेटली ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि क्या हर विषय पर प्रधानमंत्री का निर्णय अंतिम होता था या यह मूल कम्युनिस्ट राष्ट्रों की सी व्यवस्था है, जहां महासचिव हमेशा सरकार के प्रमुख से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।

उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार में बौने साबित हुए अनेक संस्थानों में सबसे मुख्य था प्रधानमंत्री का अपना पद। जेटली ने कहा कि प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति 10 जनपथ से होती थी। कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे इस तरह के आवंटन पार्टी ने किये।

जेटली ने आरोप लगाया कि सभी संवेदनशील विषयों पर सरकार के बाहर की एक शख्सियत से चर्चा करनी होती है।

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