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वाराणसी: मोदी को घेरने की कवायद शुरू

देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी का सियासी रंग समय के साथ धीरे-धीरे बदलता जा रहा है। चुनावी बिसात पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को काशी के रण में ही घेरने...

वाराणसी: मोदी को घेरने की कवायद शुरू
एजेंसीFri, 11 Apr 2014 12:21 PM
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देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी का सियासी रंग समय के साथ धीरे-धीरे बदलता जा रहा है। चुनावी बिसात पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को काशी के रण में ही घेरने की कवायद शुरू हो चुकी है। मोदी को घेरने के लिए उनके विरोधी एक मंच पर जुटने के लिए लामबंद होने लगे हैं। 

मोदी को घेरने की कवायद उस समय दिखी, जब पूर्वाचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी ने मोदी के खिलाफ अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। सूत्रों की मानें तो मुख्तार आम आदमी पार्टी (आप) के नेता केजरीवाल के समर्थन में उतर सकते हैं।

कौमी एकता दल (कौएद) के प्रत्याशी मुख्तार ने पिछले आम चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी मुरली मनोहर जोशी को कड़ी टक्कर दी थी और इस बात की प्रबल संभावना थी कि वह मोदी के खिलाफ मजबूती से लडेंगे और लड़ाई काफी रोचक होगी।

मुख्तार के भाई और कौएद के राष्ट्रीय संरक्षक अफजाल अंसारी ने घोषणा की है कि मुख्तार वाराणसी से मोदी के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेंगे।

अफजाल ने हालांकि, यह भी कहा है कि मोदी को हराने के लिए धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक मंच पर आना होगा। सूत्रों के अनुसार, अफजाल और केजरीवाल के बीच कई दौर की बातचीत हुई है और इस बात की उम्मीद है कि मुख्तार केजरीवाल को अपना समर्थन दे सकते हैं।

पिछली बार आम चुनाव के दौरान काशी में 'जोशी जिताओ, मुख्तार हराओ' का नारा चलाया था और इस सीट पर लड़ाई हिंदू बनाम मुसलमान हो गई थी और इसका फायदा जोशी को मिला और वह हारने से बच गए। महज 17,000 मतों से चुनाव जोशी के पक्ष में रहा था।

वरिष्ठ पत्रकार करूणा शंकर कहते हैं, ''इस बार धर्मनिरपेक्ष मतों को रोकने के लिए सारी कवायद हो रही है, लेकिन यह कवायद कहां जाकर रूकेगी अभी कहना जल्दबाजी होगी। इस कहानी में 12 मई से पहले अभी कई रोचक मोड़ आएंगे।''

इधर, मुख्तार की दावेदारी वापस लेते समय अफजाल ने सीधे तौर पर कहा कि वह मोदी को हराने के लिए गली-गली और हर मोहल्ले में अपने कार्यकर्ताओं को लगाएंगे। अफजाल हालांकि, इस बात से नाखुश दिखते हैं कि धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाली पार्टियां बाहर तो बड़े-बडे़ दावे करती हैं, लेकिन बनारस में अपना सही पक्ष नहीं रख पा रही हैं।

इस बीच काशी के रण से मुख्तार के हट जाने के बाद मोदी के खिलाफ अब मैदान में केजरीवाल और बनारसी सूरमा कहे जाने वाले कांग्रेस के अजय राय बचे हुए हैं। केजरीवाल के बाहरी होने की वजह से बनारस में वह अपनी पैठ नहीं बना पा रहे हैं लेकिन अजय राय का पिछला रिकॉर्ड बताता है कि मोदी के सामने असली चुनौती वही पेश करेंगे।

शुक्ला कहते हैं, ''अजय राय को पिछले चुनाव में 1,23,000 मिले थे। तब लड़ाई जोशी-मुख्तार और अजय राय के बीच थी। इस बार मुख्तार के हटने से अजय राय सीधी लड़ाई में आ गए हैं। यदि कौएद केजरीवाल को समर्थन देगा, तो एक बार फिर यहां लड़ाई त्रिकोणीय बनेगी।''

उन्होंने कहा कि केजरीवाल का बनारस में अपना कोई आधार नहीं है और न ही उनका कोई वोट बैंक है, लेकिन यदि अफजाल उन्हें अपना समर्थन देते हैं तो बनारस के लगभग चार लाख मुसलमानों के सहयोग से वह सीधी लड़ाई में आ सकते हैं और इसलिए केजरीवाल ने भी यह कहना शुरू कर दिया है कि मोदी को हराने के लिए वह किसी का समर्थन ले सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि मुख्तार को पिछले चुनाव में करीब 1,85,000 मत मिले थे और यदि इन मतों का ध्रुवीकरण केजरीवाल के पक्ष में हुआ तो काशी की चुनावी जंग वाकई बड़ी दिलचस्प होगी।

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