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सतपाल महाराज ने छोड़ी कांग्रेस, मोदी का किया गुणगान

उत्तराखंड के पौड़ी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस सांसद सतपाल महाराज आज पार्टी से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। महाराज कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर नाराज चल रहे थे। भाजपा अध्यक्ष...

सतपाल महाराज ने छोड़ी कांग्रेस, मोदी का किया गुणगान
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 21 Mar 2014 05:06 PM
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उत्तराखंड के पौड़ी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस सांसद सतपाल महाराज आज पार्टी से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। महाराज कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर नाराज चल रहे थे।

भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की मौजूदगी में भाजपा में शामिल होने के बाद महाराज ने नरेन्द्र मोदी का गुणगान किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार के शासनकाल में उत्तराखंड की उपेक्षा हुई। कांग्रेस की नीतियों के कारण देश बहुत पीछे चला गया।
  
उनके कांग्रेस छोड़ने के पीछे कारण मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच की अनबन भी बताई जा रही है। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में हम भाजपा को जीत से भी आगे ले जायेंगे।

लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के नेताओं का कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला लगातार जारी है। इतना ही नहीं कई बड़े नेता हार के डर से चुनाव लड़ने को तैयार ही नहीं हैं। विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस डूबती नाव है।

उत्तराखंड के शक्तिशाली नेता और लोकसभा सदस्य सतपाल महाराज पिछले 20 साल से कांग्रेस के सदस्य थे। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह द्वारा यहां पार्टी मुख्यालय में उन्हें दल में शामिल करने की औपचारिकता पूरी किए जाने के बाद सतपाल महाराज ने गुजरात के मुख्यमंत्री की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री बनने पर नरेन्द्र मोदी भारत को चीन से आगे ले जाएंगे।
   
इस राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता का नाम सतपाल सिंह रावत है, लेकिन अपने प्रशंसकों में वह सतपाल महाराज के रूप से जाने जाते हैं। उनकी पत्नी अमृता रावत उत्तराखंड विधानसभा में कांग्रेस की विधायक हैं। उत्तराखंड में सतपाल महाराज का अच्छा प्रभाव माना जाता है।
   
सतपाल महाराज पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड के पौड़ी चुनाव क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। बताया जाता है कि उत्तराखंड के गढवाल क्षेत्र से उम्मीदवारों के चयन में अपनी राय नहीं माने जाने से वह कांग्रेस आलाकमान से नाराज थे।
   
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हाल ही में उनसे मुलाकात करके उन्हें मनाने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। वह रावत के मुख्यमंत्री बनने से भी खुश नहीं थे। कहा जाता है कि वह खुद इस कुर्सी की इच्छा रखते थे।

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