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संत निवृत्तिनाथ

संत ज्ञानेश्वर के बड़े भाई निवृत्तिनाथ, गहिनी नाथ या गैनीनाथ के शिष्य थे। गहिनी नाथ का निवास नासिक के ब्रह्मगिरि की परिक्रमा के मार्ग में था। एक बार त्र्यम्बकेश्वर क्षेत्र में रहने वाले निवृत्तिनाथ...

 संत निवृत्तिनाथ
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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संत ज्ञानेश्वर के बड़े भाई निवृत्तिनाथ, गहिनी नाथ या गैनीनाथ के शिष्य थे। गहिनी नाथ का निवास नासिक के ब्रह्मगिरि की परिक्रमा के मार्ग में था। एक बार त्र्यम्बकेश्वर क्षेत्र में रहने वाले निवृत्तिनाथ के माता-पिता, बच्चों के साथ ब्रह्मगिरि की परिक्रमा कर रहे थे। उसी दौरान बालक निवृत्तिनाथ एक शेर से डर कर भागे और भटकते हुए अंजनी पर्वत की एक गुफा में घुस गए। वहां तीन साधु ध्यान में बैठे थे। उनमें जो उच्चासन पर साधु बैठा था, निवृत्तिनाथ उसके चरणों में जा गिरे। वह गहिनीनाथ थे। उन्होंने इस बालक को दीक्षा दी और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ित देकर वहां से भेज दिया। गहिनीनाथ ने कहा- ‘भगवान तुम्हार बहुत निकट हैं। आत्मनिष्ठा अखंड बनाए रहो, और श्रीकृष्ण में रमो।’ कहते हैं बाद में निवृत्तिनाथ को गुरु गोरखनाथ के दर्शन भी हुए थे। ज्ञानेश्वर ने निवृत्तिनाथ से ही दीक्षा ली थी। निवृत्तिनाथ ने कहा है- ‘गुरु गैनीनाथ ने यह ध्यान दिला दिया कि तेर ध्येय भगवान श्रीकृष्ण हैं। इस कृष्ण रूप ध्यान से निवृत्तिनाथ सुखी और सम्पन्न हुआ। नाम लेने से मैं भी गुरु गैनीनाथ के साथ तल्लीन हो जाता हूं। गोकुल के श्रीकृष्ण निवृत्तिनाथ के धन हैं, जो गैनीनाथ के साथ प्रेम से झूमते हैं।’ ज्ञानेश्वर ने अपने बड़े भाई निवृत्तिनाथ को गुरु स्वीकार करने के पश्चात् उनसे बड़े भाई का नहीं, अपितु गुरु शिष्य का सम्बंध बनाकर रखा। निवृत्तिनाथ ने सार सौ अभंगों की रचना की है। इन अभंगों के विषय हैं- योग, अद्वैतवाद और श्रीकृष्ण की भक्ित। एक अभंग में निवृत्तिनाथ ने श्रीकृष्ण की रूपमाधुरी के लिए लिखा है- ‘यह श्रीकृष्ण नाम उनका है जो अनन्त हैं, जिनका कोई संकेत नहीं मिलता, वेद भी जिनका पता लगाते थक जाते हैं और पार नहीं पाते, जिनमें समग्र चराचर विश्व होता जाता रहता है, वे ही अनंत यशोदा मैया की गोद में नन्हें से कन्हैया बनकर खेल रहे हैं।’

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